वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत

भूमिका

18वीं सदी के उत्तरार्ध और 19वीं सदी की शुरुआत में यूरोपीय साहित्य, विशेषतः अंग्रेजी साहित्य, एक अत्यंत महत्वपूर्ण संक्रमण काल से गुजर रहा था। यह वह समय था जब रूढ़िवादी नियो-क्लासिकल परंपराएं, जिनमें नियम, अनुकरण और कृत्रिमता का बोलबाला था, टूट रही थीं और भावनात्मक स्वाभाविकता की नई लहर उठ रही थी। इसी नवोन्मेष की लहर को रोमांटिक आंदोलन कहा गया और इस आंदोलन के अगुआ कवियों में विलियम वर्ड्सवर्थ (William Wordsworth) का नाम प्रमुख है। वर्ड्सवर्थ ने न केवल अंग्रेजी काव्य को नई दिशा दी, बल्कि उसकी भाषा, विषयवस्तु और उद्देश्य को भी पूरी तरह पुनर्परिभाषित किया।

उनके काव्यभाषा सिद्धांत (Theory of Poetic Diction) ने पारंपरिक काव्यशास्त्र को चुनौती दी और “आम आदमी की भाषा” को कविता में स्थान दिया। इस लेख में वर्ड्सवर्थ के काव्यभाषा सिद्धांत का विस्तारपूर्वक विश्लेषण, पृष्ठभूमि, तात्त्विक विशेषताएं, आलोचनाएं एवं उसका प्रभाव प्रस्तुत किया जा रहा है।


वर्ड्सवर्थ का परिचय

विलियम वर्ड्सवर्थ (William Wordsworth) अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख कवि थे, जिनका जन्म 7 अप्रैल 1770 को इंग्लैंड के कॉकर्माउथ  में हुआ था।  उन्होंने केंब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट जॉन्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। वे अंग्रेजी रोमांटिक आंदोलन (Romantic Movement) के अग्रणी कवियों में माने जाते हैं। प्रकृति की सुंदरता, सरल भाषा, मानवीय संवेदना और सामान्य जनजीवन को अपने काव्य का केंद्र बनाकर उन्होंने काव्य की दिशा ही बदल दी।

1798 में उन्होंने सैम्युअल टेलर कॉलरिज के साथ मिलकर कविता संग्रह Lyrical Ballads प्रकाशित किया, जिसे रोमांटिक कविता का घोषणापत्र माना जाता है। इस संग्रह में प्रकृति, बचपन, ग्रामीण जीवन और सामान्य मानव अनुभवों को प्रमुखता दी गई। वर्ड्सवर्थ ने काव्य की भाषा को कृत्रिमता से मुक्त कर आम जनमानस की भाषा को स्थान दिया।


1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पूर्ववर्ती काव्य परंपरा

वर्ड्सवर्थ से पहले अंग्रेजी साहित्य में अलेक्ज़ेंडर पोप, जॉन ड्राइडन जैसे कवियों का प्रभुत्व था। इन कवियों की भाषा कृत्रिम, गूढ़ और विशिष्ट वर्ग तक सीमित थी। उन्होंने विशेष रूप से कुलीन वर्ग के लिए ही काव्य रचा। भाषा में अलंकारिकता, गूढ़ता और एक प्रकार की बनावटी भव्यता को प्रमुखता दी जाती थी।

यह काव्य भाषा आम जीवन की सच्चाइयों से दूर थी। इसकी विषयवस्तु भी प्रायः राजनीति, पौराणिकता या नैतिकता तक सीमित थी। ऐसे समय में वर्ड्सवर्थ का आना और ‘सामान्य जन की भाषा’ को काव्य में प्रतिष्ठित करना, एक क्रांतिकारी विचार था।


2. वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत : मुख्य तत्त्व

वर्ड्सवर्थ के काव्यभाषा सिद्धांत का मूल प्रतिपादन उनकी प्रसिद्ध भूमिका Preface to Lyrical Ballads (1800) में मिलता है। इसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कविता की भाषा आम जन की भाषा होनी चाहिए।

(i) सामान्य जन की भाषा का प्रयोग

वर्ड्सवर्थ के अनुसार, काव्य की भाषा वही होनी चाहिए जो ‘सामान्य मनुष्यों’ द्वारा ‘नैसर्गिक भावनाओं’ की अभिव्यक्ति में प्रयुक्त होती है। उन्होंने ग्रामीणों की भाषा को अधिक स्वाभाविक और सरल माना और कहा कि वही भाषा कविता के लिए उपयुक्त है।

“The language of poetry should be the language really used by men.”

(ii) भाषा में कृत्रिमता और आडंबर का विरोध

वर्ड्सवर्थ ने नियो-क्लासिकल परंपरा की उस भाषा का विरोध किया जो अलंकारों और गूढ़ प्रतीकों से भरी होती थी। उनका कहना था कि ऐसी भाषा पाठकों को सच्चे भावों से दूर कर देती है। इसलिए उन्होंने कविता को सहज, स्वाभाविक और संप्रेषणीय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

(iii) सच्ची भावना की प्रधानता

उनके अनुसार, कविता का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह “भावना की सघन अनुभूति” है। अतः ऐसी भाषा का चयन होना चाहिए जिसमें भावनाओं की सच्चाई प्रकट हो सके।

(iv) गद्य और पद्य की भाषा में अंतर नहीं

वर्ड्सवर्थ का मानना था कि गद्य और कविता की भाषा में मूलतः कोई अंतर नहीं होना चाहिए। अंतर यदि हो, तो केवल लयात्मकता और ताल (rhythm and metre) का हो। भाव, शब्द और विचार का स्तर समान रहना चाहिए।

“There neither is, nor can be, any essential difference between the language of prose and metrical composition.”


3. वर्ड्सवर्थ की काव्यभाषा की विशेषताएँ

(i) सरलता

उनकी भाषा में आम बोलचाल की सहजता है। वह कृत्रिम शब्दों और क्लिष्ट वाक्य विन्यास से दूर रहते हैं।

(ii) सहज स्वाभाविकता

कविता की भाषा में दिखावा नहीं है, उसमें जीवन की असली झलक मिलती है।

(iii) लोकप्रचलित शब्दों का प्रयोग

उन्होंने ग्रामीणों के बोलचाल के शब्दों और भावों को कविता में प्रतिष्ठा दी।

(iv) भावों की प्रबलता

उनकी कविताओं में भाषा भावनाओं की दासी है। भाषा का उद्देश्य भाव की संप्रेषणीयता को बढ़ाना है।


4. वर्ड्सवर्थ की कविताओं में काव्यभाषा सिद्धांत का प्रयोग

वर्ड्सवर्थ ने अपने सिद्धांत को केवल सैद्धांतिक स्तर पर नहीं छोड़ा, बल्कि उसे अपने काव्य में पूरी तरह से अपनाया। उदाहरण स्वरूप उनकी प्रसिद्ध कविता “We are Seven” में एक ग्रामीण बालिका से संवाद है, जो पूरी तरह से सामान्य भाषा में है।

उसी प्रकार, “Michael”, “Lucy” श्रृंखला, “The Solitary Reaper”, “Lines Written in Early Spring” आदि कविताएं भी भावनात्मकता और सरल भाषा का अनुपम उदाहरण हैं।


5. आलोचनात्मक दृष्टिकोण

वर्ड्सवर्थ के सिद्धांत को एक ओर तो साहित्यिक इतिहास में क्रांतिकारी माना गया, वहीं दूसरी ओर इसे लेकर कई आलोचनाएं भी हुईं। उनके समकालीन कवि और मित्र सैमुअल टेलर कॉलरिज ने स्वयं कुछ बिंदुओं पर असहमति जताई।

(i) वास्तविक ग्रामीण भाषा उतनी सौम्य नहीं होती

कॉलरिज ने तर्क दिया कि वास्तविक ग्रामीण जीवन और उसकी भाषा में कटुता, रूखापन और अशिष्टता होती है, जो कविता के लिए उपयुक्त नहीं होती। इसलिए ग्रामीण भाषा का आदर्शीकरण उचित नहीं।

(ii) काव्य की भाषा विशिष्ट होनी चाहिए

कॉलरिज ने कहा कि कविता केवल बोलचाल की भाषा नहीं हो सकती। उसमें कुछ विशिष्टता, छटा और कलात्मकता होनी चाहिए।

(iii) वर्ड्सवर्थ स्वयं अपने सिद्धांत का पालन नहीं करते

कई आलोचकों ने इंगित किया कि वर्ड्सवर्थ ने कई कविताओं में उस भाषा का प्रयोग किया है जो सरल आम भाषा नहीं है, बल्कि गूढ़ और काव्यात्मक है। जैसे — “Ode: Intimations of Immortality” में भाषा अत्यंत दार्शनिक और परिष्कृत है।


6. प्रभाव और महत्त्व

(i) कविता का जनवादीकरण

वर्ड्सवर्थ ने कविता को कुलीन वर्ग के संकुचित घेरे से निकालकर सामान्य जन तक पहुंचाया। यह उनके काव्यभाषा सिद्धांत की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

(ii) स्वाभाविकता की प्रतिष्ठा

उनकी भाषा ने कविता को बनावटीपन से मुक्ति दी और उसे हृदयस्पर्शी तथा जीवन से जुड़ा हुआ बनाया।

(iii) आधुनिक काव्य को दिशा

उनके सिद्धांतों का प्रभाव आगे चलकर रॉबर्ट ब्राउनिंग, मैथ्यू अर्नोल्ड, टी.एस. एलियट जैसे कवियों पर पड़ा। आधुनिक कविता में सामान्य बोलचाल की भाषा का जो महत्व है, वह वर्ड्सवर्थ की देन है।


7. हिंदी साहित्य पर प्रभाव

हालांकि वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत अंग्रेजी साहित्य का अंग है, परंतु इसके कुछ प्रभाव हिंदी साहित्य में भी दृष्टिगत होते हैं। हिंदी के प्रयोगवादी और नयी कविता आंदोलन में सहज बोलचाल की भाषा, सामान्य जन की पीड़ा, और भावों की स्वाभाविकता को महत्व दिया गया। गजानन माधव मुक्तिबोध, अज्ञेय, रघुवीर सहाय, शमशेर बहादुर सिंह आदि कवियों की भाषा वर्ड्सवर्थीय आदर्शों से कहीं न कहीं जुड़ती है।


8. निष्कर्ष

वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत केवल भाषा का सिद्धांत नहीं, बल्कि एक काव्य-दृष्टि है। उन्होंने काव्य को कृत्रिमता, आडंबर और वर्ग विशेष की सीमा से निकालकर जन-सामान्य के लिए बनाया। उनकी यह दृष्टि न केवल साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान है, बल्कि समाजशास्त्रीय दृष्टि से भी प्रेरणादायी है।

यद्यपि उनके सिद्धांत में कुछ विरोधाभास हैं, किंतु उनका मूल उद्देश्य – कविता को मानवता के निकट लाना – अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विचारों ने काव्य को नया रूप, नई आत्मा और नया लक्ष्य प्रदान किया। यही कारण है कि आज भी उनका काव्यभाषा सिद्धांत साहित्य के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है।


 ♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️

1➤ वर्ड्सवर्थ का जन्म कब हुआ था?





2➤ “Lyrical Ballads” का प्रथम प्रकाशन कब हुआ?





3➤ वर्ड्सवर्थ ने किस कवि के साथ मिलकर “Lyrical Ballads” प्रकाशित किया?





4➤ “Lyrical Ballads” को क्या माना जाता है?





5➤ वर्ड्सवर्थ किस युग के कवि माने जाते हैं?





6➤ वर्ड्सवर्थ का प्रमुख योगदान क्या था?





7➤ वर्ड्सवर्थ ने किस भाषा को काव्य के लिए अधिक उपयुक्त माना?





8➤ उन्होंने किस प्रकार की भाषा का विरोध किया?





9➤ वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता किस वर्ग के लिए होनी चाहिए?





10➤ आलोचकों का मानना था कि वर्ड्सवर्थ _______।





11➤ हिंदी में किस आंदोलन पर वर्ड्सवर्थ का प्रभाव देखा गया?





 

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