टी. एस. एलियट : परंपरा की अवधारणा

प्रस्तावना

बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में अंग्रेज़ी साहित्य के क्षेत्र में अनेक नवोन्मेषी विचारकों और कवियों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने साहित्यिक आलोचना की रूढ़ धारणाओं को चुनौती दी। इन विद्वानों में थॉमस स्टर्न्स एलियट (T.S. Eliot) का नाम विशेष उल्लेखनीय है। एलियट केवल एक महान कवि ही नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली निबंधकार और आलोचक भी थे। उनकी काव्यकृतियों के समान ही उनके निबंधों का भी साहित्य और साहित्य-चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ा। विशेष रूप से उनका निबंध “Tradition and the Individual Talent” (1919), परंपरा और व्यक्तिगत प्रतिभा के द्वंद्व को लेकर साहित्यिक जगत में चर्चित रहा है।

एलियट ने परंपरा की उस धारणा को चुनौती दी जो उसे मात्र अतीत के अंधानुकरण या रूढ़िगत अनुसरण से जोड़ती थी। उन्होंने परंपरा को एक सजीव, सतत प्रवाहमान और निरंतर विकासशील सत्ता के रूप में देखा। उनके लिए परंपरा का तात्पर्य केवल अतीत नहीं, बल्कि अतीत और वर्तमान के बीच एक जटिल, संवादात्मक संबंध था।


टी.एस. एलियट का परिचय

टी. एस. एलियट (T. S. Eliot), जिनका पूरा नाम थॉमस स्टर्न्स एलियट था, 20वीं सदी के प्रमुख आधुनिकतावादी कवि, नाटककार और साहित्यिक आलोचक थे। उनका जन्म 26 सितंबर 1888 को सेंट लुइस, मिसौरी, अमेरिका में हुआ था। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में यूरोप में अध्ययन किया। एलियट ने 1927 में ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त की और लंदन में बस गए। एलियट को 1948 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रमुख कृतियाँ

  • “The Love Song of J. Alfred Prufrock” (1915): यह उनकी पहली प्रमुख कविता थी, जिसने आधुनिकतावादी कविता की दिशा निर्धारित की।

  • “The Waste Land” (1922): यह कविता 20वीं सदी की सबसे प्रभावशाली काव्य रचनाओं में से एक मानी जाती है, जो युद्धोत्तर निराशा और सांस्कृतिक विघटन को दर्शाती है।

  • “Four Quartets” (1943): यह चार लंबी कविताओं का संग्रह है, जिसमें समय, ईश्वर और अस्तित्व के विषयों की गहन पड़ताल की गई है।

  • “Old Possum’s Book of Practical Cats” (1939): यह बच्चों के लिए लिखी गई कविताओं का संग्रह है, जिस पर आधारित म्यूजिकल “Cats” बना।


एलियट का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य

टी.एस. एलियट का साहित्यिक चिंतन यूरोपीय साहित्यिक धरोहर, विशेषकर ग्रीक, लैटिन, इटालियन, फ्रेंच और अंग्रेज़ी साहित्य की परंपराओं से गहराई से प्रभावित था। उन्होंने एक आधुनिक कवि के रूप में अतीत से संवाद करते हुए साहित्य को वर्तमान की ज़रूरतों के अनुकूल ढालने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके विचारों में टी.ई. ह्यूम, मैथ्यू अर्नोल्ड, दांते, शेक्सपियर, जॉन डन जैसे लेखकों का प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है।


परंपरा की अवधारणा: पारंपरिक बनाम एलियट की दृष्टि

एलियट से पहले ‘परंपरा’ का अर्थ अक्सर पुराने साहित्य, धार्मिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक मूल्यों के स्थिर और अपरिवर्तनीय रूपों से लगाया जाता था। परंपरा को रूढ़िवादी दृष्टिकोण से जोड़कर देखा जाता था, जहाँ नवीनता का स्थान कम होता था। इसके विपरीत, एलियट की परंपरा की अवधारणा एक ‘जीवंत संवाद’ की संकल्पना प्रस्तुत करती है।

एलियट के अनुसार, परंपरा एक ऐसी प्रक्रिया है जो केवल ज्ञान के संचयन या अतीत के अनुकरण पर आधारित नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत परंपरागत चेतना है जो वर्तमान को अतीत से जोड़ती है और दोनों को परस्पर प्रभावित करती है। वे लिखते हैं:

“Tradition cannot be inherited, and if you want it you must obtain it by great labour.”

इस कथन के माध्यम से वे स्पष्ट करते हैं कि परंपरा कोई स्वतः प्राप्त होने वाली वस्तु नहीं है, अपितु उसे साधना, अनुशीलन और बौद्धिक परिश्रम से अर्जित किया जाता है।


‘Tradition and the Individual Talent’ : मुख्य तत्त्व

टी. एस. एलियट के इस प्रसिद्ध निबंध में परंपरा की अवधारणा को निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. परंपरा का पुनर्परिभाषण

एलियट कहते हैं कि परंपरा का अर्थ केवल पूर्ववर्ती लेखकों के साहित्य का ज्ञान नहीं है, बल्कि उसमें ‘ऐतिहासिक बोध’ (historical sense) भी निहित है। इस बोध के तहत कवि को न केवल अपने समकालीन साहित्य से परिचित होना चाहिए, बल्कि सम्पूर्ण यूरोपीय साहित्य—होमर से लेकर समकालीन लेखकों तक—के साथ गहरा संवाद भी बनाना चाहिए।

वे कहते हैं:

“The historical sense involves a perception, not only of the pastness of the past, but of its presence.”

यहाँ ‘pastness of the past’ और ‘presence of the past’ के बीच का अंतर महत्वपूर्ण है। पहले का तात्पर्य इतिहास को केवल अतीत मानने से है, जबकि बाद वाला उसे वर्तमान की रचना में भागीदार मानता है।


2. कवि की व्यक्तिगत प्रतिभा और परंपरा का संबंध

एलियट का मानना है कि एक सच्चे कवि की व्यक्तिगत प्रतिभा का मूल्यांकन तभी संभव है जब उसे परंपरा के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। वे यह स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक कवि में अपना ‘individual talent’ होता है, किंतु वह तभी सार्थक है जब वह परंपरा से जुड़ता है। वे इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं:

“No poet, no artist of any art, has his complete meaning alone.”

अर्थात् कोई भी कलाकार अपने आप में पूर्ण नहीं होता, उसका अर्थ तभी स्पष्ट होता है जब उसे साहित्यिक परंपरा के साथ जोड़ा जाए।


3. परंपरा और नवीनता में द्वंद्व नहीं

एलियट परंपरा और नवीनता को एक-दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं देखते। वे कहते हैं कि सच्ची नवीनता वही है जो परंपरा की गहराई से उत्पन्न होती है। यदि कोई कवि परंपरा में समाहित हो जाता है तो वह अपने कार्य में ऐसी नवीनता ला सकता है जो सतही नहीं बल्कि कालजयी हो सकती है। यह विचार उनके इस कथन में स्पष्ट झलकता है:

“What happens when a new work of art is created is something that happens simultaneously to all the works of art which preceded it.”

इसका आशय है कि जब एक नई कृति रची जाती है, तो वह न केवल वर्तमान को बदलती है, बल्कि अतीत की व्याख्या को भी नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है।


4. आत्मत्याग और व्यक्तित्व का विलयन

एलियट की आलोचना में सबसे चर्चित पहलुओं में एक है—“impersonality” या अव्यक्तित्व का सिद्धांत। वे मानते हैं कि एक सच्चा कवि वह होता है जो अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को काव्य में सीधे स्थान न देकर, उन्हें एक व्यापक सांस्कृतिक-साहित्यिक संदर्भ में ढालता है।

वे कहते हैं:

“Poetry is not a turning loose of emotion, but an escape from emotion.”

उनके अनुसार, कविता, भावनाओं की उच्छृंखल अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि भावनाओं से मुक्ति है। कवि को अपने व्यक्तिगत अनुभवों को परंपरा की कसौटी पर कसना चाहिए और उनमें सार्वभौमिकता का अंश लाना चाहिए।


एलियट की अवधारणा के प्रभाव और आलोचना

एलियट की परंपरा की अवधारणा ने साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में एक नई दृष्टि दी। यह विचार कि परंपरा केवल अतीत की पुनरावृत्ति नहीं बल्कि रचनात्मक व्याख्या है, आधुनिक साहित्य को ऐतिहासिक चेतना से जोड़ने में सहायक बनी।

प्रभाव:

  1. नव आलोचना (New Criticism) जैसे साहित्यिक आंदोलनों में एलियट की अवधारणाओं का सीधा प्रभाव देखा जा सकता है।

  2. उनके विचारों ने साहित्यिक मूल्यांकन को ‘कवि के जीवन’ या ‘भावनात्मक प्रतिक्रियाओं’ से हटाकर ‘पाठ के भीतर’ केंद्रित किया।

  3. एलियट के दृष्टिकोण ने यह सिद्ध किया कि महान साहित्य, परंपरा और नवीनता के संतुलन से उपजता है।

आलोचना:

हालाँकि, एलियट की अवधारणा को कुछ आलोचकों ने अति बौद्धिक और अभिजात्यवादी भी कहा है:

  1. रोलां बार्थ, मिशेल फूको, और पोस्टमॉडर्न आलोचक इस बात पर प्रश्न उठाते हैं कि क्या परंपरा की कोई ‘सर्वमान्य’ परिभाषा हो सकती है?

  2. एलियट का पश्चिमोन्मुख दृष्टिकोण, भारतीय या गैर-पश्चिमी साहित्यिक परंपराओं को उतनी मान्यता नहीं देता, जिसे उत्तर-औपनिवेशिक आलोचक प्रश्नांकित करते हैं।

  3. उनके द्वारा आत्मत्याग की जो अवधारणा दी गई, वह कभी-कभी मानवीय भावनाओं की उपेक्षा करती हुई प्रतीत होती है।


भारतीय परिप्रेक्ष्य में एलियट की परंपरा

भारतीय साहित्यिक आलोचना में परंपरा की अवधारणा सदैव जीवंत रही है—चाहें वह काव्यशास्त्र के आचार्यों (जैसे भरतमुनि, आचार्य मम्मट) के माध्यम से हो या भक्ति आंदोलन के कवियों द्वारा। एलियट की यह मान्यता कि परंपरा का वास्तविक अर्थ इतिहास के वर्तमान में उपस्थिति है, भारतीय दृष्टिकोण से भी मेल खाती है, जहाँ रामचरितमानस और गीता जैसी रचनाओं का सदैव नए संदर्भों में पुनर्पाठ होता है।


निष्कर्ष

टी. एस. एलियट की परंपरा की अवधारणा बीसवीं शताब्दी की साहित्यिक आलोचना का एक मील का पत्थर है। उन्होंने परंपरा को न केवल एक ऐतिहासिक उत्तराधिकार के रूप में देखा, बल्कि उसे एक रचनात्मक, विचारशील प्रक्रिया माना जिसमें अतीत और वर्तमान का सतत संवाद चलता रहता है। उनके अनुसार, एक सच्चा कवि वही है जो परंपरा से जुड़कर उसमें नवीनता भरता है, अपने भावों को सार्वभौमिक अनुभवों में रूपांतरित करता है और अपनी कृति को ऐतिहासिक बोध से संपन्न करता है।

एलियट का यह चिंतन आज भी साहित्यिक रचनात्मकता, आलोचना और पाठ विश्लेषण के क्षेत्र में प्रासंगिक बना हुआ है। उन्होंने परंपरा को एक बोझ नहीं, बल्कि रचनात्मक ऊर्जा का स्रोत बताया—जो साहित्य को उसकी ऐतिहासिक गहराई और सांस्कृतिक व्यापकता प्रदान करता है।


♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️

1➤ टी.एस. एलियट का पूरा नाम क्या था?





2➤ एलियट का प्रसिद्ध निबंध “Tradition and the Individual Talent” किस वर्ष प्रकाशित हुआ?





3➤ एलियट के अनुसार परंपरा क्या है?





4➤ एलियट की दृष्टि में परंपरा का मूल तत्व क्या है?





5➤ एलियट का ‘Tradition’ का दृष्टिकोण किसके विरोध में था?





6➤ एलियट के अनुसार, एक सच्चा कवि क्या करता है?





7➤ एलियट के अनुसार परंपरा और नवीनता का संबंध कैसा है?





8➤ एलियट की परंपरा की अवधारणा का प्रभाव किस आंदोलन पर स्पष्ट रूप से देखा गया?





9➤ एलियट के अनुसार, एक नई रचना क्या करती है?





10➤ एलियट ने परंपरा को क्या कहा है?





11➤ किसने यह प्रश्न उठाया कि ‘परंपरा’ की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं हो सकती?





12➤ एलियट के अनुसार, कवि किसके साथ संवाद करता है?





13➤ टी.एस. एलियट का चिंतन साहित्य में किस प्रकार की दृष्टि लाता है?





 

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