भूमिका
मानव सभ्यता के बौद्धिक इतिहास में बीसवीं शताब्दी को विचारों की क्रांतिकारी शताब्दी माना जाता है। इस युग में न केवल साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में नए प्रयोग हुए, बल्कि भाषा, दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में भी नए वैचारिक दृष्टिकोण विकसित हुए। इसी बौद्धिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्त्वपूर्ण विचारधारा के रूप में संरचनावाद (Structuralism) का उदय हुआ।
संरचनावाद ने भाषा, साहित्य और समाज के अध्ययन में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें किसी एक तत्व को अलग करके नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संरचना के संदर्भ में समझने पर बल दिया गया। यह विचारधारा कहती है कि किसी भी सांस्कृतिक, भाषिक या साहित्यिक तत्त्व को तब ही समझा जा सकता है जब हम उसे एक व्यापक संरचना का भाग मानकर देखें।
1. संरचनावाद की अवधारणा
‘संरचनावाद’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द “structura” से हुई है, जिसका अर्थ है – ‘निर्माण’, ‘रचना’ या ‘संरचना’।
संरचनावाद एक ऐसी बौद्धिक पद्धति है जो मानती है कि किसी भी वस्तु, विचार, भाषा, साहित्य, मिथक या संस्कृति का अर्थ उसके आंतरिक संबंधों की संरचना के अध्ययन से समझा जा सकता है।
यह दृष्टिकोण कहता है कि:
“किसी एक तत्व का अर्थ उसके स्वयं में निहित न होकर, उसके अन्य तत्वों के साथ संबंधों में निहित होता है।”
उदाहरण के लिए, भाषा में ‘बिल्ली’ शब्द का अर्थ इसलिए समझ में आता है क्योंकि वह ‘कुत्ता’, ‘गाय’ या ‘घोड़ा’ जैसे अन्य शब्दों से भिन्न है। इसी प्रकार साहित्य में भी कोई पात्र, प्रसंग या प्रतीक तब अर्थपूर्ण होता है जब उसे संपूर्ण कथा या काव्य संरचना के भीतर देखा जाए।
2. संरचनावाद का ऐतिहासिक विकास
(क) भाषाविज्ञान में संरचनावाद का उद्भव
संरचनावाद की वैचारिक नींव स्विस भाषाविज्ञानी फर्डिनां दे सॉस्यूर (Ferdinand de Saussure) ने रखी।
उनकी पुस्तक “Course in General Linguistics” (1916, मरणोपरांत प्रकाशित) में उन्होंने भाषा को एक संरचना (Structure) के रूप में समझने का प्रस्ताव रखा।
उन्होंने भाषा के अध्ययन में दो महत्त्वपूर्ण विभेद प्रस्तुत किए –
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Langue (भाषा) और Parole (वाक्)
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Langue से आशय है – भाषा की सामूहिक, सामाजिक प्रणाली।
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Parole से आशय है – भाषा का व्यक्तिगत प्रयोग।
संरचनावादियों ने Langue को अध्ययन का विषय माना, क्योंकि यह संरचनात्मक रूप से व्यवस्थित प्रणाली है।
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Signifier (संकेतक) और Signified (संकेतित)
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Signifier वह शब्द/ध्वनि है जो संकेत करता है।
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Signified वह धारणा/अर्थ है जो संकेतित होता है।
इन दोनों के संबंध को सॉस्यूर ने मनमाना (arbitrary) माना और कहा कि भाषा में अर्थ इस संबंध के माध्यम से ही निर्मित होते हैं।
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(ख) मानवशास्त्र में संरचनावाद
फ्रांसीसी मानवशास्त्री क्लोद लेवी-स्ट्रॉस (Claude Levi-Strauss) ने संरचनावाद को मिथकों, लोककथाओं और सामाजिक संरचनाओं के अध्ययन में लागू किया।
उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों की मिथकीय कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया और पाया कि उनके पीछे एक समान गहन संरचना (deep structure) कार्यरत है। उदाहरण के लिए, लगभग सभी मिथकों में विरोधात्मक युग्म (binary oppositions) जैसे – जीवन/मृत्यु, अच्छा/बुरा, पुरुष/स्त्री, प्रकाश/अंधकार आदि विद्यमान होते हैं। ये विरोधात्मक युग्म ही मिथकों के अर्थ को निर्धारित करते हैं।
(ग) साहित्य में संरचनावाद का प्रवेश
भाषाविज्ञान और मानवशास्त्र से विकसित संरचनावाद 1950–60 के दशक में साहित्यिक आलोचना में प्रविष्ट हुआ।
फ्रांस में रोलां बार्थ (Roland Barthes), जेरार्ड जेनेट (Gerard Genette), टोडोरोव (Tzvetan Todorov) आदि आलोचकों ने संरचनात्मक पद्धति को साहित्य के विश्लेषण में अपनाया।
उनका मानना था कि साहित्यिक कृति को एक स्वतन्त्र संरचना के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, न कि लेखक के जीवन, उद्देश्य या सामाजिक संदर्भों के आधार पर।
3. संरचनावाद के मूल सिद्धांत
संरचनावाद की पद्धति को समझने के लिए इसके कुछ प्रमुख सिद्धांतों को जानना आवश्यक है:
(क) संरचना की प्राथमिकता
संरचनावाद में व्यक्तिगत तत्वों से अधिक महत्त्व संरचना को दिया जाता है। भाषा या साहित्य में अर्थ किसी एक शब्द या पात्र में नहीं, बल्कि उनकी पारस्परिक स्थिति और संबंधों में निहित होता है।
(ख) विरोधात्मक युग्म (Binary Oppositions)
संरचनावादी विश्लेषण अक्सर विरोधात्मक युग्मों की पहचान पर आधारित होता है।
उदाहरण: नायक/खलनायक, दिन/रात, संस्कृति/प्रकृति, जीवन/मृत्यु आदि।
इन युग्मों के बीच की अंतःक्रिया से ही किसी कथा या पाठ की संरचना बनती है।
(ग) सतही संरचना और गहन संरचना
संरचनावादी यह मानते हैं कि प्रत्येक सांस्कृतिक या साहित्यिक रूप के पीछे कुछ सार्वभौमिक गहन संरचनाएँ होती हैं, जो विभिन्न सतही रूपों में प्रकट होती हैं।
उदाहरण के लिए, ‘हीरो की यात्रा’ (Hero’s Journey) की गहन संरचना विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग कथाओं में सतही रूप से दिखाई देती है।
(घ) लेखक की भूमिका का गौण होना
संरचनावाद साहित्यिक अर्थ के निर्माण में लेखक की मंशा को निर्णायक नहीं मानता। इसके अनुसार पाठ स्वयं एक संरचना है जो अपने आंतरिक नियमों से अर्थ उत्पन्न करता है।
रोलां बार्थ ने अपने प्रसिद्ध निबंध “The Death of the Author” में कहा कि पाठ को लेखक से स्वतंत्र होकर पढ़ा जाना चाहिए।
(ङ) वैज्ञानिक पद्धति का आग्रह
संरचनावादियों ने साहित्यिक अध्ययन में भाषाविज्ञान जैसी वस्तुनिष्ठ, नियमबद्ध और व्यवस्थित पद्धति अपनाने पर बल दिया। उनका उद्देश्य साहित्यिक आलोचना को व्यक्तिपरक व्याख्याओं से मुक्त कर एक अनुशासित अध्ययन बनाना था।
4. साहित्य में संरचनावादी आलोचना की प्रक्रिया
संरचनावादी आलोचना किसी साहित्यिक कृति को ‘पाठ’ (Text) मानकर उसकी संरचना का विश्लेषण करती है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हो सकते हैं:
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पाठ को एक आत्मनिर्भर संरचना के रूप में देखना — बाह्य सन्दर्भों से हटकर।
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पाठ में उपस्थित रूपकों, प्रतीकों, कथानक संरचना, पात्रों और भाषिक चिह्नों की पहचान करना।
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इन तत्वों के आपसी संबंधों और विरोधात्मक युग्मों का विश्लेषण करना।
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गहन संरचना या सार्वभौमिक रूपों को पहचानना जो पाठ के अर्थ को नियन्त्रित करते हैं।
उदाहरण के लिए, किसी उपन्यास में यदि नायक–खलनायक, शहर–गाँव, परम्परा–आधुनिकता जैसे विरोधात्मक युग्म बार-बार सामने आते हैं, तो आलोचक इनके पारस्परिक संबंधों से कृति की संरचनात्मक रूपरेखा को समझने का प्रयास करेगा।
5. संरचनावाद और हिंदी साहित्य
हिंदी साहित्य में संरचनावाद का प्रभाव मुख्यतः 1960 के दशक के बाद दिखाई देने लगा। भारत में जब आधुनिक साहित्यिक आलोचना पद्धतियाँ पश्चिम से आयातित हो रही थीं, तब संरचनावाद को भी हिंदी आलोचना ने अपनाया। कुछ हिंदी आलोचकों ने संरचनावाद को साहित्य की आंतरिक संरचना को समझने का वैज्ञानिक उपकरण माना, तो कुछ ने इसकी सीमाओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों को नज़रअंदाज़ कर देता है।
उदाहरण के लिए, प्रेमचंद के उपन्यास “गोदान” का संरचनावादी विश्लेषण किया जाए तो उसमें ग्रामीण–शहरी, परंपरा–आधुनिकता, धनवान–गरीब जैसे विरोधात्मक युग्म स्पष्ट दिखते हैं। इन युग्मों की संरचना ही कथानक को आगे बढ़ाती है और पात्रों के संबंधों को निर्धारित करती है।
6. संरचनावाद की विशेषताएँ
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संरचना पर बल — व्यक्तिगत तत्वों से अधिक महत्त्व संबंधों को दिया गया।
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भाषा और संकेतों का वैज्ञानिक विश्लेषण।
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विरोधात्मक युग्मों की पहचान और विश्लेषण।
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गहन संरचनाओं की खोज।
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लेखक और पाठक से अधिक पाठ (Text) पर ध्यान।
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वस्तुनिष्ठ और नियमबद्ध अध्ययन पद्धति।
7. संरचनावाद की सीमाएँ एवं आलोचना
संरचनावाद की उपयोगिता के साथ-साथ इसकी कई सीमाएँ भी मानी गई हैं:
(क) इतिहास और समाज की उपेक्षा
संरचनावाद मुख्यतः पाठ की आंतरिक संरचना पर केन्द्रित रहता है और ऐतिहासिक, सामाजिक तथा वैचारिक संदर्भों को गौण मानता है। इसलिए कई आलोचकों का मानना है कि यह साहित्य की सामाजिक प्रासंगिकता को अनदेखा कर देता है।
(ख) मानव चेतना और सृजनशीलता की अनदेखी
संरचनावाद में लेखक की भूमिका को लगभग नकार दिया गया है। आलोचकों का कहना है कि इससे साहित्य में मानवीय रचनात्मकता और भावनात्मकता की उपेक्षा होती है।
(ग) स्थिरता और यांत्रिकता
संरचनावाद किसी पाठ को स्थिर संरचना मानकर चलता है, जबकि पाठों का अर्थ समय, समाज और पाठक के अनुसार बदलता रहता है।
(घ) उत्तर-संरचनावाद का उद्भव
इन सीमाओं के कारण 1970 के दशक में उत्तर-संरचनावाद (Post-Structuralism) का उद्भव हुआ, जिसने संरचनावाद के स्थिर और नियतवादी दृष्टिकोण को चुनौती दी। जैक दरीदा (Jacques Derrida) जैसे विचारकों ने ‘विघटन’ (Deconstruction) का सिद्धांत प्रस्तुत कर यह दिखाया कि अर्थ हमेशा स्थिर नहीं होता।
8. संरचनावाद का महत्व
सीमाओं के बावजूद संरचनावाद ने भाषा, संस्कृति और साहित्य को देखने का एक अत्यंत प्रभावशाली दृष्टिकोण प्रदान किया। इसके कुछ महत्त्व इस प्रकार हैं:
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साहित्यिक आलोचना में वैज्ञानिकता का प्रवेश — संरचनावाद ने आलोचना को केवल भावनात्मक या व्यक्तिपरक व्याख्या से आगे बढ़ाया।
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पाठ-केंद्रित अध्ययन की स्थापना — इसने पाठ को स्वतंत्र सत्ता के रूप में देखने का दृष्टिकोण दिया।
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भाषिक और सांस्कृतिक संरचनाओं के सार्वभौमिक रूपों की खोज।
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उत्तर-संरचनावाद, विघटनवाद, सांस्कृतिक अध्ययन आदि आधुनिक विचारधाराओं की नींव रखना।
उपसंहार
संरचनावाद बीसवीं शताब्दी की एक महत्त्वपूर्ण बौद्धिक धारा रही है, जिसने भाषा, साहित्य और संस्कृति के अध्ययन की दिशा को गहराई से प्रभावित किया। इसने यह दिखाया कि किसी भी विचार या पाठ को केवल सतही अर्थों में नहीं, बल्कि उसकी गहन संरचनाओं, संबंधों और विरोधात्मक युग्मों के माध्यम से समझना चाहिए।
यद्यपि इसकी सीमाओं के कारण बाद में उत्तर-संरचनावाद जैसी विचारधाराएँ विकसित हुईं, फिर भी संरचनावाद की पद्धति आज भी भाषा-विज्ञान, साहित्यिक आलोचना, मानवशास्त्र, समाजशास्त्र और सांस्कृतिक अध्ययन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
संरचनावाद का सबसे बड़ा योगदान यही है कि इसने विचार और अभिव्यक्ति को एक संगठित प्रणाली के रूप में देखने की दृष्टि दी — जिसने आधुनिक बौद्धिक विमर्श को एक नई दिशा प्रदान की।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1➤ संरचनावाद शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है?
2➤ ‘संरचनावाद’ शब्द का मूल अर्थ क्या है?
3➤ संरचनावाद किस बात पर बल देता है?
4➤ संरचनावाद की वैचारिक नींव किसने रखी?
5➤ फर्डिनां दे सॉस्यूर की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या है?
6➤ मानवशास्त्र में संरचनावाद को किसने विकसित किया?
7➤ साहित्य में संरचनावाद कब प्रवेश करता है?
8➤ संरचनावाद को साहित्य में सबसे पहले किस देश में अपनाया गया?
9➤ संरचनावाद में लेखक की भूमिका को कैसे देखा गया है?
10➤ संरचनावाद लेखक की किस बात की उपेक्षा करता है?
11➤ संरचनावाद का सबसे बड़ा योगदान क्या है?
12➤ संरचनावाद ने साहित्यिक आलोचना को किस दिशा में अग्रसर किया?