प्रस्तावना
भारत विविध भाषाओं और लिपियों का देश है। इन लिपियों में देवनागरी लिपि का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी, नेपाली, भोजपुरी, मैथिली, गढ़वाली आदि भाषाओं की लेखन प्रणाली के रूप में प्रयुक्त होने वाली देवनागरी लिपि भारतीय सांस्कृतिक और भाषिक परंपरा की एक सशक्त पहचान है। यह न केवल भाषाओं को लिपिबद्ध करने का माध्यम है, बल्कि भारतीय सभ्यता के ग्रंथों और दर्शन का संवाहक भी है। इस लेख में हम देवनागरी लिपि की विशेषताओं, ऐतिहासिक विकास, संरचना तथा उसके मानकीकरण के प्रयासों का समीक्षात्मक अध्ययन करेंगे।
देवनागरी लिपि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
देवनागरी लिपि का विकास प्राचीन ब्राह्मी लिपि से हुआ है। लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से ब्राह्मी के विभिन्न क्षेत्रीय रूप विकसित हुए, जिनमें से एक नागरी लिपि थी। यही नागरी लिपि आगे चलकर ‘देवनागरी’ के नाम से जानी गई। “देव” का अर्थ है ‘देवताओं का’, और “नागरी” का तात्पर्य है ‘शहर की’ — इस प्रकार ‘देवनागरी’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘देवताओं के नगर की लिपि’।
गुप्त काल, हर्षवर्धन काल और प्रतिहार वंश के काल में इस लिपि का प्रयोग व्यापक रूप से हुआ। कालांतर में यह संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी, नेपाली,भोजपुरी, मैथिली, गढ़वाली आदि भाषाओं के लेखन का प्रमुख माध्यम बन गई।
देवनागरी लिपि की संरचना
देवनागरी लिपि एक ध्वन्यात्मक लिपि है, जो ध्वनियों के अनुरूप वर्णों का प्रयोग करती है। इसमें वर्णमाला को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. स्वर (Vowels)
देवनागरी में 14 मूल स्वर वर्ण हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ऌ, ॡ, ए, ऐ, ओ, औ। इनमें से कुछ स्वर अब प्रचलन में नहीं हैं जैसे ऌ, ॡ।
2. व्यंजन (Consonants)
इसमें 33 व्यंजन वर्ण होते हैं। जिन्हें उच्चारण के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है –
उदाहरण:
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कंठ्य: क, ख, ग, घ, ङ
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तालव्य: च, छ, ज, झ, ञ
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मूर्धन्य: ट, ठ, ड, ढ, ण
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दंत्य: त, थ, द, ध, न
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ओष्ठ्य: प, फ, ब, भ, म
- अंतस्थ: य, र, ल, व
- उष्म: श, ष, स, ह
3. संयुक्त वर्ण और अन्य चिन्ह
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संयुक्ताक्षर: दो या दो से अधिक व्यंजनों के संयोग से संयुक्त वर्ण बनते हैं जैसे – क्ष, त्र, ज्ञ।
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मात्राएँ: स्वर का प्रयोग व्यंजनों के साथ मात्राओं के रूप में किया जाता है – अ (मात्रा नहीं), आ → ा, इ → ि, ई → ी आदि।
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अन्य चिन्ह: अनुस्वार (ं), अनुनासिक (ँ), विसर्ग (ः), चंद्रबिंदु आदि भी महत्त्वपूर्ण हैं।
देवनागरी लिपि की विशेषताएँ
1. ध्वन्यात्मकता (Phonetic Nature)
देवनागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण का उच्चारण निश्चित और स्थिर होता है। एक वर्ण, एक ध्वनि की अवधारणा इसे अत्यंत वैज्ञानिक बनाती है।
2. व्यवस्थित वर्णक्रम
इसमें स्वर और व्यंजनों का क्रम शारीरिक उच्चारण के आधार पर इस प्रकार रखा गया है कि यह भाषाविज्ञान की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक प्रतीत होती है।
3. बाराखड़ी प्रणाली
इसमें प्रत्येक व्यंजन के साथ स्वर जोड़कर अलग-अलग अक्षर बनाए जाते हैं, जिसे बाराखड़ी कहा जाता है। यह बच्चों को भाषा सिखाने के लिए बहुत उपयोगी पद्धति है।
4. स्पष्टता और स्थायित्व
देवनागरी में शब्दों का उच्चारण और लेखन लगभग समान होता है। इससे उच्चारण की स्पष्टता बनी रहती है।
5. संयुक्ताक्षरों की क्षमता
देवनागरी लिपि में दो या दो से अधिक व्यंजनों को जोड़कर एक नया अक्षर बनाया जा सकता है, जिससे भाषा की अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ जाती है।
6. शिरोरेखा (Head Line)
देवनागरी के प्रत्येक अक्षर के ऊपर एक रेखा होती है जिसे शिरोरेखा कहते हैं। इससे शब्दों को पहचानने में सुविधा होती है।
7. डिजिटल युग में अनुकूलता
देवनागरी लिपि को डिजिटल माध्यम में उपयोग करने हेतु यूनिकोड (Unicode) और इनस्क्रिप्ट (Inscript) जैसी प्रणालियाँ विकसित की गई हैं, जिससे इसे कंप्यूटर और मोबाइल में टाइप करना संभव हुआ।
देवनागरी लिपि का मानकीकरण
देवनागरी लिपि के प्रयोग में विभिन्न क्षेत्रीय विविधताएँ देखी जाती थीं। इसमें एकरूपता और मानकीकरण की आवश्यकता इसलिए हुई ताकि भाषाई संप्रेषण बाधित न हो। निम्नलिखित क्षेत्रों में मानकीकरण के प्रयास किए गए हैं:
1. देवनागरी यूनिकोड (Unicode Standard)
यूनिकोड एक वैश्विक अक्षरकोड है, जो विभिन्न भाषाओं और लिपियों को कंप्यूटर पर प्रयोग के योग्य बनाता है। देवनागरी लिपि के लिए 0900 से 097F तक का यूनिकोड ब्लॉक निर्धारित किया गया है। यह मानकीकरण कंप्यूटर आधारित सभी अनुप्रयोगों में देवनागरी लिपि की संगति सुनिश्चित करता है।
2. इनस्क्रिप्ट कुंजीपटल (Inscript Keyboard)
इलेक्ट्रॉनिक टाइपिंग के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट की व्यवस्था की गई है। इससे देवनागरी लिपि में टाइप करना सरल और सुलभ हो गया है।
3. मुद्रण और प्रकाशन में मानकीकरण
केन्द्रीय हिंदी निदेशालय और अन्य संस्थाओं ने मानक वर्तनी, मात्रा, विरामचिह्न आदि के प्रयोग हेतु दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं। इससे शैक्षिक, प्रशासनिक और तकनीकी क्षेत्रों में एकरूपता बनी रहती है।
4. शिक्षा में मानकीकरण
विद्यालयों में प्रयुक्त पाठ्यपुस्तकों में देवनागरी के स्वरूप को एक समान रखने हेतु एन.सी.ई.आर.टी. और राज्य शिक्षा बोर्डों द्वारा मानक लिपि प्रयोग की अनुशंसा की जाती है।
5. व्याकरणिक मानक
संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं के लिए पाणिनीय प्रणाली के आधार पर लिपि के व्याकरण को भी परिभाषित किया गया है।
देवनागरी लिपि की चुनौतियाँ
यद्यपि देवनागरी एक अत्यंत सक्षम लिपि है, फिर भी इसके प्रयोग में कुछ व्यावहारिक समस्याएँ भी देखी जाती हैं:
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संयुक्ताक्षरों की जटिलता – बहुत से संयुक्ताक्षर छात्रों या नए सीखने वालों के लिए कठिन होते हैं।
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वर्तनी भ्रम – कुछ शब्दों में मात्रा प्रयोग की अस्पष्टता (जैसे – दृष्टि या दृष्टी) भ्रम उत्पन्न करती है।
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क्षेत्रीय विविधताएँ – अलग-अलग क्षेत्रों में अक्षरों की आकृतियों में सूक्ष्म अंतर पाए जाते हैं।
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डिजिटल टूल्स में सीमाएँ – सभी अनुप्रयोग देवनागरी लिपि को समान रूप से समर्थन नहीं देते।
देवनागरी का वैश्विक प्रभाव
देवनागरी लिपि का प्रयोग भारत ही नहीं, नेपाल (राजकीय भाषा – नेपाली), फिजी (फिजी हिंदी), मॉरिशस, सूरीनाम, त्रिनिडाड और टुबैगो जैसे देशों में भी होता है। इसके अतिरिक्त, कई भारतीय भाषाओं को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के लिए देवनागरी का ही उपयोग किया जाता है।
भविष्य की संभावनाएँ
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सार्वभौमिक डिजिटल समर्थन – देवनागरी को और अधिक डिजिटल फॉन्ट्स, सॉफ्टवेयर और इंटरफेस में सम्मिलित करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
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शिक्षण में तकनीक का समावेश – भाषा शिक्षण हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग आधारित टूल्स के साथ देवनागरी लिपि का समन्वय विकसित हो रहा है।
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स्वचालित वर्तनी सुधारक (Auto-correct tools) – देवनागरी हेतु विकसित इस नए टूल्स के माध्यम से लेखन को और सटीक व प्रभावी बनाया जा सकता है।
उपसंहार
देवनागरी लिपि केवल अक्षरों का समूह नहीं है, यह भारतीय संस्कृति, परंपरा, ज्ञान और अभिव्यक्ति की सजीव वाहिका है। इसकी वैज्ञानिक संरचना, स्पष्टता, और ध्वन्यात्मकता इसे विश्व की प्रमुख लिपियों में स्थान प्रदान करती है। मानकीकरण की दिशा में निरंतर हो रहे प्रयास इस लिपि को और अधिक सक्षम, समावेशी और अंतरराष्ट्रीय बनाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। आधुनिक तकनीक के साथ समन्वय स्थापित कर यह लिपि आने वाले युगों में भी भारतीय भाषाओं की पहचान बनी रहेगी।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1➤ देवनागरी लिपि का विकास किस लिपि से हुआ है?
2➤ देवनागरी लिपि में कुल कितने मूल स्वर वर्ण होते हैं?
3➤ निम्न में से कौन-सा स्वर अब प्रचलन में नहीं है?
4➤ देवनागरी लिपि में कितने व्यंजन वर्ण होते हैं?
5➤ देवनागरी लिपि का कौन-सा अंग शिरोरेखा कहलाता है?
6➤ संयुक्ताक्षर का उदाहरण क्या है?
7➤ देवनागरी यूनिकोड ब्लॉक किस श्रेणी में आता है?
8➤ देवनागरी लिपि का उच्चारण और लेखन कैसा होता है?
9➤ यूनिकोड मानकीकरण का मुख्य उद्देश्य क्या है?
10➤ देवनागरी लिपि का मानकीकरण किसके कारण आवश्यक हुआ?