भूमिका
“एक टोकरी भर मिट्टी” हिंदी साहित्य की एक कालजयी कहानी है, जिसे माधवराव सप्रे ने 1901 में लिखा था। यह कहानी छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका में प्रकाशित हुई थी और भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय, मानवीय संवेदना और आत्मसम्मान जैसे विषयों को उजागर करती है। कहानी में एक गरीब विधवा और एक घमंडी जमींदार के बीच का संघर्ष चित्रित किया गया है, जो अंततः मानवीय करुणा और आत्मबोध की विजय के साथ समाप्त होता है।
लेखक का परिचय
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
माधवराव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के पथरिया गांव में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद उन्होंने रायपुर से मैट्रिक और 1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की ।
पत्रकारिता और साहित्यिक योगदान
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छत्तीसगढ़ मित्र (1900): यह मासिक पत्रिका उन्होंने पेंड्रा गांव से प्रकाशित की, जो हिंदी पत्रकारिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
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हिंदी केसरी (1906): लोकमान्य तिलक के ‘केसरी’ का हिंदी संस्करण नागपुर से प्रकाशित किया गया, जिसमें सप्रे जी ने संपादन का कार्य संभाला।
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कर्मवीर (1920): जबलपुर से प्रकाशित इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी जैसे साहित्यकारों को प्रेरित किया।
प्रमुख कृतियाँ
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“एक टोकरी भर मिट्टी“: हिंदी की पहली लघुकथा के रूप में मानी जाती है।
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अनुवाद कार्य:
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‘गीता रहस्य’ (बाल गंगाधर तिलक)
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‘दासबोध’ (समर्थ रामदास)
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‘महाभारत मीमांसा’ (चिंतामणि विनायक वैद्य)
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विज्ञान शब्दकोश (1902): काशी नागरी प्रचारिणी सभा के तहत हिंदी में विज्ञान और अर्थशास्त्र की शब्दावली विकसित की।
सप्रे संग्रहालय
भोपाल में 1984 में स्थापित ‘माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान’ उनके योगदान को संरक्षित करने के लिए समर्पित है। यह संस्थान पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में शोध के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है
एक टोकरी भर मिट्टी
कहानी का सारांश
‘एक टोकरी भर मिट्टी’ एक विधवा महिला की कहानी है, जिसकी झोपड़ी एक जमींदार के महल के पास स्थित है। जमींदार को अपनी भव्यता पर गर्व है और वह चाहता है कि विधवा अपनी झोपड़ी हटा ले, क्योंकि वह उसकी शान में खलल डालती है। विधवा की झोपड़ी उसके जीवन की यादों से जुड़ी हुई है; वहीं उसके पति, पुत्र और पतोहू की मृत्यु हुई थी, और अब उसकी पोती ही उसका एकमात्र सहारा है। जमींदार वकीलों की मदद से झोपड़ी पर कब्जा कर लेता है, जिससे विधवा और उसकी पोती बेघर हो जाते हैं।
विधवा की पोती झोपड़ी छूटने के बाद खाना-पीना छोड़ देती है। विधवा सोचती है कि यदि वह झोपड़ी की मिट्टी से चूल्हा बनाकर रोटी पकाएगी, तो पोती शायद खाना खा लेगी। वह जमींदार से एक टोकरी मिट्टी लेने की अनुमति मांगती है। जमींदार पहले तो क्रोधित होता है, लेकिन विधवा के विनम्र आग्रह पर अनुमति दे देता है। जब विधवा मिट्टी से भरी टोकरी उठाने के लिए जमींदार से मदद मांगती है, तो वह स्वयं टोकरी उठाने का प्रयास करता है, लेकिन असफल रहता है। विधवा कहती है, “महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी हैं। उसका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे?” यह सुनकर जमींदार को अपनी गलती का एहसास होता है और वह विधवा से क्षमा मांगकर उसकी झोपड़ी वापस लौटा देता है।
मुख्य पात्रों का विश्लेषण
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विधवा महिला: कहानी की नायिका एक गरीब, लेकिन आत्मसम्मान से परिपूर्ण विधवा है। वह अपनी झोपड़ी से भावनात्मक रूप से जुड़कर अपने परिवार की यादों को संजोए हुए है। अपनी पोती के प्रति उसकी ममता और संवेदनशीलता उसे एक सशक्त चरित्र बनाती है।
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जमींदार: एक घमंडी और अहंकारी व्यक्ति, जिसे अपनी संपत्ति और महल पर गर्व है। वह विधवा की झोपड़ी को अपनी शान के खिलाफ मानता है और उसे हटाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। लेकिन अंत में, विधवा की करुणा और आत्मसम्मान के सामने उसका अहंकार टूट जाता है।
कहानी के प्रमुख विषय
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सामाजिक अन्याय: कहानी में जमींदार द्वारा विधवा की झोपड़ी पर कब्जा करना उस समय के समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण को दर्शाता है।
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मानवीय संवेदना: विधवा की पोती के प्रति ममता और जमींदार का अंततः पश्चाताप करना मानवीय संवेदना की गहराई को उजागर करता है।
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आत्मसम्मान: विधवा का अपने आत्मसम्मान के लिए संघर्ष और झोपड़ी की मिट्टी के प्रति उसका लगाव इस विषय को प्रमुखता से प्रस्तुत करता है।
भाषा और शैली
माधवराव सप्रे की भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है। उन्होंने ग्रामीण जीवन, पात्रों की भावनाओं और सामाजिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है। संवादों के माध्यम से पात्रों की मनोस्थिति को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
कहानी की प्रासंगिकता
“एक टोकरी भर मिट्टी” आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी अपने समय में थी। सामाजिक असमानता, गरीबों के प्रति उपेक्षा और आत्मसम्मान की रक्षा जैसे विषय आज भी समाज में विद्यमान हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि करुणा, संवेदना और आत्मसम्मान के माध्यम से किसी भी अन्याय का सामना किया जा सकता है।
निष्कर्ष
“एक टोकरी भर मिट्टी” एक ऐसी कहानी है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देती है। यह कहानी न केवल सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती है, बल्कि मानवीय संवेदना और आत्मसम्मान की महत्ता को भी रेखांकित करती है। माधवराव सप्रे की यह रचना हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है, जो आज भी पाठकों के हृदय को स्पर्श करती है।
♦️ वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ के लेखक कौन हैं?
2➤ ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कब लिखी गई थी?
3➤ ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ किस पत्रिका में प्रकाशित हुई थी?
4➤ निम्न में से कौन-सी रचना माधवराव सप्रे द्वारा अनूदित नहीं है?
5➤ माधवराव सप्रे संग्रहालय कहाँ स्थित है?
6➤ विधवा की पोती कहानी में खाना-पीना क्यों छोड़ देती है?
7➤ झोपड़ी विधवा के लिए किसका प्रतीक है?
8➤ विधवा जमींदार से क्या मांगती है?
9➤ जमींदार कहानी की शुरुआत में कैसा व्यक्तित्व दर्शाता है?
10➤ कहानी का अंत किस प्रकार होता है?
11➤ ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ किस सामाजिक बुराई पर प्रकाश डालती है?
12➤ माधवराव सप्रे की लेखन शैली की विशेषता क्या है?