रूसी रूपवाद

प्रस्तावना

बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में साहित्यिक आलोचना और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में अनेक नवीन प्रवृत्तियाँ सामने आईं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली प्रवृत्ति है रूसी रूपवाद (Russian Formalism)। यह आंदोलन रूस में 1910 के दशक में प्रारंभ हुआ और इसमें साहित्यिक रचनाओं के अध्ययन के लिए एक वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ पद्धति प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया। रूसी रूपवादियों ने साहित्य को उसकी रूपात्मक संरचना और भाषिक विशिष्टता के आधार पर समझने का आग्रह किया, न कि लेखक के जीवन, समाज या मनोविज्ञान के माध्यम से।

यह लेख रूसी रूपवाद की उत्पत्ति, सिद्धांत, प्रमुख विचारकों, आलोचना, प्रभाव और उसकी प्रासंगिकता पर केंद्रित है।


रूसी रूपवाद की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रूसी रूपवाद का उदय 1910-1930 के कालखंड में उस समय हुआ जब रूस में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्रांतियाँ हो रही थीं। क्रांति के इस परिवेश में साहित्यिक आलोचना भी पारंपरिक, नैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों से हटकर एक स्वायत्त साहित्यशास्त्र की मांग करने लगी।

इस आंदोलन के दो प्रमुख केंद्र थे:

  1. मॉस्को लिंग्विस्टिक सर्कल (Moscow Linguistic Circle)

  2. सेंट पीटर्सबर्ग का ओपॉयाज समूह (OPOJAZ – Society for the Study of Poetic Language)

इन दोनों समूहों ने साहित्य की वैज्ञानिक आलोचना की नींव रखी और साहित्य को एक स्वतंत्र कलात्मक प्रणाली के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया।


रूसी रूपवाद के प्रमुख विचार

रूसी रूपवादियों ने साहित्य को केवल भावनाओं या विचारों की अभिव्यक्ति नहीं माना, बल्कि उन्होंने इसे एक ऐसी कलात्मक रचना माना जिसकी अपनी विशेष भाषा और रूपात्मक संरचना होती है। उनके प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं:

1. “फॉर्म” (रूप) का केंद्रीय महत्व

रूसी रूपवाद का मूल तर्क था कि साहित्य की विशिष्टता उसके रूप में निहित होती है, न कि विषयवस्तु में। ‘क्या कहा गया है’ से ज़्यादा महत्वपूर्ण है ‘कैसे कहा गया है’। यह दृष्टिकोण साहित्यिक विश्लेषण को भाषा, शैली, ध्वनि, छंद, अलंकार आदि के अध्ययन की ओर ले जाता है।

2. औपचारिक विश्लेषण (Formal Analysis)

रूपवादियों ने साहित्य को एक स्वायत्त कलात्मक वस्तु मानते हुए उसकी विश्लेषणात्मक पद्धति को विकसित किया, जिसे उन्होंने “formal method” कहा। इसका उद्देश्य था साहित्यिक युक्तियों, उपकरणों और तकनीकों का अध्ययन करना जैसे कि:

  • परिवर्तन (Defamiliarization / Ostranenie)

  • कथा और कथन (Fabula and Syuzhet)

  • काव्य भाषा की विचलनशीलता

3. Defamiliarization (अपरिचयन / विसंज्ञापन)

विक्टर श्क्लोव्स्की द्वारा प्रतिपादित यह धारणा रूसी रूपवाद का केंद्रीय स्तंभ है। इस अवधारणा के अनुसार, साहित्य का उद्देश्य हमारी जानी-पहचानी चीज़ों को अपरिचित बनाकर प्रस्तुत करना है ताकि हम उन्हें एक नए दृष्टिकोण से देख सकें। साहित्य का कार्य है “चीज़ों की स्वतःसिद्धता को तोड़ना”।

4. Fabula और Syuzhet

बोरिस आइखेनबाम और विक्टर श्क्लोव्स्की ने कथा साहित्य के दो पहलुओं को अलग किया:

  • Fabula (कथा): घटनाओं का तात्त्विक अनुक्रम या कथ्य।

  • Syuzhet (कथन): इन घटनाओं की प्रस्तुति का कलात्मक क्रम, यानी संरचना।

रूपवादियों के अनुसार, साहित्य का सौंदर्यबोध Syuzhet की बुनावट से उत्पन्न होता है, Fabula से नहीं।


रूसी रूपवाद के प्रमुख प्रतिनिधि

1. विक्टर श्क्लोव्स्की (Viktor Shklovsky)

  • सबसे प्रमुख रूपवादी चिंतक।

  • “Art as Technique” (1917) में Defamiliarization की संकल्पना दी।

  • उन्होंने यह सिद्ध किया कि साहित्यिक भाषा, सामान्य भाषा से भिन्न होती है, और उसका कार्य है पाठक को चौंकाना।

2. रोमन जैकोब्सन (Roman Jakobson)

  • लिंग्विस्टिक दृष्टिकोण से साहित्य का विश्लेषण करने वाले प्रमुख विद्वान।

  • उन्होंने काव्य भाषा की संरचना को विज्ञानसम्मत आधार पर समझाने की चेष्टा की।

  • उन्होंने साहित्यिक संप्रेषण में “poetic function” की व्याख्या की।

3. बोरिस आइखेनबाम (Boris Eikhenbaum)

  • उन्होंने “Theory of the Formal Method” में रूसी रूपवाद की सैद्धांतिक नींव को स्पष्ट किया।

  • उन्होंने टॉल्स्टॉय जैसे लेखकों की साहित्यिक युक्तियों का विश्लेषण किया।

4. यूरी टायन्यानोव (Yuri Tynyanov)

  • उन्होंने साहित्यिक विकास और संरचनात्मक परिवर्तन के सिद्धांत को विकसित किया।

  • उन्होंने “Literary Fact” नामक निबंध में साहित्य को सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली के भीतर स्थित माना।


रूसी रूपवाद की आलोचना

1. सामाजिक दृष्टिकोण की उपेक्षा

रूसी रूपवाद को सबसे अधिक आलोचना इस बात के लिए मिली कि वह साहित्य को सामाजिक, ऐतिहासिक और वैचारिक संदर्भों से काटकर देखता है। यह साहित्य को एक स्वायत्त तंत्र मानता है जो यथार्थ और समाज से अनभिज्ञ होता है।

2. भावना और अर्थ की उपेक्षा

रूपवाद केवल ‘कैसे कहा गया’ पर ध्यान देता है, ‘क्या कहा गया’ को महत्व नहीं देता। इससे साहित्य की संवेदनशीलता और अर्थवत्ता का ह्रास होता है।

3. राजनीतिक दमन

1930 के दशक में सोवियत सरकार ने इसे ‘बुर्जुआ’ विचारधारा कहकर प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद सामाजिक यथार्थवाद (Socialist Realism) को आधिकारिक साहित्यिक पद्धति बना दिया गया।


रूसी रूपवाद का प्रभाव

1. स्ट्रक्चरलिज्म का जन्म

रूसी रूपवाद के विचारों ने फ्रांसीसी स्ट्रक्चरलिज्म और रोलां बार्थ, क्लॉड लेवी-स्ट्रॉस जैसे चिंतकों को प्रेरित किया। स्ट्रक्चरलिज्म ने भाषा को संरचना के रूप में देखने की प्रवृत्ति को आगे बढ़ाया।

2. नई समीक्षा (New Criticism)

अंग्रेज़ी साहित्य में आई “New Criticism” धारा पर भी रूसी रूपवाद का प्रभाव पड़ा। टी. एस. एलियट, क्लीन्थ ब्रूक्स आदि ने पाठ की आंतरिक संरचना और भाषा पर बल दिया।

3. काव्यशास्त्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण

रूसी रूपवाद ने साहित्यिक अध्ययन को एक वैज्ञानिक अनुशासन बनाने की कोशिश की। इससे साहित्य के शास्त्र रूप को नई दिशा मिली।

4. साहित्यिक उपकरणों का अध्ययन

आज की साहित्यिक आलोचना में रूपात्मक उपकरणों – जैसे प्रतीक, संरचना, दृष्टिकोण, शिल्प, शैली – का जो स्थान है, उसकी नींव रूसी रूपवाद ने ही रखी।


रूसी रूपवाद की प्रासंगिकता

वर्तमान साहित्यिक विमर्श में यद्यपि उत्तर-संरचनावाद, उत्तर-आधुनिकता, उत्तर-औपनिवेशिकता जैसी प्रवृत्तियाँ प्रमुख हैं, फिर भी रूसी रूपवाद की भूमिका आज भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। वह हमें यह समझने में सहायता करता है कि साहित्यिक भाषा और सामान्य भाषा में क्या अंतर है, और कला किस तरह हमारे अनुभव को परिवर्तित करती है


उपसंहार

रूसी रूपवाद ने साहित्यिक अध्ययन की दिशा को पूर्णतः बदल दिया। इसने साहित्य को मात्र भावाभिव्यक्ति या सामाजिक यथार्थ का दस्तावेज़ मानने के बजाय एक स्वायत्त कलात्मक संरचना माना। यद्यपि इसकी सीमाएँ हैं और यह समाज-संस्कृति से कटे हुए साहित्य को प्रस्तुत करता है, फिर भी इसका योगदान अद्वितीय है। साहित्य के स्वरूप, तकनीक, शैली और भाषा के विश्लेषण में यह आज भी उपयोगी है।

रूसी रूपवाद हमें यह सिखाता है कि साहित्य केवल कहने का माध्यम नहीं, कहने की शैली भी है – और यही शैली, युक्ति, शिल्प और संरचना, उसे कला का दर्जा देती है। यही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।


♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️

1➤ रूसी रूपवाद की शुरुआत किस दशक में हुई थी?





2➤ रूसी रूपवाद का मुख्य उद्देश्य क्या था?





3➤ “Defamiliarization” (अपरिचयन) की संकल्पना किसने दी?





4➤ Fabula और Syuzhet शब्द किससे जुड़े हैं?





5➤ Fabula का अर्थ है—





6➤ Syuzhet का अर्थ है—





7➤ “Art as Technique” लेख किसने लिखा?





8➤ OPOJAZ किससे संबंधित है?





9➤ मॉस्को लिंग्विस्टिक सर्कल की स्थापना किसने की?





10➤ “Literary Fact” नामक निबंध किसने लिखा?





11➤ रूसी रूपवाद ने साहित्य को किस रूप में देखा?





12➤ “Poetic Function” की अवधारणा किससे जुड़ी है?





13➤ “Theory of the Formal Method” किसका कार्य है?





14➤ रूसी रूपवाद की सबसे बड़ी आलोचना क्या थी?





15➤ रूसी रूपवाद ने किस शैली को जन्म दिया?





16➤ “नई समीक्षा” आंदोलन पर किसका प्रभाव था?





17➤ कौन-सा आंदोलन केवल “कैसे कहा गया” पर केंद्रित है?





18➤ रूसी रूपवाद का प्रभाव किसके लेखन में नहीं दिखाई देता?





19➤ “Fabula” और “Syuzhet” की अवधारणा किसने दी?





20➤ “Defamiliarization” का उद्देश्य है—





21➤ किस रूसी रूपवादी ने टॉल्स्टॉय की रचनाओं का रूपात्मक विश्लेषण किया?





22➤ रूसी रूपवादियों का मानना था कि साहित्य को समझने के लिए हमें किस पर ध्यान देना चाहिए?





 

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