प्रस्तावना
पाश्चात्य काव्यशास्त्र में अरस्तु का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रहा है। उनकी प्रसिद्ध कृति ‘Poetics’ (काव्यशास्त्र) में उन्होंने त्रासदी (Tragedy) की विशिष्टताओं का वर्णन करते हुए जो भावनात्मक प्रक्रिया बताई है, उसे ‘विरेचन सिद्धांत’ (Catharsis Theory) कहा जाता है। यह सिद्धांत आज भी साहित्यिक आलोचना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। विरेचन का अर्थ है—‘शुद्धिकरण’ या ‘शुद्धि’। अरस्तु के अनुसार, त्रासदी का उद्देश्य दर्शकों के हृदय में करुणा (pity) और भय (fear) जैसे भाव उत्पन्न कर उन्हें शुद्ध करना होता है। यह लेख अरस्तु के विरेचन सिद्धांत की विस्तारपूर्वक विवेचना करेगा।
1. अरस्तु का संक्षिप्त परिचय
अरस्तु (384–322 ई. पू.) महान यूनानी दार्शनिक, वैज्ञानिक और साहित्यिक चिंतक थे। वे प्लेटो के शिष्य और सिकंदर महान के गुरु थे। अरस्तु ने तर्कशास्त्र, राजनीति, विज्ञान, नीतिशास्त्र और सौंदर्यशास्त्र जैसे विविध क्षेत्रों में योगदान दिया। उनकी कृति Poetics को साहित्यशास्त्र का प्रथम सुव्यवस्थित ग्रंथ माना जाता है। इसमें उन्होंने त्रासदी और महाकाव्य की संरचना, तत्व और प्रभावों की विश्लेषणात्मक व्याख्या की है।
2. विरेचन सिद्धांत की परिभाषा
अरस्तु ने ‘Poetics’ में त्रासदी को इस प्रकार परिभाषित किया है:
“Tragedy is an imitation of an action that is serious, complete, and of a certain magnitude; in language embellished with each kind of artistic ornament… through pity and fear effecting the proper catharsis of these emotions.”
अनुवाद:
“त्रासदी एक गंभीर, पूर्ण और विशिष्ट महत्व की क्रिया का अनुकरण है, जो अलंकरणयुक्त भाषा में प्रस्तुत की जाती है और करुणा तथा भय के माध्यम से इन भावनाओं का उचित विरेचन करती है।”
इस परिभाषा में ‘catharsis’ शब्द अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ होता है – शुद्ध करना, उद्भ्रांत भावनाओं का निष्कासन या भावनात्मक पथ्य प्रदान करना।
3. विरेचन (Catharsis) का मूलार्थ और रूपांतरण
‘कैथार्सिस’ शब्द मूलतः ग्रीक चिकित्सा पद्धति से लिया गया था, जहाँ इसका अर्थ था – शरीर से विकारों को बाहर निकालना। अरस्तु ने इसका मनोवैज्ञानिक और सौंदर्यशास्त्रीय संदर्भ में प्रयोग किया।
उनके अनुसार, जब दर्शक त्रासदी को देखते हैं, तो वे नायक की पीड़ा को देखकर दया (pity) और भय (fear) का अनुभव करते हैं। यह अनुभव दर्शकों की भीतरी भावनाओं को उद्वेलित करता है और अंततः एक प्रकार का भावनात्मक शुद्धिकरण होता है, जिससे दर्शक मानसिक रूप से हल्के और संतुलित अनुभव करते हैं।
4. विरेचन की व्याख्या के विभिन्न दृष्टिकोण
अरस्तु ने ‘कैथार्सिस’ शब्द की स्पष्ट व्याख्या नहीं की, जिससे यह सिद्धांत बहस और विविध व्याख्याओं का विषय बन गया। मुख्यतः इससे तीन प्रमुख दृष्टिकोण विकसित हुए हैं:
(क) आनंदात्मक (Aesthetic) दृष्टिकोण
इस व्याख्या के अनुसार कैथार्सिस का अर्थ है – सौंदर्यबोध के माध्यम से मानसिक संतुलन प्राप्त करना। दर्शक नायक की त्रासदी में सौंदर्य, भावुकता और कलात्मकता के संयोग से एक प्रकार की तृप्ति अनुभव करते हैं। इससे भावनात्मक हल्कापन और संतुलन उत्पन्न होता है।
(ख) नैतिक (Ethical) दृष्टिकोण
यह दृष्टिकोण कहता है कि त्रासदी दर्शकों को नैतिक शिक्षा देती है। नायक की त्रुटियाँ, उसके कर्म और परिणाम दर्शक को यह समझाने में सहायक होते हैं कि कैसे गलतियाँ जीवन को विनाश की ओर ले जाती हैं। इससे दर्शक अपने आचरण में सुधार लाने के लिए प्रेरित होता है।
(ग) मनोवैज्ञानिक (Psychological) दृष्टिकोण
यह सबसे प्रसिद्ध और स्वीकृत व्याख्या है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, त्रासदी में उत्पन्न करुणा और भय जैसे भाव दर्शकों के भीतर सुप्त रूप में विद्यमान होते हैं। जब नायक का दुखद अंत होता है, तो ये भाव तीव्र हो उठते हैं और एक ऊँचाई तक पहुँचकर समाप्त हो जाते हैं, जिससे दर्शक के मन का भार हल्का होता है।
5. विरेचन सिद्धांत की विशेषताएँ
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भावनात्मक शुद्धि – त्रासदी दर्शकों के मन में संचित करुणा और भय जैसे भावों को मुक्त करती है।
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सामूहिक अनुभव – रंगमंच पर त्रासदी के प्रदर्शन के दौरान एकत्रित दर्शक सामूहिक रूप से भावनाओं का अनुभव करते हैं, जिससे सामाजिक और मानसिक सामूहिकता बनती है।
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आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार – दर्शक नायक के भाग्य को देखकर आत्ममंथन करते हैं, जिससे वे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित होते हैं।
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कलात्मक उद्देश्य – त्रासदी केवल दुख देने वाली रचना नहीं होती, बल्कि वह कलात्मक सौंदर्य और मानवता का गहन चित्रण करती है।
6. त्रासदी, करुणा और भय
अरस्तु के अनुसार त्रासदी के दो प्रमुख भाव हैं – करुणा और भय।
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करुणा (Pity) तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति दुख या दुर्भाग्य का शिकार होता है, विशेषकर जब वह ऐसा नहीं चाहता या उसका दोष बहुत कम होता है।
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भय (Fear) तब उत्पन्न होता है जब दर्शक यह अनुभव करते हैं कि वही दुर्भाग्य उनके साथ भी हो सकता है।
जब इन दोनों भावों की चरम अभिव्यक्ति होती है और वे शुद्ध होकर समाप्त हो जाते हैं, तब विरेचन की स्थिति आती है।
7. विरेचन और प्लेटो का विरोध
अरस्तु का विरेचन सिद्धांत प्लेटो के विचारों का उत्तर भी माना जाता है। प्लेटो ने कविता को तर्कहीन, भ्रामक और अनुकरण की तीसरी प्रति मानते हुए समाज के लिए हानिकारक कहा था। उन्होंने काव्य को भावनात्मक उत्तेजना देने वाला और नैतिक दृष्टि से भ्रष्टकारी बताया।
इसके विपरीत, अरस्तु ने कहा कि त्रासदी न केवल भावनात्मक संतुलन प्रदान करती है, बल्कि दर्शक को नैतिक और मानसिक रूप से परिपक्व बनाती है। इस प्रकार विरेचन सिद्धांत कविता की समाजोपयोगिता का समर्थन करता है।
8. आधुनिक आलोचना और विरेचन
वर्तमान में अनेक मनोवैज्ञानिकों और सौंदर्यशास्त्रियों ने विरेचन सिद्धांत को अपने-अपने दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया है।
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सिगमंड फ्रायड ने विरेचन को ‘भावनात्मक दबाव से मुक्ति’ के रूप में देखा और इसे मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा पद्धति से जोड़ा।
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T. S. Eliot ने त्रासदी के प्रभाव को ‘साहित्यिक अनुभव की गहराई’ के रूप में स्वीकार किया।
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R. A. Scott-James ने कहा कि त्रासदी दर्शकों को केवल दुःख नहीं देती, बल्कि उन्हें मानवीय सहानुभूति और जीवन के सत्य से जोड़ती है।
9. हिंदी साहित्य में विरेचन की छाया
हालांकि विरेचन सिद्धांत पाश्चात्य परंपरा का हिस्सा है, किंतु इसके तत्व भारतीय साहित्य और नाट्यशास्त्र में भी मिलते हैं। भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में वर्णित ‘रस निष्पत्ति’ की प्रक्रिया में भी दर्शक के मन में स्थायी भावों की जागृति और तृप्ति का वर्णन मिलता है, जो विरेचन की ही एक भारतीय व्याख्या है।
हिंदी त्रासदी जैसे ‘अंधायुग’ (धर्मवीर भारती), ‘अंधेरे में’ (मुक्तिबोध) आदि में भी विरेचन का अनुभव किया जा सकता है।
10. निष्कर्ष
अरस्तु का विरेचन सिद्धांत साहित्यिक आलोचना में एक मौलिक और क्रांतिकारी विचारधारा है। यह सिद्धांत त्रासदी की महत्ता को केवल कलात्मक आनंद तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे मानसिक, नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी सार्थक बनाता है। त्रासदी जीवन की कटु सच्चाइयों को उद्घाटित करते हुए दर्शकों के हृदय में छिपी भावनाओं का परिष्कार करती है, जिससे उन्हें संतुलन, करुणा और आत्मबोध प्राप्त होता है।
इस प्रकार विरेचन सिद्धांत साहित्य और जीवन के बीच एक गहरी कड़ी स्थापित करता है। अरस्तु का यह विचार आज भी साहित्यिक विमर्श में उतना ही प्रासंगिक है जितना कि प्राचीन यूनानी रंगमंच के समय था।
♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️
1➤ ‘विरेचन’ (Catharsis) शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
2➤ विरेचन सिद्धांत किस यूनानी दार्शनिक ने प्रतिपादित किया?
3➤ त्रासदी के दो प्रमुख भाव कौन से हैं?
4➤ ‘Poetics’ किस भाषा में लिखी गई मूल कृति है?
5➤ किस विचारक ने विरेचन को ‘भावनात्मक दबाव से मुक्ति’ कहा?
6➤ मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार विरेचन क्या करता है?
7➤ किस भारतीय नाटक में विरेचन की छाया स्पष्ट देखी जाती है?
8➤ विरेचन सिद्धांत साहित्य की किस शाखा से जुड़ा है?
9➤ प्लेटो और अरस्तु के विचारों में मुख्य अंतर क्या है?
10➤ विरेचन का प्रभाव दर्शक पर कैसा होता है?