प्रस्तावना
हिंदी साहित्य के इतिहास में महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) का स्थान अत्यंत विशिष्ट और प्रभावशाली है। वे केवल एक साहित्यकार नहीं थे, बल्कि एक युग निर्माता, भाषा-संशोधक, आलोचक, संपादक और नवजागरण के अग्रदूत भी थे। हिंदी के गद्य साहित्य के विकास में उनका योगदान इतना व्यापक और गहरा है कि उनकी तुलना भारत के नवजागरण काल के राजा राममोहन राय और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय से की जा सकती है।
इस लेख में हम महावीर प्रसाद द्विवेदी के जीवन, कृतित्व, भाषा और शैली, नवजागरण में उनकी भूमिका, तथा उनके सम्पादकीय युग के महत्त्व को समग्रता में प्रस्तुत करेंगे।
1. हिंदी नवजागरण: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
हिंदी नवजागरण 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ, जब भारत ब्रिटिश उपनिवेश था और सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा भाषाई दृष्टि से संक्रमण के दौर से गुजर रहा था। इस समय अंग्रेज़ी शिक्षा, मुद्रण तकनीक, समाचार पत्र, आधुनिक विचारधाराएँ तथा सामाजिक-सुधार आंदोलनों का प्रभाव भारतीय समाज पर गहराई से पड़ने लगा।
हिंदी नवजागरण ने जनता को अंधविश्वास, रूढ़ियों, जातिवाद और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जागरूक किया और आधुनिकता, विज्ञान, तर्क, समानता और राष्ट्रवाद की भावना को बल दिया। इस नवचेतना का साहित्यिक स्वरूप गद्य लेखन, पत्र-पत्रिकाओं, निबंध, नाटक, आलोचना आदि में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
2. महावीर प्रसाद द्विवेदी: जीवन परिचय
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। वे प्रारंभ से ही जिज्ञासु, अध्ययनशील और सुधारवादी प्रवृत्ति के थे। उन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी का गहन अध्ययन किया।
वे रेल विभाग में नौकरी करते हुए भी हिंदी के विकास के प्रति समर्पित रहे। बाद में वे भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘सरस्वती’ (प्रयाग से प्रकाशित) के संपादक बने और यहीं से उनका साहित्यिक युग प्रारंभ हुआ, जिसे ‘द्विवेदी युग’ कहा गया।
3. सरस्वती पत्रिका और संपादकीय क्रांति
सन 1903 में जब वे ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने, तब हिंदी साहित्य एक प्रकार से काव्य तक सीमित था और वह भी ब्रजभाषा में। गद्य लेखन बिखरा हुआ और विषयहीन था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती को एक सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक मंच बना दिया, जहाँ साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि समाज-सुधार, विचार-जागरण और राष्ट्र निर्माण का साधन बन गया।
उन्होंने ‘सरस्वती’ में ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, महिला उत्थान, शिक्षा, धर्म, आलोचना, निबंध, कहानियाँ, यात्रावृत्त, जीवनियाँ आदि विविध विषयों पर लेख प्रकाशित कर हिंदी गद्य को समृद्ध किया।
4. भाषा और शैली का सुधारक दृष्टिकोण
महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी भाषा के शुद्धिकरण, मानकीकरण और वैज्ञानिक विकास के पक्षधर थे। उस समय हिंदी में फारसी, उर्दू और अव्यवस्थित देशज शब्दों की भरमार थी।
द्विवेदी जी ने हिंदी को संस्कृतनिष्ठ, परंतु सहज और बोधगम्य बनाने का प्रयास किया। उन्होंने भाषा को शुद्ध, परिमार्जित, व्याकरण-संगत और गद्य लेखन के योग्य बनाया।
उनकी भाषा न तो अत्यधिक संस्कृतनिष्ठ थी और न ही अत्यधिक लोकप्रचलित। उन्होंने संतुलन बनाए रखते हुए हिंदी को गद्य के लिए सक्षम भाषा बनाया।
5. हिंदी नवजागरण में भूमिका
महावीर प्रसाद द्विवेदी को हिंदी नवजागरण का पुरोधा (आधुनिक युग का निर्माता) कहा जाता है। उनके योगदान के निम्न पहलुओं को रेखांकित किया जा सकता है:
(i) सामाजिक चेतना का विकास:
उन्होंने जातिवाद, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, सामाजिक समानता, विधवा-विवाह, स्त्री अधिकार जैसे विषयों पर लेख लिखे।
(ii) राष्ट्रवाद का समर्थन:
वे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक थे। उन्होंने हिंदी में ऐसे लेखकों को बढ़ावा दिया जो भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्वाधीनता की भावना से ओत-प्रोत थे।
(iii) महिला उत्थान:
उन्होंने हिंदी साहित्य में स्त्रियों की भागीदारी को बढ़ावा दिया और उनके लिए प्रेरणादायक लेखों की रचना की।
(iv) आलोचना का सूत्रपात:
द्विवेदी जी ने आलोचना को एक साहित्यिक विधा का स्वरूप दिया और काव्य पर गंभीर, तर्कपूर्ण समीक्षाएँ प्रस्तुत कीं।
6. द्विवेदी युग के प्रमुख लेखक और उनके निर्माण में भूमिका
महावीर प्रसाद द्विवेदी न केवल स्वयं लेखक थे, बल्कि अनेक लेखकों के प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक भी थे। उन्होंने छायावादी युग के प्रमुख कवियों और गद्यकारों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख रचनाकार जिन्हें उन्होंने प्रोत्साहित किया:
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मैथिलीशरण गुप्त – कवि
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रामचरित उपाध्याय – नाटककार
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रामनरेश त्रिपाठी,आदि।
विशेष रूप से मैथिलीशरण गुप्त को ‘खड़ी बोली काव्य’ का अग्रदूत बनाने में द्विवेदी जी की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही।
7. द्विवेदी युग की विशेषताएँ
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खड़ी बोली की स्थापन: द्विवेदी जी ने हिंदी कविता और गद्य में खड़ी बोली को मान्यता दिलाई और ब्रजभाषा की एकाधिकारिता को समाप्त किया।
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आधुनिक गद्य का विकास: हिंदी में तर्कसंगत, तथ्यात्मक, विषयवस्तु परक और सामाजिक रूप से सजग गद्य लेखन का प्रचलन उन्हीं के माध्यम से हुआ।
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नैतिकता और आदर्शवाद: उनके साहित्य में नैतिकता, आदर्श, त्याग, देशभक्ति, मानवता जैसे मूल्यों का प्रचार हुआ।
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पुनरुत्थानवाद: उन्होंने भारतीय संस्कृति, गौरवशाली इतिहास और परंपराओं की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया।
8. आलोचनात्मक दृष्टिकोण और सीमाएँ
हालांकि महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान अतुलनीय हैं, लेकिन उनके साहित्यिक दृष्टिकोण में कुछ आलोचनाएँ भी की जाती हैं:
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उन्होंने साहित्य को अत्यधिक नैतिक और उपदेशात्मक बनाया, जिससे उसकी कलात्मकता और भावनात्मकता में कमी आ गई।
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उनकी आलोचना कभी-कभी अत्यधिक नियंत्रित और अनुशासनात्मक हो जाती थी, जिससे नवाचार की संभावनाएँ सीमित हो गईं।
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वे रचनात्मक स्वतंत्रता की अपेक्षा साहित्य के उपयोगितावादी पक्ष पर अधिक बल देते थे।
हालांकि, यह भी कहा जाना चाहिए कि जिस काल में वे कार्य कर रहे थे, वहाँ साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का उपकरण बनाना आवश्यक था।
9. उपसंहार
महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी नवजागरण के वह प्रकाशस्तंभ हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा, साहित्य और समाज को आधुनिक दिशा दी। उन्होंने हिंदी को ज्ञान, विज्ञान, समाज और राष्ट्र निर्माण की भाषा बनाने की दिशा में आधारशिला रखी।
उनका संपादकीय कौशल, भाषा सुधारक दृष्टिकोण, नवलेखन के लिए प्रोत्साहन और समाजोन्मुखी चिंतन हिंदी को नवजागरण काल में एक नया स्वरूप देने में सहायक रहा।
यदि आज हिंदी आधुनिक संचार की सशक्त भाषा है, तो उसमें महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान अमिट और प्रेरणास्पद है। वे केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि एक युग की चेतना थे।
♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म किस वर्ष हुआ था?
2➤ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
3➤ हिंदी नवजागरण मुख्यतः किस शताब्दी में प्रारंभ हुआ?
4➤ नवजागरण काल में द्विवेदी जी की भूमिका को क्या कहा गया है?
5➤ हिंदी साहित्य के इतिहास में द्विवेदी युग की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
6➤ द्विवेदी जी के अनुसार भाषा कैसी होनी चाहिए?
7➤ ‘हिंदी नवजागरण’ में किस प्रकार की चेतना दिखाई देती है?
8➤ द्विवेदी जी का साहित्य किस प्रकार का था?
9➤ आज हिंदी के आधुनिक स्वरूप के निर्माण में किसका योगदान सर्वाधिक माना जाता है?
10➤ सरस्वती पत्रिका के माध्यम से द्विवेदी जी ने किन विषयों को बढ़ावा दिया?