प्रस्तावना
काव्यभाषा (Poetic Language) का प्रश्न साहित्यिक विमर्श में सदैव केंद्रीय रहा है। बीसवीं शताब्दी के आधुनिक आलोचक आई. ए. रिचर्ड्स (I. A. Richards) ने काव्य की भाषा, अर्थ और संप्रेषण के संबंध में जो अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं, वे आधुनिक काव्यशास्त्र की नींव मानी जाती हैं। रिचर्ड्स की आलोचना पद्धति में मनोविज्ञान, भाषा विज्ञान और संप्रेषणशास्त्र का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। उनके काव्यभाषा संबंधी सिद्धांत ने न केवल अंग्रेजी साहित्य को, बल्कि संपूर्ण साहित्यिक आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की।
आई. ए. रिचर्ड्स का संक्षिप्त परिचय
आई. ए. रिचर्ड्स (Ivor Armstrong Richards) का जन्म 1893 में इंग्लैंड में हुआ था। वे एक महान भाषाविद, शिक्षाशास्त्री, काव्यशास्त्रज्ञ और संप्रेषणशास्त्री थे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और साहित्यिक आलोचना की पद्धति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किया। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं —
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Principles of Literary Criticism (1924)
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Science and Poetry (1926)
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Practical Criticism (1929)
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The Meaning of Meaning (Ogden के साथ, 1923)
इन कृतियों में उन्होंने कविता की भाषा, अर्थ और प्रभाव के विश्लेषण के लिए मनोवैज्ञानिक और भाषावैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग किया।
काव्यभाषा की समस्या
प्रत्येक भाषा में सामान्य संप्रेषण (referential communication) के लिए एक प्रकार की भाषा प्रयोग की जाती है, जिसे “सामान्य भाषा” या “संचार भाषा” कहा जा सकता है। वहीं, काव्यभाषा का उद्देश्य केवल सूचना देना नहीं होता, बल्कि वह भाव, कल्पना और अनुभव की जटिलताओं को व्यक्त करती है। रिचर्ड्स ने इस काव्यभाषा को वैज्ञानिक ढंग से समझने और विश्लेषित करने का प्रयास किया। उन्होंने यह समझने की चेष्टा की कि—
“कविता क्या कहती है, कैसे कहती है और किस प्रकार से वह पाठक पर प्रभाव डालती है?”
काव्य में अर्थ की समस्या
रिचर्ड्स ने काव्यभाषा के संदर्भ में अर्थ (meaning) की जटिलता पर विशेष ध्यान दिया। उनके अनुसार, किसी भी काव्य रचना का ‘अर्थ’ केवल उसके शाब्दिक या भाषिक अर्थ तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह एक संपूर्ण मानसिक अनुभव होता है, जिसमें पाठक की भावनाएँ, संवेदनाएँ, स्मृतियाँ और कल्पनाएँ सम्मिलित होती हैं।
उन्होंने ‘अर्थ’ को चार स्तरों में विभाजित किया:
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सामुदायिक अर्थ (Sense): शब्दों का शाब्दिक अर्थ या प्रत्यक्ष अर्थ।
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भावनात्मक अर्थ (Feeling): कविता द्वारा व्यक्त की गई भावना या भावप्रवणता।
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लक्ष्य अर्थ (Tone): कवि का दृष्टिकोण या दृष्टि—जिसमें वह पाठक से किसी भावभूमि पर संवाद करता है।
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विन्यास (Intention): कवि की अभिव्यक्ति का उद्देश्य— जिसमें यह जानने को मिलता है कि वह क्यों कह रहा है और किस प्रकार से कह रहा है।
इन चारों स्तरों का संतुलन काव्य को प्रभावी बनाता है।
काव्य और विज्ञान का अंतर
रिचर्ड्स ने अपनी पुस्तक Science and Poetry में काव्य और विज्ञान के बीच का मूल अंतर स्पष्ट किया है। विज्ञान तथ्यों की खोज करता है और सत्य की स्थापना करता है। उसकी भाषा वस्तुनिष्ठ (objective) होती है, जबकि काव्य भावात्मक (emotive) होता है। कविता का उद्देश्य तथ्यों की प्रस्तुति नहीं, बल्कि अनुभव और भाव की अंतर्वस्तु को व्यक्त करना होता है। वह कहते हैं-
“कविता का सत्य वस्तुनिष्ठ नहीं, बल्कि व्यक्तिपरक और मनोवैज्ञानिक होता है।”
कविता मनुष्य के भीतर चलने वाली मानसिक प्रक्रियाओं की अभिव्यक्ति है।
काव्यभाषा में द्वि-प्रभाव (Dual Function of Language)
रिचर्ड्स ने काव्यभाषा की द्वैध प्रकृति पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कविता की भाषा में दो कार्य होते हैं:
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संदर्भात्मक कार्य (Referential Function): यह शब्दों के शाब्दिक अर्थ से संबंधित है।
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भावात्मक कार्य (Emotive Function): यह पाठक की भावनाओं को उद्दीप्त करने वाला प्रभाव है।
रिचर्ड्स के अनुसार, जब कोई कविता इन दोनों कार्यों में संतुलन बना लेती है, तभी वह सफल होती है। केवल भावात्मकता या केवल अर्थवत्ता से कविता अपूर्ण होती है।
काव्य के मनोवैज्ञानिक प्रभाव
आई. ए. रिचर्ड्स ने यह मान्यता दी कि कविता का प्रभाव एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। कविता पाठक के मानसिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक होती है। वह मनोविकारों का नियंत्रण करती है और एक प्रकार की “भावनात्मक संतुलन की चिकित्सा” प्रदान करती है।
उन्होंने कविता को एक ‘विकल्पात्मक अनुभव’ (Alternative Experience) बताया, जो हमें वास्तविक जीवन की जटिलताओं से उबार कर एक नई अनुभूति देता है। इस प्रकार कविता व्यक्ति के भाव-जगत को परिष्कृत करती है और मानसिक विकास में सहायक होती है।
‘Practical Criticism’ और काव्यभाषा का परीक्षण
रिचर्ड्स की पुस्तक Practical Criticism (1929) उनके प्रयोगात्मक आलोचना कार्यों की परिणति है। इसमें उन्होंने छात्रों को बिना लेखक या शीर्षक बताए कविताएँ दीं और उनसे उनके अर्थ और प्रभाव पर टिप्पणियाँ करने को कहा। इस प्रयोग का उद्देश्य यह समझना था कि पाठक कविता को कैसे समझते हैं और उसमें क्या अर्थ ग्रहण करते हैं।
इससे रिचर्ड्स ने यह निष्कर्ष निकाला कि—
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लोग कविता को सामान्य भाषा की तरह समझते हैं।
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काव्य के अर्थ और प्रभाव की समझ पाठक की मानसिक और भावनात्मक पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है।
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काव्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह पाठक में मानसिक संतुलन और भावात्मक अनुक्रिया उत्पन्न कर पाए।
कविता की आलोचना के लिए ‘New Criticism’ की भूमिका
रिचर्ड्स को New Criticism आंदोलन का प्रेरणास्रोत माना जाता है। यद्यपि उन्होंने यह शब्द नहीं गढ़ा, लेकिन उनकी कार्यपद्धति—विश्लेषणात्मक, पाठ-आधारित और भाषा-केंद्रित थी, जो बाद में न्यू क्रिटिसिज्म की रीढ़ बनी।
उनकी आलोचना में निम्न विशेषताएँ मिलती हैं:
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Textual Emphasis: रचना स्वयं अपने अर्थ की वाहक है।
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Reader Response Analysis: पाठक की मानसिकता का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।
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Ambiguity and Irony: कविता बहुअर्थी होती है और अनेक भावों को समेटे होती है।
संप्रेषण सिद्धांत और काव्यभाषा
रिचर्ड्स ने संप्रेषण (Communication) की प्रक्रिया को समझने के लिए एक त्रिकोणात्मक मॉडल प्रस्तुत किया—‘Semantic Triangle’ या ‘Triangle of Meaning’, जिसमें तीन घटक होते हैं:
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Symbol (शब्द या संकेत)
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Referent (वह वस्तु या विचार, जिसकी ओर शब्द संकेत करता है)
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Thought or Reference (मानसिक बिंब या विचार)
यह त्रिकोण यह दर्शाता है कि शब्द का अर्थ प्रत्यक्ष रूप से वस्तु से नहीं, बल्कि उस पर विचार करने की प्रक्रिया से जुड़ता है। इस मॉडल के माध्यम से रिचर्ड्स ने यह स्पष्ट किया कि काव्यभाषा को समझने के लिए केवल शब्द या वाक्य नहीं, बल्कि संपूर्ण मानसिक प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
रिचर्ड्स के काव्यभाषा सिद्धांत की विशेषताएँ
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मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: काव्य का प्रभाव मानसिक प्रक्रिया का परिणाम है।
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भावात्मकता का महत्व: काव्य केवल सूचना नहीं देता, भावनाओं को संप्रेषित करता है।
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अर्थ की बहुलता: काव्य एक बहुअर्थी संप्रेषण है, जिसे पाठक अपने अनुभवों से ग्रहण करता है।
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संतुलन की अवधारणा: काव्य व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक संतुलन को बनाए रखने में सहायक है।
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पाठक केंद्रित आलोचना: रचना का प्रभाव पाठक की ग्रहणशक्ति पर निर्भर करता है।
रिचर्ड्स के सिद्धांत की सीमाएँ
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उनकी आलोचना बहुत अधिक मनोवैज्ञानिक हो जाती है, जिससे साहित्यिक सौंदर्य की अनुभूति गौण हो जाती है।
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उन्होंने काव्य के सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों की उपेक्षा की।
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उनके सिद्धांत पाठक की प्रतिक्रिया पर अधिक केंद्रित हैं, जिससे कभी-कभी लेखक का उद्देश्य पीछे छूट जाता है।
निष्कर्ष
आई. ए. रिचर्ड्स का काव्यभाषा सिद्धांत बीसवीं शताब्दी की साहित्यिक आलोचना में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। उन्होंने कविता को मनोवैज्ञानिक और संप्रेषणात्मक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया। उनके विचारों से यह स्पष्ट होता है कि कविता एक जटिल मानसिक क्रिया है, जो भाषा के माध्यम से पाठक के हृदय में गहराई तक प्रवेश करती है। रिचर्ड्स की काव्यभाषा की अवधारणा आधुनिक आलोचना की नींव बन गई और आगे चलकर अनेक विचारकों ने इसे विकसित किया।
उनका योगदान आज भी साहित्य, संप्रेषण और भाषा विज्ञान के विद्यार्थियों और अध्येताओं के लिए पथप्रदर्शक है।
♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ रिचर्ड्स के अनुसार कविता का ‘अर्थ’ एक प्रकार का क्या है?
2➤ रिचर्ड्स ने काव्य में अर्थ के कितने स्तर बताए?
3➤ इनमें से कौन-सा काव्य के अर्थ का स्तर नहीं है?
4➤ काव्य के संदर्भ में ‘विन्यास’ का आशय है –
5➤ रिचर्ड्स के अनुसार कविता का सत्य कैसा होता है?
6➤ रिचर्ड्स के अनुसार काव्यभाषा के दो कार्य कौन-से हैं?
7➤ संदर्भात्मक कार्य का संबंध किससे होता है?
8➤ भावात्मक कार्य किससे जुड़ा होता है?
9➤ रिचर्ड्स ने कविता को किस प्रकार का अनुभव बताया?
10➤ रिचर्ड्स के अनुसार कविता की सफलता किस पर निर्भर करती है?
11➤ रिचर्ड्स का संप्रेषण त्रिकोण किन तीन घटकों पर आधारित है?
12➤ त्रिकोण में ‘सिंबल’ का तात्पर्य है –
13➤ रिचर्ड्स के अनुसार कविता पाठक में क्या उत्पन्न करती है?
14➤ रिचर्ड्स ने किसके लिए “मल्टीपल मीनिंग” की बात की?
15➤ रिचर्ड्स के अनुसार कविता किसे संतुलित करती है?