प्रस्तावना
आधुनिक साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में आई. ए. रिचर्ड्स (I. A. Richards) का नाम एक अत्यंत प्रभावशाली विचारक और समीक्षक के रूप में लिया जाता है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में जब साहित्यिक मूल्यांकन की परंपरागत मान्यताओं को चुनौती दी जा रही थी, उस समय रिचर्ड्स ने अपने मौलिक सिद्धांतों के माध्यम से साहित्य के अध्ययन और मूल्यांकन को एक नई दिशा दी। उनका ‘मूल्य सिद्धांत’ न केवल साहित्यिक मूल्य की अवधारणा को पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि काव्य की संरचना, भाषा और पाठकीय प्रतिक्रिया के बीच जटिल संबंधों को भी उजागर करता है।
यह लेख रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत की अवधारणा, उसकी पृष्ठभूमि, प्रमुख रचनाएँ, सैद्धांतिक पहलू और आलोचनात्मक मूल्यांकन की समग्र पड़ताल करेगा।
आई. ए. रिचर्ड्स : संक्षिप्त परिचय
आई. ए. रिचर्ड्स (I. A. Richards) का पूरा नाम इवर आर्मस्ट्रॉन्ग रिचर्ड्स था। इनका जन्म 26 फरवरी 1893 को इंग्लैंड के चेशायर में हुआ और निधन 7 सितंबर 1979 को हुआ। वे 20वीं शताब्दी के एक प्रमुख साहित्यिक आलोचक, शिक्षक, कवि और भाषाविद् थे।
रिचर्ड्स को विशेष रूप से आधुनिक साहित्यिक आलोचना का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने आलोचना को वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान किया। उनकी आलोचना-पद्धति में ‘पाठक की प्रतिक्रिया’, ‘संप्रेषण’, ‘भाषा का अर्थ’ तथा ‘साहित्यिक मूल्य’ जैसी अवधारणाओं का विश्लेषण मिलता है।
उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं:
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The Meaning of Meaning (1923) – जिसे उन्होंने चार्ल्स ओग्डन के साथ मिलकर लिखा
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Principles of Literary Criticism (1924)
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Practical Criticism (1929)
रिचर्ड्स की आलोचना-पद्धति को Practical Criticism के नाम से जाना जाता है, जिसने साहित्य के पाठ-केंद्रित अध्ययन को बढ़ावा दिया। उन्होंने साहित्यिक मूल्यों, काव्य की संप्रेषणीयता, पाठक की मानसिक प्रतिक्रियाएँ आदि को आलोचना का आधार बनाया।
आई. ए. रिचर्ड्स का योगदान आधुनिक आलोचना और भाषा विज्ञान दोनों में ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण और स्थायी है।
मूल्य सिद्धांत : एक अवधारणात्मक दृष्टिकोण
रिचर्ड्स के अनुसार साहित्यिक कृति का मूल्य निर्धारण केवल नैतिकता, भावनाओं, या लेखक की मंशा के आधार पर नहीं किया जा सकता। उन्होंने काव्य और साहित्य के मूल्यांकन को एक मनोवैज्ञानिक, सेमांटिक और संप्रेषणात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा।
रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत के मूल तत्व निम्नलिखित हैं:
1. साहित्यिक मूल्य का मनोवैज्ञानिक आधार
रिचर्ड्स का मानना था कि साहित्यिक मूल्य वस्तुनिष्ठ नहीं बल्कि पाठक की मानसिक प्रक्रिया में निहित होते हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई पाठक काव्य-पाठ करता है, तो उसमें उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएं — जैसे भावना, कल्पना, संतुलन और संकल्प — ही साहित्यिक कृति के मूल्य को परिभाषित करती हैं। उन्होंने इसे “मानसिक संतुलन की स्थिति” कहा है।
वे लिखते हैं:
“The value of poetry lies in its power to order and harmonize our impulses.”
इस प्रकार, साहित्य का मूल्य इस बात में निहित होता है कि वह पाठक के मानसिक संघर्ष को किस हद तक संतुलित करता है।
2. ‘संतुलन’ और ‘समन्वय’ की अवधारणा
रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत में ‘संतुलन’ एक केंद्रीय अवधारणा है। उनका मानना था कि साहित्य — विशेषकर कविता — मनुष्य के विविध मानसिक आवेगों (impulses) को संतुलित करती है। वे इसे “psychological equilibrium” की स्थिति कहते हैं। इस दृष्टिकोण में, मूल्य उसी साहित्य में है जो पाठक की आंतरिक असंगतियों और तनावों को एक संतुलित रूप देता है।
उनका कथन है:
“A good poem is a machine to organize the mind.”
अर्थात मूल्य उस कृति में अधिक है, जो पाठक के अंतर्जगत को सुव्यवस्थित करती है।
3. साहित्य और संप्रेषण (Communication)
रिचर्ड्स ने साहित्य को संप्रेषण की एक विशिष्ट प्रणाली माना। उनकी रचना The Meaning of Meaning में उन्होंने भाषा और अर्थ के बीच जटिल संबंधों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि शब्दों का अर्थ निश्चित नहीं होता, बल्कि वह पाठक की समझ, संस्कृति और मानसिक संरचना पर निर्भर करता है।
इस आधार पर, साहित्यिक मूल्य इस बात में छिपा होता है कि वह पाठक से किस प्रकार की संप्रेषणात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है।
4. ‘प्रैक्टिकल क्रिटिसिज़्म’ और मूल्य
रिचर्ड्स की पुस्तक Practical Criticism में उन्होंने बिना लेखक या काव्य-प्रसंग का नाम दिए विद्यार्थियों से कविताएँ पढ़वाईं और उनकी प्रतिक्रियाएँ एकत्र कीं। यह प्रयोग यह समझने के लिए किया गया कि पाठक किसी कविता को कैसे ग्रहण करता है।
इस अध्ययन के निष्कर्षों से उन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया कि साहित्य का मूल्य “सामूहिक अनुभव” या “प्रतिक्रिया की गुणवत्ता” पर आधारित होता है — न कि लेखक की प्रतिष्ठा, ऐतिहासिक महत्व या शैलीगत विशेषताओं पर।
5. मूल्य का बौद्धिक और नैतिक पक्ष
हालाँकि रिचर्ड्स साहित्यिक मूल्य को पूरी तरह नैतिकता से नहीं जोड़ते, फिर भी वे यह मानते हैं कि अच्छी साहित्यिक कृति व्यक्ति के संज्ञानात्मक विकास और नैतिक बोध को विकसित करती है। उन्होंने इसे ‘अभ्यासी नैतिकता’ (practical morality) से जोड़ा। उनके अनुसार, साहित्य पाठक को आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है और उसकी सोच को व्यापक बनाता है।
6. कविता का मूल्य : एक विशेष स्थान
रिचर्ड्स ने कविता को विशेष स्थान दिया है। उनके अनुसार कविता का प्रभावशाली मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह पाठक की भावनाओं और बुद्धि के बीच किस हद तक सामंजस्य स्थापित करती है। उन्होंने लिखा:
“Poetry is capable of saving us.”
इस उद्धरण में रिचर्ड्स यह संकेत करते हैं कि कविता में एक प्रकार की उपचारात्मक शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन में अर्थ और संतुलन ला सकती है।
7. साहित्यिक मूल्य और शिक्षा
रिचर्ड्स का यह भी मानना था कि साहित्यिक शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचनाओं का संचरण नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें विद्यार्थियों को गहराई से सोचने, मूल्य पहचानने और अपनी प्रतिक्रियाओं को संतुलित करने का प्रशिक्षण देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छा पाठक वही है जो एक रचना के प्रभाव को आत्मसात कर सके।
रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत की विशेषताएँ
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मनोवैज्ञानिकता – उन्होंने साहित्यिक मूल्य को पाठक के मानसिक अनुभव से जोड़ा।
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पाठ-केंद्रित दृष्टिकोण – लेखक की मंशा या सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भ को गौण माना।
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विवेचनात्मक प्रयोग – ‘Practical Criticism’ एक व्यवहारिक पद्धति है, जो मूल्य-निर्धारण को वैज्ञानिकता प्रदान करती है।
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संप्रेषण के आधार पर मूल्य – उन्होंने कहा कि शब्दों के अर्थ संदर्भ-आधारित होते हैं, अतः मूल्य भी सापेक्ष होते हैं।
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संतुलन और समन्वय पर बल – उनका मानना था कि श्रेष्ठ कृति वही है जो पाठक के मन को संतुलित करती है।
रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत की आलोचना
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वैयक्तिक प्रतिक्रियाओं पर अधिक बल – कुछ आलोचकों ने कहा कि रिचर्ड्स का दृष्टिकोण अत्यधिक मनोवैज्ञानिक और व्यक्ति-केंद्रित है, जिससे सामाजिक या ऐतिहासिक मूल्यांकन उपेक्षित हो जाता है।
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संप्रेषण की सापेक्षता – रिचर्ड्स के अनुसार अर्थ और मूल्य सापेक्ष होते हैं, जो साहित्यिक स्थायित्व और सार्वभौमिकता के सिद्धांत को चुनौती देता है।
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साहित्यिक सौंदर्य की उपेक्षा – उन्होंने साहित्यिक शिल्प, सौंदर्यबोध और काव्यात्मक गुणों की अपेक्षा उसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।
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नैतिक मूल्य के प्रति अस्पष्ट दृष्टिकोण – उन्होंने साहित्य के नैतिक पक्ष को कभी स्वीकारा, कभी नकारा, जिससे उनके विचारों में विरोधाभास का आरोप भी लगता है।
उपसंहार
आई. ए. रिचर्ड्स का मूल्य सिद्धांत आधुनिक साहित्यिक आलोचना की दिशा में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतीक है। उन्होंने पाठक की भूमिका को केंद्र में रखा और साहित्य को एक संप्रेषणात्मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में देखा। उनका यह सिद्धांत आज भी साहित्य के मूल्यांकन में नवीन दृष्टिकोण प्रदान करता है।
हालाँकि उनके सिद्धांत की कुछ सीमाएँ हैं, फिर भी यह नकारा नहीं जा सकता कि उन्होंने साहित्यिक मूल्य को परंपरागत मापदंडों से ऊपर उठाकर एक अधिक वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और अनुभवशील धरातल पर प्रतिष्ठित किया।
उनका योगदान यह सिद्ध करता है कि साहित्य न केवल एक कलात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि मानव-चेतना की गहराइयों में प्रवेश कर जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करने का एक सशक्त माध्यम भी है।
♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ आई. ए. रिचर्ड्स का पूरा नाम क्या था?
2➤ रिचर्ड्स की दृष्टि में साहित्यिक मूल्य का निर्धारण किस पर आधारित होता है?
3➤ रिचर्ड्स ने कविता को किस प्रकार की शक्ति माना है?
4➤ साहित्यिक मूल्य का मनोवैज्ञानिक आधार किसने दिया?
5➤ रिचर्ड्स ने किस सिद्धांत के माध्यम से साहित्यिक मूल्य को समझाया?
6➤ रिचर्ड्स की प्रमुख रचनाओं में से एक नहीं है –
7➤ रिचर्ड्स का शिक्षा संबंधी विचार था कि—
8➤ रिचर्ड्स के अनुसार “अच्छा पाठक” कौन होता है?
9➤ रिचर्ड्स ने साहित्य को किस प्रकार के विकास से जोड़ा?
10➤ रिचर्ड्स किस आलोचना शैली के जनक माने जाते हैं?
11➤ रिचर्ड्स के आलोचना सिद्धांत का मुख्य आधार क्या है?