प्रस्तावना
भारतीय भाषाओं के इतिहास में अवधी को एक विशेष स्थान प्राप्त है। यह न केवल एक क्षेत्रीय बोली के रूप में उभरकर सामने आई, बल्कि एक समृद्ध काव्यभाषा के रूप में भी विकसित हुई। अवधी भाषा में हमें जो भावनात्मक संवेदनशीलता, संगीतमय प्रवाह और जन-जीवन की सरलता देखने को मिलती है, वह इसे काव्य के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाती है। इस लेख में हम काव्यभाषा के रूप में अवधी के उदय, विकास, प्रमुख रचनाकारों, रचनाओं और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
अवधी भाषा का परिचय
अवधी, हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र (लखनऊ, फैज़ाबाद, गोंडा, सुलतानपुर आदि) में बोली जाती है। यह पूरबी हिंदी की एक शाखा है और इसकी जड़ें अपभ्रंश तथा शौरसेनी प्राकृत में पाई जाती हैं। अवधी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज और अरबी-फारसी शब्दों का भी प्रयोग देखने को मिलता है, जिससे इसकी भाषिक संरचना समृद्ध और लचीली बनती है।
काव्यभाषा के रूप में अवधी का उदय
काव्यभाषा के रूप में अवधी का विकास 13वीं शताब्दी के आस-पास भक्ति आंदोलन के उदय के पश्चात् आरंभ हुआ। इस आंदोलन ने धार्मिक, सामाजिक और भाषाई रूप से भारतीय समाज को गहराई तक प्रभावित किया था। भक्ति आंदोलन के कवियों ने अपनी रचनाओं के लिए लोकभाषाओं को माध्यम बनाया, ताकि आम जनता भी आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति के भावों को समझ सके। इस सिलसिले में अवधी एक प्रभावशाली रूप में उभर कर सामने आई। रामभक्ति शाखा के संत कवियों ने अवधी को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। तुलसीदास जैसे महाकवि ने जब अवधी में ‘रामचरितमानस’ की रचना की, तो यह भाषा मात्र एक बोली नहीं रही, बल्कि जन-जन की काव्यभाषा बन गई।
अवधी काव्य की विशेषताएँ
1. सरलता और भावप्रवणताः अवधी भाषा में एक स्वाभाविक सरलता देखने को मिलती है, जिससे यह आमजन की बोली के बहुत समीप आ जाती है। इससे कविता में भावों की अभिव्यक्ति अत्यंत सहजता से होने लगती है।
2. लोकलय और संगीतात्मकताः अवधी में छंदों की विविधता और ध्वनियों का मधुर संयोजन काव्य को संगीतमय बना देता है। यही कारण है कि अवधी में भजन, चौपाई, दोहा, सोरठा आदि छंदों का प्रयोग व्यापक रूप से हुआ है।
3. धार्मिकता और नैतिकताः अवधी काव्य मुख्यतः भक्ति और धर्म से प्रेरित रहा है। इसमें रामकथा, कृष्णलीला, लोकनायक की स्तुति और नैतिक उपदेशों की भरमार है।
4. प्राकृतिक और सामाजिक चित्रणः अवधी कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण जीवन, ऋतु-वर्णन, प्राकृतिक सौंदर्य और सामाजिक संबंधों को जीवंत कर दिया।
प्रमुख अवधी कवि और उनकी काव्यरचनाएँ
1. मलिक मुहम्मद जायसी (15वीं शताब्दी) :
जायसी ने अवधी भाषा में ‘पद्मावत’ (1540) जैसी कालजयी काव्य रचना की, यह सूफी प्रेम-काव्य की एक अनुपम मिसाल मानी जाती है। इसमें प्रेम, विरह, भक्ति और नीति के तत्वों का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। जायसी के काव्य में हमें रूपक का गूढ़ प्रयोग और प्रतीकों की बहुलता दिखाई देती है।
2. तुलसीदास (1532-1623) :
अवधी को काव्यभाषा के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है, इसका सबसे बड़ा कारण है उनकी रचना रामचरित मानस। रामचरित मानस अवधी भाषा में लिखा गया रामकथा पर आधारित एक महाकाव्य है।
3. अकबर के दरबारी कवि :
अकबर के समय में हमें अवधी का दरबारी प्रयोग भी देखने को मिलता है। अब्दुल रहीम खानखाना जैसे कवियों ने अवधी मिश्रित हिंदी में नीति और भक्ति विषयक काव्यों की रचना की।
अवधी काव्य की विषयवस्तु
1. रामकथा और कृष्णकथा: अवधी में लिखे गए अधिकांश काव्य राम या कृष्ण के चरित्र पर आधारित हैं। इनमें ईश्वर के गुणों, लीलाओं और भक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है।
2. प्रेम और विरह: जायसी जैसे कवियों के सूफी काव्य में सांसारिक प्रेम को ईश्वरीय प्रेम का प्रतीक माना गया। ‘पद्मावत’ इसका प्रमुख उदाहरण है।
3. नीतिपरक शिक्षाएँ: तुलसीदास के दोहे और चौपाइयाँ नीति, धर्म और व्यवहारिक जीवन की शिक्षाओं से परिपूर्ण हैं।
4. सामाजिक यथार्थ: अवधी काव्य में ग्रामीण जीवन, स्त्री की स्थिति, किसान की कठिनाइयाँ, ऋतुचक्र और सामाजिक व्यवस्था का यथार्थ चित्रण मिलता है।
अवधी की काव्यशैली और छंद-प्रयोग
अवधी काव्य में प्रयोग होने वाले प्रमुख छंद इस प्रकार हैंः
- चौपाईः यह चार चरणों वाला छंद है, जो तुलसीदास की रामचरितमानस में प्रमुखता से मिलता है।
- दोहाः यह दो पंक्तियों का छंद है, जिसमें 13+11 मात्राओं का विन्यास होता है।
- सोरठाः यह छंद दोहा के समान ही है परंतु इसका पदक्रम उल्टा होता है।
- बरवै, कवित्त, सवैया आदि छंदों का भी अवधी काव्य में प्रयोग किया गया है।
अवधी काव्य का सामाजिक प्रभाव
अवधी काव्य ने उत्तर भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना को प्रभावित किया है। रामचरितमानस ने राम को ’मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में स्थापित करने का कार्य किया और भारतीय समाज की नैतिक धारणाओं को एक नया रूप प्रदान किया। अवधी में लिखी गई रचनाओं का पाठ, गायन और मंचन आज भी गाँव-गाँव में होता है, जो इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है।
निष्कर्ष
काव्यभाषा के रूप में अवधी का उदय न केवल भक्ति आंदोलन के प्रभाव का परिणाम है, बल्कि यह उस गहराई और सहजता की भी द्योतक है जो आमजन की भाषा में होती है। तुलसीदास और जायसी जैसे कवियों ने अवधी को जो प्रतिष्ठा प्रदान की है, वह अपने आप में अद्वितीय है। अवधी काव्य की भाषिक मधुरता, भाव-संवेदनशीलता और धार्मिकता इसे कालजयी बनाती है। आज जबकि वैश्विकरण के दौर में क्षेत्रीय भाषाएँ संकट में हैं, अवधी काव्य का संरक्षण और संवर्द्धन न केवल भाषिक विविधता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए भी अनिवार्य है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1➤ अवधी भाषा मुख्यतः किस क्षेत्र में बोली जाती है?
2➤ अवधी भाषा किस शाखा की उपभाषा है?
3➤ काव्यभाषा के रूप में अवधी का विकास किस काल में आरंभ हुआ?
4➤ अवधी को काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठा किस आंदोलन के कारण प्राप्त हुई?
5➤ रामचरितमानस के रचयिता कौन हैं?
6➤ जायसी की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
7➤ अवधी काव्य में प्रमुख रूप से कौन-कौन से छंद प्रयुक्त होते हैं?
8➤ दोहे में कितनी मात्राएँ होती हैं?
9➤ ‘पद्मावत’ किस शैली का काव्य है?
10➤ अकबर के दरबारी कवियों में किसने अवधी मिश्रित रचनाएँ लिखीं?