भूमिका
पाश्चात्य काव्यशास्त्र के इतिहास में ‘लोंजाइनस’ (Longinus) एक महत्वपूर्ण नाम है, जिन्होंने काव्य के मूल्यांकन में ‘उदात्तता’ (Sublimity) को केंद्र में रखकर एक विशिष्ट सौंदर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका ग्रंथ “On the Sublime” न केवल काव्यालंकारशास्त्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि विश्व साहित्य में सौंदर्य, प्रभाव और रचनात्मकता की मीमांसा के लिए भी आधार-स्तंभ बन चुका है।
लोंजाइनस का यह सिद्धांत “उदात्त तत्व” पर आधारित है — ऐसा तत्व जो पाठक या श्रोता के मन में विस्मय, श्रद्धा, और आत्मविस्मृति उत्पन्न करता है। यह तत्व काव्य, वाणी, या अन्य कलाओं के माध्यम से उत्पन्न हो सकता है। यह लेख लोंजाइनस के उदात्तता संबंधी सिद्धांत का गहराई से परीक्षण करता है, और उसकी विशेषताओं, स्रोतों, प्रभावों और समकालीन महत्त्व को उजागर करता है।
लोंजाइनस और उसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
लोंजाइनस का वास्तविक जीवन परिचय आज भी विवादास्पद है। विद्वानों में मतभेद है कि On the Sublime ग्रंथ का लेखक वास्तव में कौन था — कहीं-कहीं इसे “डायोनिसियस लोंजाइनस” (Dionysius Longinus) माना गया है, तो कहीं “अनजान लेखक”। फिर भी, यह ग्रंथ प्रथम या तृतीय शताब्दी के बीच किसी ग्रीक लेखक द्वारा रचित माना जाता है।
इस ग्रंथ में लेखक ने प्लेटो, होमर, डेमोस्थनीज, अरस्तु आदि महान लेखकों के उदाहरणों द्वारा यह दिखाने का प्रयास किया है कि काव्य या वक्तृत्व में उदात्तता क्या है, यह क्यों महत्वपूर्ण है, और यह कैसे प्राप्त की जाती है।
‘उदात्त तत्व’ की परिभाषा
लोंजाइनस के अनुसार, “उदात्तता वह है जो पाठक के मन को ऊँचाई पर उठा ले जाती है, उसे विस्मय और गरिमा से भर देती है।” यह ऐसा भाव है जो मनुष्य को उसकी सीमाओं से ऊपर उठा देता है, एक प्रकार की transcendence या आध्यात्मिक उन्नयन की अनुभूति देता है।
लोंजाइनस के शब्दों में:
“Sublimity is the echo of a great soul.”
इस उद्धरण में स्पष्ट है कि उदात्तता केवल शाब्दिक अलंकरण या शैली का परिणाम नहीं है, बल्कि यह लेखक की अंत:प्रेरणा, भावना, और आत्मा की गहराई का प्रतिबिंब है।
उदात्तता के लक्षण
लोंजाइनस ने कुछ मुख्य लक्षणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि उदात्त काव्य कैसा होता है:
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विस्मयजनक प्रभाव (Astonishment): उदात्त रचना पाठक को चौंका देती है, उसे स्तब्ध कर देती है।
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स्मरणीयता (Memorability): उदात्त भावों से युक्त रचनाएँ पाठक के मन में लंबे समय तक रहती हैं।
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भावनात्मक तीव्रता (Emotional Intensity): ये रचनाएँ गहरी भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं।
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आत्मविस्मृति (Self-Forgetfulness): पाठक अपने अस्तित्व को भूलकर उस अनुभूति में डूब जाता है।
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आत्मिक उन्नयन (Elevation of Soul): यह रचना आत्मा को ऊँचाई पर उठा देती है।
उदात्तता के पाँच स्रोत (Sources of Sublimity)
लोंजाइनस ने उदात्तता के पाँच प्रमुख स्रोत बताए हैं:
1. महान विचार (Grandeur of Thought)
यह उदात्तता का आधारभूत स्रोत है। लेखक का मन विशाल हो, उसके चिंतन में व्यापकता हो — तभी वह महान विचारों को जन्म सकता है। लोंजाइनस का मानना है कि नैतिक चरित्र और आध्यात्मिक ऊँचाई से ही विचारों में उदात्तता आती है।
2. उदात्त भावनाएँ (Vehement Emotions)
उदात्तता तब उत्पन्न होती है जब रचनाकार गहन और प्रबल भावनाओं को पूरी ईमानदारी के साथ व्यक्त करता है। इन भावनाओं में करुणा, भय, वीरता, प्रेम आदि शामिल हो सकते हैं।
3. उचित अलंकारों का प्रयोग (Figures of Speech)
लोंजाइनस ने विशेष रूप से दो प्रकार के अलंकारों की चर्चा की है:
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विचार की अलंकारिता (Figures of Thought)
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शब्दों की अलंकारिता (Figures of Speech)
ये अलंकार तभी प्रभावशाली होते हैं जब वे भावना से अभिभूत हों, न कि केवल तकनीकी दृष्टि से।
4. शब्दों की गरिमा और अनुगूंज (Noble Diction)
लोंजाइनस के अनुसार, शब्दों की गुणवत्ता, उनके संयोजन और ध्वन्यात्मक सौंदर्य से भी उदात्तता उत्पन्न होती है। शब्द चयन में गरिमा होनी चाहिए, परंतु कृत्रिमता नहीं।
5. संतुलित रचना (Dignified Composition)
अंततः सम्पूर्ण रचना की शैली, रूप-संरचना और प्रवाह में भी उदात्तता का संचार होना चाहिए। केवल अच्छे शब्द या भाव ही नहीं, बल्कि उनकी सुसंगतता भी ज़रूरी है।
लोंजाइनस की आलोचना-प्रणाली
लोंजाइनस की आलोचना न केवल साहित्यिक शैलियों की तकनीकी जांच करती है, बल्कि रचनाकार की आत्मा, भाव और विचार की ऊँचाई को भी मूल्यांकित करती है।
यहाँ तीन प्रमुख विशेषताएँ देखी जा सकती हैं:
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भावप्रधान आलोचना (Emotive Criticism):
उन्होंने तकनीकीता से अधिक भावना और आत्मिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। -
प्रभाव-आधारित आलोचना (Impact-Based Evaluation):
काव्य का मूल्य इस बात से तय होता है कि वह पाठक पर कैसा प्रभाव डालता है। -
मानवता और नैतिकता का समावेश:
उदात्तता केवल शिल्प नहीं, चरित्र और नैतिक ऊँचाई का प्रतीक भी है।
लोंजाइनस का आधुनिक महत्त्व
लोंजाइनस के सिद्धांत की प्रासंगिकता आज भी कायम है:
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रचनात्मक लेखन में मार्गदर्शन:
उदात्तता की खोज आज भी साहित्य, सिनेमा, भाषण, और अन्य कलाओं में प्रेरणा का स्रोत है। -
सौंदर्यशास्त्र का विकास:
उन्होंने कला के ‘भावातीत’ (transcendental) पक्ष को उजागर किया, जिसे बाद में कांट (Kant), बर्क (Burke) और रोमांटिक कवियों ने आगे बढ़ाया। -
भावनात्मक सम्प्रेषण का आदर्श:
आज के समय में जब संप्रेषण तकनीक-प्रधान हो गई है, तब लोंजाइनस की भावात्मकता एक मानवीय संतुलन का बोध कराती है।
भारतीय काव्यशास्त्र से तुलनात्मक दृष्टि
लोंजाइनस की उदात्तता की अवधारणा भारतीय काव्यशास्त्र के ‘रस’ सिद्धांत, विशेषकर ‘श्रृंगार’ और ‘वीर’ रसों के उदात्त रूपों से मेल खाती है।
उदाहरण के लिए:
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भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में रस को आत्मानुभूति और भावातीत आनंद से जोड़ा।
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आनंदवर्धन ने ‘ध्वनि’ के माध्यम से रस की अभिव्यक्ति पर ज़ोर दिया, जो उदात्तता की तरह ही अप्रत्यक्ष और गूढ़ होती है।
इस प्रकार लोंजाइनस की विचारधारा विश्व-साहित्य में एक सामान्य सौंदर्यशास्त्र की पुष्टि करती है।
उदात्तता के उदाहरण
लोंजाइनस ने होमर के Iliad और Odyssey, प्लेटो के संवादों, और डेमोस्थनीज के भाषणों से उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
भारतीय साहित्य में तुल्य उदाहरण:
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वाल्मीकि रामायण में राम का समुद्र पर क्रोध — वीर रस और उदात्तता का सुंदर संयोग है।
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महाभारत में अर्जुन का मोह और श्रीकृष्ण का गीता उपदेश — गूढ़ विचार, महान भावना और आत्म-उन्नयन का प्रतीक है।
निष्कर्ष
लोंजाइनस का ‘उदात्त तत्व’ पर आधारित सिद्धांत साहित्य, कला और दर्शन में सौंदर्य के उच्चतम आदर्श की पहचान है। यह हमें यह सिखाता है कि सच्चा साहित्य वही है जो आत्मा को छूता है, सोच को ऊँचा करता है और हमें हमारे सीमित व्यक्तित्व से ऊपर उठाकर एक व्यापक मानवीय अनुभव में लीन कर देता है।
वर्तमान साहित्यिक आलोचना में जहाँ औपचारिकता, तकनीक, और भाषा की व्याकरणिक जांच प्रमुख हो गई है, वहाँ लोंजाइनस की यह मानवीय और प्रभावप्रधान दृष्टि एक आत्मीय और आवश्यक संतुलन प्रस्तुत करती है।
♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ लोंजाइनस का ग्रंथ “On the Sublime” किस तत्व पर आधारित है?
2➤ लोंजाइनस ने उदात्तता को किसका परिणाम माना है?
3➤ लोंजाइनस के अनुसार उदात्तता का एक प्रमुख स्रोत क्या है?
4➤ निम्न में से कौन सा लोंजाइनस द्वारा बताए गए उदात्तता के स्रोतों में शामिल नहीं है?
5➤ उदात्तता की परिभाषा के अनुसार यह पाठक के मन को क्या प्रदान करती है?
6➤ “On the Sublime” ग्रंथ में किन लेखकों के उदाहरण मिलते हैं?
7➤ उदात्तता का अंतिम उद्देश्य क्या है?
8➤ लोंजाइनस की विचारधारा किस भारतीय सिद्धांत से मिलती है?
9➤ महाभारत का कौन-सा प्रसंग उदात्तता का उदाहरण है?
10➤ उदात्तता में कौन-सा तत्व सबसे आवश्यक है?
11➤ ‘उदात्तता’ शब्द का अंग्रेज़ी समकक्ष क्या है?
12➤ लोंजाइनस की विचारधारा किसके लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है?