प्रस्तावना
साहित्य का मूल्यांकन और विश्लेषण करने के लिए विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। इन सिद्धांतों में सबसे प्राचीन और प्रभावशाली सिद्धांतों में से एक है “अनुकरण सिद्धांत” (Mimesis Theory), जिसे यूनानी दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) ने प्रतिपादित किया था। यह सिद्धांत केवल साहित्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कला, नाटक, काव्य, दर्शन और सौंदर्यशास्त्र के विभिन्न पक्षों को भी प्रभावित करता है। अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत पश्चिमी साहित्य-चिंतन की नींव बन गया, और उसकी “Poetics” (काव्यशास्त्र) पुस्तक इस सिद्धांत का मूल ग्रंथ मानी जाती है।
इस लेख में हम अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, उसके मूल तत्त्वों को समझेंगे, उसकी पृष्ठभूमि में प्लेटो के विचारों की भूमिका पर चर्चा करेंगे, और आधुनिक साहित्य व कला में उसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन करेंगे।
1. अनुकरण (Mimesis) की परिभाषा
अनुकरण (Mimesis) का सामान्य अर्थ है – “नकल” या “प्रतिरूपण”। परंतु अरस्तु के अनुसार अनुकरण का तात्पर्य केवल बाह्य रूप की नकल नहीं है, बल्कि वस्तु के सार (essence) की कलात्मक प्रस्तुति है। उन्होंने कहा कि काव्य, नाटक, संगीत, चित्रकला आदि कलाएं मानव जीवन के सत्य का अनुकरण करती हैं – वह सत्य जो प्रत्यक्ष रूप में नहीं दिखता, परंतु अनुभव और कल्पना के माध्यम से प्रकट होता है।
अरस्तु के शब्दों में:
“Poetry is more philosophical and more serious than history; for poetry speaks more of universals, whereas history of particulars.”
– Poetics
इस कथन से स्पष्ट होता है कि इतिहास केवल तथ्यों का विवरण देता है, जबकि काव्य जीवन के व्यापक सत्य का बोध कराता है।
2. प्लेटो और अरस्तु – अनुकरण की द्वंद्वात्मकता
अरस्तु से पहले उनके गुरु प्लेटो (Plato) ने अनुकरण को एक नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा था। प्लेटो ने अपनी कृति “The Republic” में कहा था कि संसार की प्रत्येक वस्तु आदर्श (Ideal) का प्रतिबिंब है, और कला उस आदर्श का द्विगुणित प्रतिबिंब मात्र है – अर्थात् कला यथार्थ से दो कदम दूर होती है। उनके अनुसार कविता या चित्रकला हमें सत्य से दूर ले जाती है और भावनाओं को भड़काकर आत्मा को भ्रमित करती है।
प्लेटो के इस विचार का खंडन करते हुए अरस्तु ने कहा कि:
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अनुकरण स्वाभाविक है – मनुष्य जन्मजात अनुकरणशील प्राणी है।
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कला आत्मिक परिष्कार का माध्यम है – वह केवल नकल नहीं, सृजनात्मक प्रक्रिया है।
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अनुकरण शिक्षाप्रद है – हम कल्पनाशील अनुभवों के माध्यम से यथार्थ को बेहतर समझ सकते हैं।
इस प्रकार अरस्तु ने अनुकरण को नकारात्मक नहीं, बल्कि रचनात्मक और उपयोगी प्रक्रिया माना।
3. काव्य का अनुकरण: अरस्तु की दृष्टि
अरस्तु के अनुसार काव्य एक रचनात्मक अनुकरण है जो “क्रिया” (Action) का अनुकरण करता है। “Poetics” में वह कहते हैं:
“Tragedy is an imitation of an action that is serious, complete, and of a certain magnitude… through pity and fear effecting the proper purgation (catharsis) of these emotions.”
इस परिभाषा के माध्यम से अरस्तु यह स्पष्ट करते हैं कि काव्य (विशेषकर त्रासदी) जीवन की गम्भीर और अर्थपूर्ण क्रियाओं का अनुकरण करता है। वह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक शुद्धिकरण (Catharsis) का साधन है।
4. अनुकरण के तत्त्व
अरस्तु ने काव्य के अनुकरण को तीन मुख्य तत्त्वों में विभाजित किया:
(i) वस्तु (Object):
अनुकरण का उद्देश्य या विषय – अर्थात् किसका अनुकरण किया जा रहा है। यह मनुष्यों की क्रियाएं, भावनाएं, नैतिक संघर्ष आदि हो सकते हैं।
(ii) साधन (Medium):
अनुकरण के लिए उपयोग किए गए माध्यम – जैसे कि भाषा, ताल, रचना आदि। नाटक में संवाद और मंचन, कविता में छंद और अलंकार आदि।
(iii) ढंग (Mode):
अनुकरण की शैली – यानी कि किस प्रकार अनुकरण किया जा रहा है। उदाहरणतः कोई रचना वर्णनात्मक हो सकती है (कवि स्वयं घटनाओं का वर्णन करे), या नाटकीय हो सकती है (पात्र स्वयं संवाद करें)।
5. त्रासदी और अनुकरण
अरस्तु ने त्रासदी को काव्य का सर्वोत्तम रूप माना और उसके अनुकरण की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित किया। त्रासदी में महान पात्रों की दुर्दशा और पतन का चित्रण होता है, जिससे दर्शक को करुणा और भय का अनुभव होता है – और यही अनुभव अंततः कैथार्सिस (भावनात्मक शुद्धि) की ओर ले जाता है।
इस प्रक्रिया में अनुकरण केवल वास्तविक घटनाओं की नकल नहीं, बल्कि एक गहन मनोवैज्ञानिक अनुभव का निर्माण है जो दर्शक को भीतर से उद्वेलित करता है।
6. अनुकरण और कल्पना
अरस्तु के अनुसार अनुकरण मात्र प्रत्यक्ष वस्तुओं की नकल नहीं है। उसमें कवि या कलाकार की कल्पना की शक्ति अंतर्निहित होती है। यह कल्पना यथार्थ से प्रेरित होती है, परंतु उसे नये रूप में प्रस्तुत करती है। इसी कारण से काव्य इतिहास से अधिक “दार्शनिक” होता है – क्योंकि वह सामान्य जीवन के स्थायी सत्यों को उजागर करता है।
अरस्तु ने कहा:
“The poet’s function is not to relate what has happened, but what may happen – according to the law of probability or necessity.”
7. अनुकरण का उद्देश्य
अरस्तु ने अनुकरण को एक सृजनात्मक और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया माना। उसके अनुसार कला के अनुकरण से निम्नलिखित उद्देश्य सिद्ध होते हैं:
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शिक्षा और नैतिक बोध – कला और काव्य नैतिक विचारों को सुदृढ़ करते हैं।
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मनोरंजन और संतुलन – कला मानव जीवन में संतुलन और आनंद लाती है।
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भावनाओं की शुद्धि (Catharsis) – त्रासदी के माध्यम से करुणा और भय की अनुभूति से दर्शक भावनात्मक रूप से शुद्ध होता है।
8. अनुकरण और यथार्थ
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत में यथार्थ का चित्रण महत्वपूर्ण है, परंतु वह यथार्थ की सतही नकल नहीं है। उसमें कलात्मक स्वतंत्रता और चयन की प्रक्रिया होती है। कवि या नाटककार जीवन की घटनाओं का चयन करता है, उन्हें पुनर्गठित करता है, और इस प्रकार एक नया यथार्थ रचता है।
अरस्तु के अनुसार कला यथार्थ का पुनर्निर्माण है – जो “संभाव्यता” (Probability) और “अनिवार्यता” (Necessity) पर आधारित होता है।
9. अनुकरण सिद्धांत की आलोचना
हालाँकि अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत अत्यंत प्रभावशाली रहा है, परंतु आधुनिक युग में इस पर कुछ आलोचनाएँ भी की गई हैं:
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अति-संरचनात्मकता – कुछ आलोचकों ने कहा कि अरस्तु की त्रासदी की परिभाषा बहुत कठोर और संरचनात्मक है।
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कल्पना की स्वतंत्रता की सीमा – कुछ आधुनिक साहित्यकारों के अनुसार कल्पना पूर्ण स्वतंत्र होनी चाहिए, न कि केवल यथार्थ के अनुकरण तक सीमित।
फिर भी, इन आलोचनाओं के बावजूद, अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत आज भी साहित्यिक आलोचना का एक आधार स्तम्भ बना हुआ है।
10. आधुनिक संदर्भ में अनुकरण सिद्धांत
आधुनिक युग में, विशेष रूप से यथार्थवादी साहित्य, थिएटर, और सिनेमा में अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है। आज भी जब कोई उपन्यासकार या निर्देशक सामाजिक, राजनीतिक, या मनोवैज्ञानिक यथार्थ को रचनात्मक रूप से प्रस्तुत करता है, तो वह वस्तुतः अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत की ही पुष्टि करता है।
सिनेमा, जो दृश्य माध्यम है, उसमें तो अनुकरण और कैथार्सिस की प्रक्रिया प्रत्यक्ष रूप में देखी जा सकती है। समकालीन रंगमंच, साहित्य, और कविता भी जीवन के संघर्ष, नैतिक द्वंद्व, और संवेदनाओं को कलात्मक अनुकरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
उपसंहार
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत केवल एक साहित्यिक अवधारणा नहीं है, बल्कि वह एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि कला जीवन का प्रतिबिंब है – एक ऐसा प्रतिबिंब जो जीवन को अधिक स्पष्टता, गहराई, और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। अरस्तु ने कला को यथार्थ की सेवा में रखा, परंतु उसे कल्पना और सृजनात्मकता से युक्त किया।
उनका अनुकरण सिद्धांत आज भी साहित्यिक आलोचना, नाट्यशास्त्र, और कला-दर्शन में मार्गदर्शक के रूप में स्थापित है। यह सिद्धांत यह सिखाता है कि कला केवल नकल नहीं, बल्कि जीवन को समझने, अनुभव करने और व्यक्त करने का श्रेष्ठ माध्यम है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1➤ अनुकरण सिद्धांत किस दार्शनिक द्वारा प्रतिपादित किया गया था?
2➤ अरस्तु ने अपने किस ग्रंथ में अनुकरण सिद्धांत प्रस्तुत किया है?
3➤ अरस्तु ने काव्य को किसका अनुकरण कहा है?
4➤ प्लेटो की दृष्टि में अनुकरण का प्रभाव कैसा था?
5➤ अरस्तु के अनुसार मनुष्य किस प्रवृत्ति के साथ जन्म लेता है?
6➤ अरस्तु के अनुसार काव्य किससे श्रेष्ठ है?
7➤ अनुकरण के तीन तत्त्व कौन-कौन से हैं?
8➤ ‘कैथार्सिस’ का क्या अर्थ है?
9➤ अरस्तु के अनुसार काव्य का कार्य क्या है?
10➤ अरस्तु ने किस प्रकार की काव्य रचना को सर्वश्रेष्ठ माना?
11➤ प्लेटो की वह कृति कौन-सी है जिसमें उन्होंने अनुकरण की आलोचना की?
12➤ अरस्तु के अनुसार त्रासदी किन भावनाओं को उत्पन्न करती है?
13➤ अरस्तु के अनुसार कला क्या है?
14➤ अनुकरण सिद्धांत की आधुनिक प्रासंगिकता कहाँ अधिक देखी जाती है?
15➤ अनुकरण का प्रमुख माध्यम क्या है?