उत्तर आधुनिकतावाद

प्रस्तावना

उत्तर आधुनिकतावाद (Postmodernism) 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उभरा एक सैद्धांतिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक आंदोलन है, जिसने आधुनिकता (Modernism) की स्थिरताओं, सार्वभौमिकताओं और प्रगति की अवधारणाओं को चुनौती दी। यह विचारधारा किसी एक निश्चित सिद्धांत या मत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दृष्टिकोण, एक संवेदनशीलता और एक पद्धति है, जो बहुलता, विखंडन, विडंबना, पाठ की अस्थिरता और पहचान की जटिलताओं को महत्व देती है।

उत्तर आधुनिकतावाद ने साहित्य, कला, दार्शनिक चिन्तन, समाजशास्त्र, संचार, लिंग-अध्ययन और सांस्कृतिक अध्ययन जैसे क्षेत्रों में गहरा प्रभाव डाला। इस लेख में हम उत्तर आधुनिकतावाद के उद्भव, विशेषताएं, प्रमुख विचारक, आलोचना, तथा साहित्यिक प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


उत्तर आधुनिकतावाद का उद्भव और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

उत्तर आधुनिकतावाद का उद्भव द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है। आधुनिकता ने विज्ञान, तकनीक, तर्क और सार्वभौमिक सच्चाई में विश्वास पैदा किया, लेकिन युद्ध, उपनिवेशवाद, पूंजीवाद और सर्वसत्तावाद ने उस विश्वास को झकझोर दिया। हिरोशिमा-नागासाकी, होलोकॉस्ट, उपभोक्तावादी संस्कृति और मीडिया के विस्तार ने मानवता के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाए। उत्तर आधुनिकतावाद इसीलिए आधुनिकता की ‘मेटानैरेशन्स’—जैसे प्रगति, मानवतावाद, ज्ञान की वस्तुनिष्ठता—को अस्वीकार करता है।


उत्तर आधुनिकतावाद की प्रमुख विशेषताएं

  1. मेटानैरेशन्स का अस्वीकार
    उत्तर आधुनिकतावाद समग्र/सार्वभौमिक आख्यानों (Grand Narratives) का खंडन करता है। यह मानता है कि कोई भी सच्चाई सार्वभौमिक नहीं है, बल्कि सभी ज्ञान संदर्भ पर निर्भर होते हैं।

  2. विखंडन (Fragmentation)
    यह दृष्टिकोण अनुभव, पहचान और भाषा को एकरूप मानने के बजाय विखंडित, विविध और बहुलतावादी मानता है। यह साहित्य, कला और संस्कृति में भी दृष्टिगोचर होता है, जहाँ रचनाएँ स्पष्ट आरंभ, मध्य और अंत से परे होती हैं।

  3. विडंबना और परिहास (Irony and Playfulness)
    उत्तर आधुनिकतावाद गंभीरता की जगह विडंबना, व्यंग्य और खेल को महत्व देता है। यह गंभीर विचारों को भी हल्के ढंग से प्रस्तुत करता है।

  4. इंटरटेक्सचुअलिटी
    उत्तर आधुनिक साहित्य अक्सर दूसरे ग्रंथों से संवाद करता है। यह विचार इस मान्यता पर आधारित है कि कोई भी ग्रंथ स्वतंत्र नहीं होता, बल्कि वह अन्य ग्रंथों के साथ अंतर्संबंध में होता है।

  5. पैरोडी और पास्टीश (Pastiche)
    उत्तर आधुनिक कला या साहित्य में विभिन्न शैलियों, विधाओं और भाषिक प्रयोगों को मिलाकर रचना की जाती है। यह किसी एक शैली या स्वरूप से बंधी नहीं होती।

  6. वास्तविकता का पुनर्निर्माण (Hyperreality)
    जीन बौद्रिलार्ड ने कहा कि उत्तर आधुनिक समाज में यथार्थ की जगह “सिमुलेशन्स” (प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व) ने ले ली है। अब हम वास्तविकता नहीं, बल्कि वास्तविकता की छवियाँ अनुभव करते हैं।


उत्तर आधुनिकतावाद के प्रमुख विचारक

  1. जीन-फ्रांस्वा ल्योटार्ड (Jean-François Lyotard)
    उनकी पुस्तक The Postmodern Condition (1979) में उन्होंने मेटानैरेशन्स की आलोचना की और ज्ञान की बहुलता की बात की।

  2. फ्रेडरिक जेमसन (Fredric Jameson)
    उन्होंने उत्तर आधुनिकता को पूंजीवाद की ‘सांस्कृतिक तर्कशक्ति’ कहा और इसे उपभोक्तावादी संस्कृति से जोड़ा।

  3. जाक देरिदा (Jacques Derrida)
    उन्होंने ‘विकेन्द्रीकरण’ और ‘डिकन्स्ट्रक्शन’ (विखंडन) की धारणा दी, जिससे पाठ और अर्थ की स्थिरता पर प्रश्न खड़ा हुआ।

  4. मिशेल फूको (Michel Foucault)
    उन्होंने ज्ञान और सत्ता के बीच संबंध की पड़ताल की और बताया कि कैसे सत्ता संरचनाएँ हमारे ज्ञान को गढ़ती हैं।

  5.  जीन बौद्रिलार्ड (Jean Baudrillard)
    उन्होंने ‘हाइपररियलिटी’ की संकल्पना दी, जिसमें वास्तविकता और कल्पना का भेद मिट जाता है।


उत्तर आधुनिकतावाद का साहित्यिक प्रभाव

उत्तर आधुनिकतावाद ने साहित्य को रूप और विषय दोनों में बदल दिया। इसका प्रभाव कथा-शैली, पात्र-निर्माण, भाषा और पाठक-लेखक संबंध पर भी पड़ा।

  1. कहानी और उपन्यास
    उत्तर आधुनिक उपन्यासों में परंपरागत शिल्प की जगह टूटे हुए शिल्प, अनिश्चित अंत, आत्म-चेतना और पाठ की अस्थिरता को स्थान मिला। उदाहरण के लिए—Gravity’s Rainbow (Thomas Pynchon), Invisible Cities (Italo Calvino) जैसी रचनाओं को देख सकते हैं।

  2. कविता
    उत्तर आधुनिक कविता में बहुलता, प्रतीकों का खेल, भाषिक प्रयोग, विडंबना, और पाठकीय सहभागिता पर जोर दिया गया।

  3. नाटक और रंगमंच
    नाट्य शिल्प में भी उत्तर आधुनिक प्रवृत्तियाँ जैसे मिक्स मीडिया, आत्मसंदर्भ, विडंबना आदि उभरे। Tom Stoppard, Samuel Beckett जैसे नाट्यकारों की रचनाओं में यह देखा जा सकता है।


भारतीय साहित्य में उत्तर आधुनिक प्रवृत्तियाँ

भारतीय साहित्य में भी उत्तर आधुनिकता की छवियाँ दिखाई देती हैं। दलित साहित्य, स्त्री लेखन, आदिवासी साहित्य, भाषाई और सांस्कृतिक विविधताओं को स्वर देने वाले लेखन में उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण निहित है। हिंदी साहित्य में निर्मल वर्मा, कृष्ण बलदेव वैद, मृदुला गर्ग, ज्ञानरंजन, असगर वजाहत, ममता कालिया आदि के लेखन में उत्तर आधुनिक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं।

  • दलित साहित्य: यह ‘प्रमुख’ आख्यानों को चुनौती देता है, हाशिये के अनुभवों को केंद्र में लाता है।

  • स्त्री लेखन: सत्ता, देह, पहचान, लैंगिक भूमिकाओं के प्रति चेतना और प्रतिरोध को उजागर करता है।

  • आंचलिक और भाषाई विविधता: उत्तर आधुनिकतावाद की बहुलतावादी दृष्टि इन प्रवृत्तियों में परिलक्षित होती है।


उत्तर आधुनिकतावाद की आलोचना

  1. निरपेक्षता का संकट: उत्तर आधुनिकतावाद किसी भी निश्चित सत्य या मूल्य को स्वीकार नहीं करता, जिससे मूल्यहीनता और अस्थिरता का खतरा पैदा होता है।

  2. राजनीतिक निष्क्रियता: इसके आलोचकों का मानना है कि यह विचारधारा राजनीतिक प्रतिरोध को कमज़ोर करती है क्योंकि यह सभी प्रतिरोध को एक ‘रचना’ मानकर नष्ट कर देती है।

  3. जटिलता और दुरूहता: उत्तर आधुनिक लेखन अत्यधिक जटिल और दार्शनिक होता है, जिससे सामान्य पाठक उससे जुड़ नहीं पाता।

  4. उपभोक्तावाद से संलग्नता: कुछ विचारक इसे पूंजीवादी उपभोक्ता संस्कृति का बौद्धिक आवरण मानते हैं, जो केवल सतही खेल और शैली पर केंद्रित है।


निष्कर्ष

उत्तर आधुनिकतावाद समकालीन युग की जटिलताओं, विविधताओं और विखंडनों को समझने का प्रयास है। यह सत्ता, भाषा, ज्ञान और संस्कृति के पारंपरिक प्रतिमानों को चुनौती देता है और एक बहुलतावादी, संदिग्ध और आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। हालाँकि इसकी आलोचना भी होती रही है, परंतु इससे उपजे विमर्शों ने साहित्य, समाज और संस्कृति को नये ढंग से समझने का अवसर दिया है।

उत्तर आधुनिकतावाद हमें यह सिखाता है कि सच्चाइयाँ हमेशा संदर्भ से निर्मित होती हैं,  बहुलता में सौंदर्य है तथा विडंबना और आत्मचेतना के सहारे हम जटिल यथार्थ को बेहतर समझ सकते हैं। यह विचारधारा आज भी विमर्शों में सक्रिय है और आने वाले समय में नए संदर्भों के साथ और अधिक प्रासंगिक होती जाएगी।


♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️

1➤ उत्तर आधुनिकतावाद किस शताब्दी में प्रमुख रूप से उभरा?





2➤ उत्तर आधुनिकतावाद किसके ‘मेटानैरेशन्स’ को चुनौती देता है?





3➤ ‘The Postmodern Condition’ पुस्तक के लेखक कौन हैं?





4➤ उत्तर आधुनिकता किसके साथ अधिक संबद्ध है?





5➤ उत्तर आधुनिक साहित्य में इंटरटेक्सचुअलिटी का क्या तात्पर्य है?





6➤ उत्तर आधुनिक साहित्य में पाठक की क्या भूमिका है?





7➤ कौन-सा लेखक उत्तर आधुनिक नाट्य शैली से जुड़ा है?





8➤ उत्तर आधुनिक रचनाओं में किस शैली का प्रचलन अधिक है?





9➤ जीन बौद्रिलार्ड ने किस अवधारणा को प्रस्तुत किया?





10➤ उत्तर आधुनिक लेखन की आलोचना किस रूप में की जाती है?





11➤ उत्तर आधुनिकतावाद की एक प्रमुख आलोचना क्या है?





 

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