‘अंजो दीदी’ (नाटक) का समीक्षात्मक अध्ययन

प्रस्तावना

अंजो दीदी उपेन्द्रनाथ अश्क का एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक नाटक है, जो अनुशासन, अहंकार और यांत्रिक जीवन की अमानवीयता का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। इस नाटक की गहराई और पात्रों की जीवंतता इसे हिंदी रंगमंच की विशिष्ट कृति बनाते हैं। । यह नाटक अभिजात्य वर्ग के परिवार में कठोर अनुशासन, अहंकार और मानवीय धाराओं के यंत्रीकरण की त्रासदी को दर्शाता है।


नाटक का मूल तथ्य और आधारभूमि

  • रचयिता: उपेन्द्रनाथ अश्क 

  • प्रकाशन:  नाटक का प्रकाशन 1955 में और  मंचन 30 जनवरी 1954 को मुंबई स्थित सेंट जेवियर कॉलेज में किया गया

  • रूपरेखा: दो अंक — प्रथम अंक में तीन दृश्य, द्वितीय में एक दृश्य — कुल चार दृश्य

  • स्थान व समय:

    • अंक 1: दिल्ली, अंजली (अंजो दीदी) के घर में, गर्मी का दिन, वर्ष ~1933

    • अंक 2: वही घर, सर्दियों का एक दिन, लगभग 20 वर्ष बाद ~1953

  • शैली व विषय: सामाजिक-मनोवैज्ञानिक नाटक; मध्यवर्गीय यांत्रिक जीवन, अहंकार, नियमबद्धता और पारिवारिक विघटन पर केंद्रित


प्रमुख पात्र

पात्र स्वरूप
अंजलि / अंजो दीदी नायिका, अत्यधिक अनुशासनप्रिय, अहंकारी
श्रीपत अंजो का भाई, स्वतंत्र स्वभाव
इन्द्रनारायण अंजो के पति, वकील, बाद में जज
नीरज अंजो का बेटा
अनिमा अंजो की सहेली
मुन्नी, राधू नौकर–नौकरानी
ओमी बहु
नीलम पोता
नजीर मित्र

लेखक का परिचय

हिन्दी - *उपेन्द्रनाथ अश्क* जन्म : 14 दिसम्बर, 1910, जालन्धर, पंजाब निधन-19 जनवरी, 1996, प्रयागराज हिन्दी एवं उर्दु के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार ...

उपेन्द्रनाथ अश्क (1910–1996) हिन्दी साहित्य के एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। वे प्रमुखतः उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, संस्मरणकार तथा आलोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म 14 दिसंबर 1910 को जालंधर (पंजाब) में हुआ था। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से आम आदमी के जीवन, संघर्ष, सामाजिक विसंगतियों और मानसिक यथार्थ को अत्यंत सहजता और गहराई से प्रस्तुत किया।

अश्क का लेखन यथार्थवाद की परंपरा से जुड़ा हुआ था। वे प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले रचनाकार माने जाते हैं। उनकी भाषा सहज, सजीव और प्रांजल है। उन्होंने ‘कहानी को कहानी की तरह कहने’ की बात कही और अपने समय की समस्याओं को सीधे-सीधे कहानी में उतारा।

उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में उपन्यास ‘गिरती दीवारें’, ‘शहर में घूमता आईना’, ‘गर्म राख’, और नाटक ‘लौटता हुआ दिन’ ‘अंजो दीदी’, आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में ‘आत्मसंघर्ष के कथाकार’ के रूप में भी जाना जाता है।


नाटक की कथावस्तु

अंजो दीदी का नियंत्रण:

  • अंजो अपने ‘नानाजी’ की शिक्षाओं—”समय की पाबंदी सभ्यता की निशानी”, “जीवन एक घड़ी की तरह चलता रहे”—की कठोर आचरण-संहिताओं को परिवार पर थोपती है

  • वह घर की नौकरानी, पति, बेटे सभी को यांत्रिक नियमों में ढककर रखती है, जिससे उनका व्यक्तित्व दब जाता है।

पारिवारिक उथल-पुथल:

  • पति इन्द्रनारायण एक उज्जवल वकील थे, पर विवाह के बाद अंजो के अनुशासन ने उन्हें कठपुतली बना दिया

  • भाई श्रीपत, जो स्वतंत्र और सहज जीवन का पक्षधर है, जब आता है तो व्यवस्था को चुनौती देता है और घर में जीवन की लय को फिर से लचीलापन प्रदान करता है


घटनाक्रम की दिशा

पहला अंक:

  • नाश्ते की टाइमिंग और कड़ाई से शुरूआत।

  • विरोध प्रकट करने पर अंजो द्वारा डांट और बेइज्जती।

  • पति–पत्नी संबंधों में तनाव।

  • श्रीपत के आगमन के बाद घर के नियमों में ढील।

दूसरा अंक (20 वर्ष बाद):

  • अंजो की मृत्यु 

  • बचे लोग यांत्रिक जीवन से थोड़ी आज़ादी की तरफ बढ़ते हुए दिखाई देते हैं।

  • लेकिन अंजो की सीख उनके जीवन पर स्थायी प्रभाव छोड़ती है।


मनोवैज्ञानिक गहराई

  • अहंकार और नियंत्रण: अंजो का वर्चस्व प्रकृति को नियंत्रित करने का प्रतीक है।

  • यांत्रिक जीवन: व्यक्ति भले ही मानव हो, पर जब उसे नियमों का कठोर उपासक बनाया जाए, तो वह मशीन बन जाता है—इसका स्पष्ट विरोध श्रीपत करता है

  • वैचारिक संघर्ष: परंपरावादी (अंजो) , नवोन्मेषी (श्रीपत), और व्यक्तिगत स्वाभाव (नीरज और नीलम) में संघर्ष देखने को मिलता है।

  • वंशानुगत बंधन: अंजो की शिक्षाएँ और मानसिकता परिवार में जगह-जगह फैलती हैं, फिर भी अंततः टूट जाती हैं।


प्रमुख संवादों की झलक

  • “जीवन स्वयं एक महान घड़ी है…हम सब उसके पुर्जे बन जाएँ।” – अंजो की यांत्रिक आख्यानवादिता

  • “इंजन की भाँति… गाड़ी के डिब्बों की भाँति।” – इन्द्रनारायण का व्यापक बयान

  • “जब इंसान मशीन बन जाएगा… दुनिया के लिए खतरा है।” – श्रीपत द्वारा एक मानववादी चेतावनी


नाटकीय सफलता और विषयगत महत्त्व

  • उच्च वर्गीय जीवन की परिस्थितियां, कठोर मनोवृत्तियाँ और उनका अंतर्निहित संघर्ष इस नाटक को सामाजिक विमर्श का उत्कृष्ट स्रोत बनाते हैं।

  • रंगमंचीय भाषा: सीमित पात्रों, केंद्रित संवादों और दृश्यात्मक जीवन्तता ने इसे मंच पर प्रभावशाली बनाया

  • इसके माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि-

  • अत्यधिक नियंत्रण मानसिक रोगों की उत्पत्ति का कारण हो सकता है।

  • जीवन का यांत्रिक ढाँचा मानवीय मूल्यों और स्वतंत्रता की हत्या कर सकता है।

  • अव्यक्त अहं और आवेग, चाहे पारिवारिक हों या व्यावसायिक, भयंकर परिणाम रखती हैं।

निष्कर्ष

“अंजो दीदी” एक समय-समाज का दर्पण है, जहां अत्यधिक अनुशासन और अहंकार ने एक मानव को—आदर्शों की कठोरता में बांधकर उसकी आत्मा की आज़ादी छीन ली। अश्क ने नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया कि मानव अपनी आत्मा की यांत्रिकता को पहचान कर उसे मुक्त करे, तभी जीवन में सार्थकता, प्रेम और संतुलन साधा जा सकता है।


♦️वस्तुनिष्ठ प्रश्न♦️

1➤ ‘अंजो दीदी’ नाटक के लेखक कौन हैं?





2➤ ‘अंजो दीदी’ नाटक का प्रकाशन वर्ष क्या है?





3➤ इस नाटक का प्रथम मंचन कहाँ हुआ था?





4➤ नाटक की रूपरेखा में कुल कितने दृश्य हैं?





5➤ ‘अंजो दीदी’ किस शैली का नाटक है?





6➤ अश्क को किस परंपरा का लेखक माना जाता है?





7➤ नाटक की नायिका कौन है?





8➤ नाटक में अंजो दीदी किस चीज की प्रतीक हैं?





9➤ कौन अंजो दीदी के अनुशासन का सबसे अधिक विरोध करता है?





10➤ ‘जीवन स्वयं एक महान घड़ी है’ – यह कथन किसका है?





11➤ नाटक का केंद्रीय संघर्ष क्या है?





12➤ नाटक का उद्देश्य क्या प्रतीत होता है?





 

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