भूमिका
पश्चिमी काव्यशास्त्र के इतिहास में प्लेटो (Plato) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विवादास्पद दार्शनिक रहे हैं। उन्होंने न केवल साहित्य और काव्य की प्रकृति पर विचार किया, बल्कि उनके विचारों ने दर्शन, राजनीति और नैतिकता के क्षेत्रों में भी गहरा प्रभाव डाला। प्लेटो का काव्य-सिद्धांत उनके दर्शन से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। उनके विचारों में काव्य का मूल्यांकन केवल सौंदर्यबोध के आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी किया गया है। प्रस्तुत लेख में प्लेटो के काव्य सिद्धांत का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है।
प्लेटो का जीवन और दर्शन: पृष्ठभूमि
प्लेटो (ईसा पूर्व 427–347) यूनान के महान दार्शनिक, सुकरात के शिष्य और अरस्तु के गुरु थे। उन्होंने ‘अकादमी’ की स्थापना की और ‘संवाद’ (Dialogue) शैली में अनेक ग्रंथ लिखे, जिनमें The Republic, Ion, Phaedrus, Symposium, Laws आदि प्रमुख हैं। प्लेटो के दार्शनिक विचार “Ideal” या “Forms” के सिद्धांत पर आधारित हैं, जिसके अनुसार इस संसार की हर वस्तु एक “आदर्श रूप” की छाया मात्र है।
काव्य के प्रति प्लेटो का दृष्टिकोण
प्लेटो ने काव्य को मूलतः दो दृष्टिकोणों से देखा:
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दार्शनिक दृष्टिकोण: जिसमें उन्होंने काव्य को सत्य के विरुद्ध एक भ्रमात्मक अनुकरण (Mimesis) बताया।
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राजनीतिक और नैतिक दृष्टिकोण: जिसमें उन्होंने काव्य को समाज और व्यक्ति के नैतिक पतन का कारण माना।
उनकी दृष्टि में काव्य की आलोचना का प्रमुख कारण यह था कि काव्य सत्य का प्रतिबिंब नहीं, बल्कि उसके अनुकरण का अनुकरण (Imitation of an imitation) है।
1. अनुकरण (Mimesis) का सिद्धांत
प्लेटो का काव्य-सिद्धांत मुख्यतः “अनुकरण” की अवधारणा पर आधारित है। उनके अनुसार, इस संसार की हर वस्तु एक आदर्श रूप (Ideal Form) का प्रतिबिंब है, और काव्य इन आदर्श रूपों का नहीं, बल्कि उनके भौतिक प्रतिबिंबों का अनुकरण करता है।
उदाहरण के लिए:
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ईश्वर या दैवीय सत्ता ने “आदर्श खाट” की रचना की।
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कारीगर ने उस आदर्श खाट की एक भौतिक खाट बनाई।
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कवि या चित्रकार ने उस भौतिक खाट का चित्र या वर्णन किया।
इस प्रकार कवि का कार्य त्रैतीयक स्तर पर आता है – वह केवल एक छाया की छाया का अनुकरण करता है। अतः प्लेटो ने काव्य को “त्रैतीय अनुकरण” (Third degree of imitation) कहा।
2. काव्य और सत्य का संबंध
प्लेटो का मानना था कि दर्शन सत्य की खोज करता है, जबकि काव्य सत्य से दूर करता है। यह कवि कल्पना के माध्यम से ऐसी वस्तुओं का निर्माण करता है जिनका कोई यथार्थ आधार नहीं होता। यह भावनाओं को उद्दीप्त करता है, तर्क को पीछे धकेलता है और मनुष्य को मृगतृष्णा में ले जाता है।
उनका तर्क था कि:
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काव्य यथार्थ नहीं है।
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यह ज्ञान का साधन नहीं है।
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यह विवेक की अपेक्षा भावना को बढ़ावा देता है।
इसलिए प्लेटो के अनुसार, काव्य आत्मा को असंतुलित करता है और व्यक्ति को तर्क और न्याय की राह से भटकाता है।
3. काव्य और नैतिकता
प्लेटो ने काव्य की आलोचना उसके नैतिक प्रभाव के कारण भी की। The Republic में उन्होंने कहा कि कवि, विशेषतः होमर और अन्य महाकाव्यकार, देवताओं और नायकों को ऐसे रूप में चित्रित करते हैं जो नैतिक दृष्टि से अनुचित है। वे देवताओं को क्रोधित, ईर्ष्यालु, छलप्रिय और अनैतिक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे सामान्य जनों में भी ऐसे दुर्गुणों की प्रेरणा मिलती है।
उनके अनुसार:
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नायक को भयभीत, विलासी या दुर्बल दिखाना युवाओं के लिए एक गलत संदेश है।
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करुणा, शोक और भोग का अत्यधिक चित्रण आत्मा को निर्बल बनाता है।
इसलिए प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य (Ideal State) से कवियों को निष्कासित करने का सुझाव दिया।
4. भावनाओं की भूमिका पर प्लेटो का विचार
प्लेटो ने कहा कि काव्य में भावनाएं (Emotions) प्रमुख होती हैं और यह मनुष्य की “तर्कशील आत्मा” को दबाकर उसकी “भावनात्मक आत्मा” को उत्तेजित करता है। इस उत्तेजना से मनुष्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण खो देता है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक दृष्टि से अहितकर है। उनके अनुसार, एक अच्छे नागरिक का निर्माण तर्क के बल पर होना चाहिए, न कि भावना के प्रभाव में।
5. कलाकार पर ज्ञानहीनता का आरोप
प्लेटो का यह भी मत था कि कवि या कलाकार जिन विषयों पर रचनाएँ करते हैं, उनके बारे में उन्हें कोई वास्तविक ज्ञान नहीं होता। उदाहरण के लिए, एक कवि युद्ध के बारे में लिखता है, लेकिन वह स्वयं सैनिक नहीं होता; वह एक रथ की सुंदरता का वर्णन करता है, पर रथ बनाना नहीं जानता। इस दृष्टि से वह केवल “धारणा” का अनुकरण करता है, न कि वास्तविक ज्ञान का।
6. अपवाद: प्रेरणादत्त काव्य
प्लेटो ने कुछ स्थानों पर काव्य को सकारात्मक रूप में भी देखा है, विशेषकर Ion और Phaedrus में। उन्होंने कहा कि कभी-कभी कवि “दैवी प्रेरणा” (Divine Inspiration) के प्रभाव में होता है और तब वह किसी उच्चतर सत्य का वाहक बन जाता है। इस स्थिति में कवि एक माध्यम बन जाता है, जैसे कोई पुजारी ईश्वर का संदेश वाहक होता है। ऐसे काव्य को उन्होंने “प्रेरणादत्त” (Inspired Poetry) कहा है। लेकिन यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ है।
7. प्लेटो का आदर्श कला-दर्शन
प्लेटो ने कला का ऐसा रूप स्वीकार किया जो –
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नैतिक शिक्षा दे सके,
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आत्मा को तर्कशील बना सके,
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राज्य के आदर्शों का समर्थन करे।
इस प्रकार वह केवल उसी काव्य को मान्यता देते हैं जो समाज और राज्य की भलाई में सहायक हो। उनका उद्देश्य केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि नैतिक और दार्शनिक मूल्य था।
प्लेटो के काव्य-सिद्धांत की आलोचना
प्लेटो के काव्य-सिद्धांत की आलोचना अनेक विद्वानों ने की है:
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आनंद की उपेक्षा: उन्होंने काव्य के सौंदर्यात्मक आनंद को नगण्य समझा।
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कला की स्वायत्तता को नकारना: काव्य को मात्र नीति और तर्क का उपकरण बनाना उसकी स्वतंत्रता को सीमित करता है।
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अनुभव का महत्व न समझना: प्लेटो ने मानवीय अनुभव और संवेदना को दार्शनिक कठोरता से दबाने का प्रयास किया।
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कलाकार के ज्ञान को कमतर आँकना: कवियों के ज्ञान को केवल अज्ञान का परिणाम बताना उचित नहीं है। रचनात्मक अंतर्ज्ञान भी एक प्रकार का ज्ञान है।
प्लेटो का प्रभाव
हालाँकि प्लेटो का दृष्टिकोण नकारात्मक था, फिर भी उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा:
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अरस्तु ने प्लेटो के सिद्धांतों का उत्तर देते हुए Poetics की रचना की।
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आधुनिक आलोचना में भी सत्य, नैतिकता और समाज के संदर्भ में कला की भूमिका पर विमर्श प्लेटो से प्रारंभ होता है।
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राज्य और शिक्षा में काव्य के उपयोग और सीमाओं पर विचार करते हुए कई आधुनिक विचारकों ने प्लेटो का संदर्भ लिया है।
निष्कर्ष
प्लेटो का काव्य-सिद्धांत दर्शन, नैतिकता और राजनीति के त्रिकोण पर आधारित है। उन्होंने काव्य की आलोचना इसलिए की क्योंकि वह अपने आदर्श राज्य और आदर्श नागरिक की संकल्पना में काव्य को विघ्न मानते थे। उनके अनुसार काव्य सत्य का प्रतिबिंब नहीं, उसका अनुकरण है, जो लोगों को भ्रमित करता है और नैतिक पतन की ओर ले जाता है। यद्यपि उनके विचार अत्यंत कठोर और आलोचनात्मक प्रतीत होते हैं, परंतु उन्होंने कला और काव्य को दर्शन और समाज के व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर विश्लेषित किया, जो अपने आप में अद्वितीय है।
प्लेटो की आलोचना के बिना न तो अरस्तु की Poetics की कल्पना संभव थी, न ही आधुनिक युग में काव्य और कला की गहन समीक्षा। अतः प्लेटो को कला-दर्शन का मूल पुरुष कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1➤ प्लेटो किस प्रसिद्ध दार्शनिक के शिष्य थे?
2➤ प्लेटो का कौन-सा प्रमुख ग्रंथ संवाद शैली में लिखा गया है?
3➤ प्लेटो का दर्शन किस सिद्धांत पर आधारित है?
4➤ प्लेटो के अनुसार काव्य क्या है?
5➤ प्लेटो ने काव्य की आलोचना किस कारण से की?
6➤ प्लेटो ने किस प्रकार के काव्य को आंशिक रूप से स्वीकार किया?
7➤ प्लेटो ने निम्न में से किस महाकाव्यकार की आलोचना की?
8➤ प्लेटो के अनुसार काव्य किसका अनुकरण करता है?
9➤ प्लेटो के अनुसार एक आदर्श काव्य कैसा होना चाहिए?
10➤ प्लेटो की काव्य-दृष्टि को किसने खंडित किया?