आचार्य भरतमुनि के अनुसार रसों की संख्या

भारतीय काव्यशास्त्र में रसों को लेकर आचार्यों में अलग-अलग मत देखने को मिलते हैं। इसलिए जब भी रसों की संख्या को लेकर बात होती है तब इसमें विभिन्न काव्याचार्यों का ज़िक्र होता है। इन्हीं में से एक नाम ‘भरतमुनि’ का आता है। भरतमुनि ने अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र के छठे अध्याय में रसों की संख्या को लेकर एक श्लोक लिखा है, जो इस प्रकार है-

“शृंगारहास्यकरुणा रौद्रवीरभयानकाः;

वीभत्साद्भुतसंज्ञो चेत्यष्टौ नाटये रसाः स्मृताः।”

इसके अनुसार इन्होंने रसों की संख्या आठ मानी है। जो निम्नलिखित हैं-

1. श्रंगार 

2. हास्य

3. करूण

4. रौद्र

5. वीर

6. भयानक

7. बीभत्स

8. अद्भुत

* नाट्यशास्त्र में कुल 36 अध्याय हैं। जिनमें से छठे और सातवें अध्याय में रस का विवेचन किया गया है। 

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