हिंदी की उपभाषाएं

प्रस्तावना

हिंदी एक विशाल भाषिक समुदाय की भाषा है, जिसका उपयोग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी होता है। यह भाषा अपनी विविधताओं के लिए प्रसिद्ध है। मानक हिंदी के अंतर्गत अनेक उपभाषाएं आती हैं, जिनकी अपनी स्वतंत्र पहचान, ध्वनि-व्यवस्था, व्याकरण और साहित्यिक परंपराएं हैं। हिंदी की ये उपभाषाएं विविध क्षेत्रों में बोली जाती हैं और सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करती हैं। इस लेख में हम हिंदी की पाँच प्रमुख उपभाषा-शाखाओं – पूर्वी हिंदी, पश्चिमी हिंदी, बिहारी, राजस्थानी, और पहाड़ी – का भाषिक, साहित्यिक और सामाजिक विश्लेषण करेंगे।

 

1. पूर्वी हिंदी

भौगोलिक विस्तार

पूर्वी हिंदी उपभाषाएँ उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के कुछ पूर्वी जिलो, और छत्तीसगढ़ तक फैली हुई हैं।

प्रमुख उपभाषाएँ

  • अवधी
  • बघेली
  • छत्तीसगढ़ी

(क) अवधी

  • क्षेत्रः फैजाबाद, लखनऊ, सुल्तानपुर, अयोध्या, बाराबंकी आदि
  • विशेषताएँः अवधी में कोमलता, माधुर्य और काव्यात्मकता है। ध्वनियों में सरलता और व्याकरण में लचक देखने को मिलती है।
  • साहित्यिक योगदानः तुलसीदास की रामचरितमानस, मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत, रहीम और कबीर की रचनाएँ इस भाषा में रची गईं।

(ख) बघेली

  • क्षेत्रः मध्य प्रदेश का रीवा, सतना, सीधी
  • विशेषताएँः इसमें अवधी से मिलती-जुलती विशेषताएं पाई जाती है, लेकिन इसके साथ ही बुंदेली और मैथिली का प्रभाव भी देखने को मिलता हैं।
  • साहित्यः इसमें कुछ लोककथाएं और गीत प्रचलित हैं।

(ग) छत्तीसगढ़ी

  • क्षेत्रः छत्तीसगढ़ राज्य
  • विशेषताएँः इसमें हमें स्वतंत्र उच्चारण प्रणाली और सरल व्याकरण देखने को मिलता है, इसके साथ ही द्रविड़, ओड़िया और मराठी का प्रभाव भी दिखता है।
  • लोक संस्कृतिः पंडवानी, नाचा, चंदैनी जैसे लोकनाट्य रूपों में यह भाषा प्रयुक्त होती है।

 

2. पश्चिमी हिंदी

भौगोलिक विस्तार

उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भाग, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र, और मध्य प्रदेश का उत्तर-पश्चिमी हिस्सा इस उपभाषा क्षेत्र में आता है।

प्रमुख उपभाषाएँ

  • ब्रजभाषा
  • बुंदेली
  • हरियाणवी
  • कन्नौजी
  • खड़ी बोली

(क) ब्रजभाषा

  • क्षेत्रः मथुरा, वृंदावन, आगरा, अलीगढ़
  • विशेषताएँः अत्यंत मधुर, काव्यात्मक और संगीतमय भाषा।
  • साहित्यिक गौरवः यह सूरदास, रसखान, बिहारी जैसे कवियों की प्रिय भाषा रही है।

(ख) बुंदेली

  • क्षेत्रः झांसी, सागर, टीकमगढ़
  • विशेषताएँः इसमें हमें वीर रस प्रधान, आल्हा और लोकगीतों की समृद्ध परंपरा देखने को मिलती है।
  • सांस्कृतिक स्वरूपः यह बुंदेलखंड की पहचान से जुड़ी हुई है।

(ग) हरियाणवी

  • क्षेत्रः हरियाणा, दिल्ली
  • विशेषताएँः इसके उच्चारण में कठोरता है और इसमें हमें पंजाबी और राजस्थानी का प्रभाव दिखता है।
  • लोकभाषाः रागनियों, किस्सों, और नाटकों में इसका व्यापक उपयोग किया गया है।

(घ) कन्नौजी

  • क्षेत्रः कानपुर, इटावा, फर्रुखाबाद
  • विशेषताएँः यह खड़ी बोली और ब्रजभाषा के बीच की कड़ी मानी जाती है।

(ङ) खड़ी बोली

  • क्षेत्रः पश्चिमी उत्तर प्रदेश (मेरठ, सहारनपुर) दिल्ली,उत्तराखंड, हरियाणा आदि क्षेत्रों के साथ विदेशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, मॉरिशस, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो) में इसका विस्तार देखने को मिलता है।
  • विशेषताएँः इसमें व्याकरणिक दृढ़ता और स्पष्ट उच्चारण मिलता है, इसके साथ ही यह मानक हिंदी का आधार भी है।
  • साहित्यिक विकासः 19वीं सदी से यह आधुनिक गद्य और काव्य की भाषा है।

 

3. बिहारी उपभाषाएं

भौगोलिक विस्तार

ये उपभाषाएं बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में फैली हुईं हैं।

प्रमुख उपभाषाएँ

  • मैथिली
  • भोजपुरी
  • मगही
  • अंगिका

(क) मैथिली

  • क्षेत्रः मिथिला (बिहार का उत्तर-पूर्वी भाग, नेपाल का तराई क्षेत्र)
  • विशेषताएँः संस्कृतनिष्ठ, संगीतात्मक, व्याकरणिक दृष्टि से परिपक्व।
  • साहित्यिक इतिहासः यह हमें विद्यापति की रचनाओं में देखने को मिलती है। 2003 में इसे आठवीं अनुसूची में स्वतंत्र भाषा के रूप में स्थान प्राप्त हुआ।

(ख) भोजपुरी

  • क्षेत्रः पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार, नेपाल, मॉरीशस
  • विशेषताएँः यह भाषा अत्यंत सरल है, इसका स्पष्ट उच्चारण है और यह लोकरंग से युक्त है।
  • वर्तमान स्वरूपः भोजपुरी सिनेमा और लोकगीतों से इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।

(ग) मगही

  • क्षेत्रः गया, पटना, नवादा, झारखंड का उत्तरी भाग
  • विशेषताएँः यह पुरानी मगध भाषा की उत्तराधिकारी है और इसकी शब्द-संरचना में हमें विशिष्टता दिखाई देती है।

(घ) अंगिका

  • क्षेत्रः भागलपुर, मुंगेर, बांका
  • विशेषताएँः इसपर मैथिली और बंगाली का प्रभाव, है और यह लोकगीतों में प्रचलित है।

 

4. राजस्थानी उपभाषाएं

भौगोलिक विस्तार

राजस्थान का पूरा क्षेत्र, हरियाणा और गुजरात के कुछ हिस्से।

प्रमुख उपभाषाएँ

  • मारवाड़ी
  • मेवाड़ी
  • ढूंढाड़ी
  • हाड़ौती
  • शेखावाटी

(क) मारवाड़ी

  • क्षेत्रः जोधपुर, बीकानेर, नागौर
  • विशेषताएँः इसकी ध्वनियाँ कठोर हैं और यह वीर रस प्रधान भाषा है।
  • साहित्यः इसमें लोककथाएं, गीत, दोहे आदि लिखे गए।

(ख) मेवाड़ी

  • क्षेत्रः उदयपुर, चित्तौड़गढ़
  • विशेषताएँः इसमें लयात्मकता और आंचलिक संस्कृति की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

(ग) ढूंढाड़ी

  • क्षेत्रः जयपुर और आस-पास
  • विशेषताएँः इसमें खड़ी बोली से थोड़ा मेल दिखाई देता है और राजस्थानी संस्कृति की बानगी भी दिखती है।

(घ) हाड़ौती

  • क्षेत्रः कोटा, झालावाड़, बूंदी
  • विशेषताएँः यह सुसंस्कृत और प्राचीन साहित्य की धरोहर है।

 

5. पहाड़ी हिंदी (पहाड़ी उपभाषाएं)

भौगोलिक विस्तार

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और नेपाल के कुछ क्षेत्र।

प्रमुख उपभाषाएँ

  • गढ़वाली
  • कुमाऊंनी
  • जौनसारी
  • सिरमौरी

(क) गढ़वाली

  • क्षेत्रः गढ़वाल मंडल
  • विशेषताएँः इसमें हमें उच्चारण में भिन्नता तथा लोकगीतों और देवी-देवताओं से संबंधित लोककथाओं की समृद्ध परंपरा देखने को मिलती है।

(ख) कुमाऊंनी

  • क्षेत्रः नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़
  • विशेषताएँः इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दावली और पर्वतीय लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति दिखाई देती है।

(ग) जौनसारी, सिरमौरी

  • क्षेत्रः उत्तराखंड-हिमाचल सीमावर्ती क्षेत्र
  • विशेषताएँः इसमें पहाड़ी बोलियों का मिश्रण है और इसका सीमित ही साहित्यिक विकास हुआ है।

 

भाषिक संबंध और विकास की धारा

हिंदी की ये सभी उपभाषाएं संस्कृत → प्राकृत → अपभ्रंश की विकासधारा से निकली हैं। अपभ्रंश से स्थानीय भाषिक विविधताओं के अनुसार इन उपभाषाओं का उद्भव हुआ। खड़ी बोली आधारित मानक हिंदी ने जहां शिक्षा और प्रशासन में स्थान प्राप्त किया, वहीं उपभाषाओं ने जनजीवन और लोकसंस्कृति को संजोए रखने का कार्य किया।

उपसंहार

हिंदी की उपभाषाएं हमारी भाषाई विरासत की विविध रंगों वाली माला हैं। वे हिंदी को केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि एक बहुरंगी सांस्कृतिक रूप प्रदान करती हैं । इन उपभाषाओं का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि ये हमारी पहचान, संस्कृति और परंपराओं की संवाहक हैं। आधुनिक समय में इनके अस्तित्व पर तकनीकी और शैक्षणिक दबाव है, परंतु डिजिटल माध्यमों और क्षेत्रीय साहित्यिक प्रयासों से इन उपभाषाओं को नई ऊर्जा मिल रही है। हमें न केवल मानक हिंदी को बढ़ावा देना है, बल्कि उसकी जड़ों को भी सहेजना है – और ये जड़ें उपभाषाओं में ही विद्यमान हैं।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1➤ अवधी भाषा में रचित रामचरितमानस के रचयिता कौन हैं?





2➤ बघेली भाषा मुख्य रूप से किस राज्य में बोली जाती है?





3➤ ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि कौन हैं?





4➤ बुंदेली भाषा किस रस से प्रमुख रूप से जुड़ी हुई है?





5➤ हरियाणवी भाषा में किसका प्रभाव अधिक देखा जाता है?





6➤ खड़ी बोली को मानक हिंदी का आधार कब से माना जाने लगा?





7➤ मैथिली भाषा को आठवीं अनुसूची में कब शामिल किया गया?





8➤ मगही भाषा किस प्राचीन भाषा की उत्तराधिकारी मानी जाती है?





9➤ अंगिका भाषा पर किसका प्रभाव देखा जाता है?





10➤ राजस्थानी उपभाषाओं में सबसे कठोर ध्वनि वाली भाषा कौन सी है?





11➤ मेवाड़ी भाषा मुख्यतः किस क्षेत्र में बोली जाती है?





12➤ हाड़ौती उपभाषा का प्रमुख क्षेत्र कौन सा है?





13➤ कुमाऊंनी भाषा में किस प्रकार की शब्दावली प्रमुख है?





14➤ जौनसारी और सिरमौरी भाषाएं किन क्षेत्रों में बोली जाती हैं?





15➤ हिंदी की सभी उपभाषाएं किस भाषिक परंपरा से निकली हैं?





 

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