काव्यभाषा के रूप में ब्रजभाषा का उदय और विकास

प्रस्तावना

भारतीय साहित्य के समृद्ध इतिहास में ब्रजभाषा एक ऐसी भाषा है, जिसने अपनी मिठास, लयात्मकता और भावाभिव्यक्ति की क्षमता के कारण काव्य की भूमि में एक विशेष स्थान प्राप्त किया है। ब्रजभाषा न केवल एक बोली है, बल्कि भारतीय संस्कृति, भक्ति और साहित्य की एक जीवंत परंपरा भी है। मध्यकालीन उत्तर भारत में जब भक्तिकाव्य का प्रवाह अपने चरम पर था, तब ब्रजभाषा ने एक सशक्त काव्यभाषा के रूप में अपनी पहचान बनाई। विशेष रूप से कृष्णभक्ति साहित्य में इस भाषा की व्यापक उपयोगिता ने इसे जन-जन की भाषा बना दिया।

ब्रजभाषा का भाषिक स्वरूप

ब्रजभाषा हिंदी की पश्चिमी उपभाषाओं में से एक है, जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश के मथुरा, आगरा, अलीगढ़, एटा, हाथरस, फिरोजाबाद, भरतपुर और धौलपुर आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषाशास्त्रियों के अनुसार, ब्रजभाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसमें तात्कालिक संस्कृत और प्राकृत का भी प्रभाव देखा जाता है। इसकी ध्वन्यात्मक सरंचना और व्याकरणिक लचीलापन इसे अत्यंत मधुर और लयबद्ध बनाता है। यही कारण है कि यह सहजता से काव्य की भाषा बन गई।

काव्यभाषा के रूप में उदय

ब्रजभाषा का काव्यभाषा के रूप में उदय मुख्यतः 15वीं शताब्दी के आसपास भक्तिकाल के उद्भव से होता है। इस काल में हिंदी साहित्य में भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा और अनेक संत कवियों ने भक्ति को आधार बनाकर जनभाषा में साहित्य रचना की। संस्कृत की क्लिष्टता और फारसी की विदेशी प्रवृत्ति से भिन्न, ब्रजभाषा सरल, मधुर और भावपूर्ण थी, जो जनसामान्य के हृदय को सीधे स्पर्श करती थी।

कृष्णभक्ति साहित्य और ब्रजभाषा

ब्रजभाषा को काव्यभाषा के रूप में प्रसिद्धि दिलाने में कृष्णभक्ति साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। श्रीकृष्ण का जन्म और जीवन ब्रज क्षेत्र से जुड़ा हुआ था, जिससे ब्रजभाषा में उनकी लीलाओं का वर्णन अत्यंत स्वाभाविक और प्रभावशाली बन गया। सूरदास, नंददास, कृष्णदास, हित हरिवंश, वल्लभाचार्य, स्वामी हरिदास जैसे कवियों ने ब्रजभाषा में कृष्ण की बाल लीलाओं, रासलीलाओं और सखाभाव की अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण रचनाएँ कीं।

सूरदास और ब्रजभाषा


ब्रजभाषा को काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में सूरदास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे ’अष्टछाप’ के प्रमुख कवि थे और वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी थे। उनके ’सूरसागर’ में ब्रजभाषा का ऐसा अनुपम प्रयोग देखने को मिलता है, जो भाषा को उच्च काव्यात्मक शिखर तक पहुंचाता है। सूर के पदों में बालकृष्ण की छवि, वात्सल्य, श्रृंगार, करुणा और भक्ति की भावनाएँ इतनी प्रबल हैं कि पाठक-श्रोता स्वयं को उस समय-काल और वातावरण में अनुभव करने लगता है। उदाहरण स्वरूप इसकी एक झलक सूरदास के इस पद में देखी जा सकती है।

“मैया मैं नहिं माखन खायौ।
ख्याल परैं ये सखा सबै मिलि, मेरैं मुख लपटायौ।”

इस पद में कृष्ण, यशोदा से माखन खाने से इंकार करते हैं। सूरदास ने इसमें कृष्ण के बाल-स्वभाव को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है।

ब्रजभाषा का काव्य सौंदर्य

ब्रजभाषा का लक्षणात्मक सौंदर्य उसके शब्दों की संगीतमयता, कोमल ध्वनियाँ, अलंकारों का सजीव प्रयोग, और लोकबिंबों की सघन उपस्थिति में निहित है। इस भाषा में तुलनाएँ, रूपक, अनुप्रास और अन्य अलंकार सहज रूप में प्रयुक्त होते हैं, जिससे काव्य में संगीतात्मकता आ जाती है। इसके अतिरिक्त ब्रजभाषा की लोकोक्तियाँ, मुहावरे और प्रतीकात्मकता भी इसे समृद्ध बनाते हैं।

ब्रजभाषा और रीतिकाव्य परंपरा

भक्तिकाल के पश्चात् रीतिकाल में भी ब्रजभाषा ने पुनः एक नए रूप में काव्य की भाषा का स्थान ग्रहण किया। इस काल में प्रवृत्तियों के अनुरूप कवियों का ध्यान मुख्य रूप से श्रृंगारिक काव्य की ओर गया। बिहारी, केशवदास, देव, भूषण, चिंतामणि, मतिराम आदि कवियों ने ब्रजभाषा को शृंगार और वीर रस के माध्यम से सजाया और संवारा। बिहारीलाल का ’बिहारी सतसई’ इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें ब्रजभाषा की संक्षिप्तता और अभिव्यक्ति की क्षमता अपने चरम पर देखी जा सकती है।

दरबारी साहित्य में ब्रजभाषा

रीतिकाल के दरबारी कवियों ने ब्रजभाषा को शास्त्रीयता, छंदों और रस सिद्धांतों से समृद्ध कर दिया। इसे साहित्यिक मान्यता भी प्रदान की गई। मुग़ल और राजपूत दरबारों में ब्रजभाषा को प्रमुख स्थान मिला। उस समय अनेक राजाओं और नवाबों ने ब्रजभाषा के कवियों को संरक्षण दिया, जिससे इसका साहित्यिक विकास और प्रसार हुआ।

ब्रजभाषा और लोक परंपरा

ब्रजभाषा केवल दरबारी और भक्ति साहित्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने लोक साहित्य और संगीत में भी योगदान दिया। आज भी ब्रज क्षेत्र में ब्रजभाषा में रचे गए भजन, रासलीला, फाग, होली गीत और विवाह गीत जनमानस में प्रचलित हैं। रामलीला और रासलीला जैसे लोक नाट्य रूपों में ब्रजभाषा की सजीव उपस्थिति देखी जा सकती है।

ब्रजभाषा का सांस्कृतिक प्रभाव

ब्रजभाषा का प्रभाव केवल साहित्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने उत्तर भारतीय समाज की सांस्कृतिक चेतना को भी प्रभावित किया। इसकी मधुरता और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ने इसे धार्मिक अनुष्ठानों, लोक उत्सवों और भक्तिमार्ग की अनिवार्य भाषा बना दिया। वृंदावन, मथुरा जैसे तीर्थ स्थलों पर आज भी ब्रजभाषा का आध्यात्मिक वातावरण देखा जा सकता है।

आधुनिक काल में ब्रजभाषा

हालांकि आधुनिक काल में खड़ी बोली हिंदी ने साहित्य और संचार की मुख्य भाषा का स्थान प्राप्त कर लिया है, फिर भी ब्रजभाषा की साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता बनी हुई है। आज भी ब्रजभाषा में कवि रचनाएँ कर रहे हैं और यह लोकभाषा के रूप में जीवित है। रेडियो, टीवी, और सोशल मीडिया जैसे माध्यमों में ब्रजभाषा के गीत, भजन और कहावतें आज भी लोकप्रिय हैं।

ब्रजभाषा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

आज के वैश्वीकरण और तकनीकी युग में ब्रजभाषा जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के सामने अपने अस्तित्व की रक्षा एक चुनौती है। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इसका अध्ययन सीमित होता जा रहा है। परंतु यह भी सत्य है कि अगर इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाए और नवसृजन के माध्यम से पुनर्जीवित किया जाए, तो ब्रजभाषा का भविष्य उज्जवल हो सकता है।

निष्कर्ष

ब्रजभाषा न केवल एक भाषा है, बल्कि यह भारतीय लोकसंस्कृति, भक्ति और काव्य की आत्मा भी है। इसका उदय और विकास काव्य की दुनिया में एक क्रांतिकारी घटना थी, जिसने जनभाषा को साहित्यिक गौरव दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सूरदास से लेकर बिहारी तक, और लोकगीतों से लेकर रासलीलाओं तक, ब्रजभाषा ने भारतीय साहित्य को वह मिठास दी है जो आज भी अमर है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इस धरोहर को पहचानें, संजोएँ और आने वाली पीढ़ियों तक इसकी समृद्ध परंपरा को पहुँचाएँ, ताकि वह भी इसके महत्व से परिचित हो सकें।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1➤ ब्रजभाषा का उदय मुख्य रूप से किस काल में काव्यभाषा के रूप में हुआ?





2➤ ब्रजभाषा का प्रमुख आधारभूत स्रोत कौन-सी अपभ्रंश भाषा मानी जाती है?





3➤ सूरदास किस संप्रदाय से संबंधित थे?





4➤ निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र ब्रजभाषा का प्रमुख क्षेत्र नहीं है?





5➤ “मैया मैं नहिं माखन खायौ” यह पद किस कवि द्वारा रचित है?





6➤ रीतिकाल में ब्रजभाषा में प्रमुख रूप से किस रस की प्रधानता रही?





7➤ बिहारीलाल की कौन-सी प्रसिद्ध रचना ब्रजभाषा में है?





8➤ ब्रजभाषा को दरबारी भाषा के रूप में किस काल में प्रतिष्ठा मिली?





9➤ निम्न में से कौन-सा कवि अष्टछाप से संबंधित नहीं है?





10➤ आधुनिक काल में ब्रजभाषा का प्रमुख उपयोग किस क्षेत्र में अधिक देखा जाता है?





 

 

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