लोकसभा क्या है ?
लोकसभा संसद का निम्न सदन होता है। जिसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-81 में किया गया है। इसमें सदस्यों का चुनाव आम जनता के द्वारा किया जाता है। इसप्रकार से लोकसभा केन्द्र में लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन की अधिकतम संख्या 550 होगी, जिसमें से 530 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे और 20 सदस्य संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करेंगे। वर्तमान में सदन की सदस्य संख्या 543 है।
लोकसभा का निर्वाचन
लोकसभा का निर्वाचन आम जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल निर्वाचन क्षेत्र से होता है। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का अर्थ है कि भारत के भू-भाग को छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्र में बांटा गया है, जिसे लोकसभा क्षेत्र कहा जाता है तथा एकल निर्वाचन क्षेत्र का अर्थ होता है कि एक निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक ही व्यक्ति का चुनाव होगा। लोकसभा के चुनाव में मतदाता की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होती है किन्तु मूल संविधान में यह 21 वर्ष था। जिसे 61वें संविधान संशोधन अधिनियम 1979 के द्वारा घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहा जाता है।
अर्हताएं
1. भारत का नागरिक हो।
2. आयु कम से कम 25 वर्ष हो।
3. किसी भी सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
लोकसभा का कार्यकाल
लोकसभा का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष का होता है। किन्तु यदि सदन में किसी भी दल को बहुमत न रह जाए तब राष्ट्रपति इसे 5 वर्ष से पूर्व भी समाप्त कर सकता है। यदि देश में राष्ट्रीय आपात लगा हो, तब संसद को यह अधिकार होगा कि वह लोकसभा के कार्यकाल को बढ़ा सकता है। किन्तु एक बार में 1 वर्ष से अधिक इस कार्यकाल को नहीं बढ़ाया जा सकता। यद्यपि संसद 1-1 वर्ष करके कई बार बढ़ा सकती है। आपातकाल की समाप्ति के 6 महीने के अन्दर चुनाव करवाना आवश्यक होगा। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा लोकसभा के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया था। जिसे 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के द्वारा घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।
लोकसभा के पदाधिकारी
लोकसभा में मुख्य रूप से दो पदाधिकारी होते हैं- अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष बनने की यह अनिवार्य शर्त है कि उन्हें लोकसभा का सदस्य होना चाहिए। चूंकि लोकसभा का अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष सदस्य के रूप में पहले ही शपथ ग्रहण कर चुके हैं, अतः इन्हें अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पुनः शपथ ग्रहण करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। सामान्यतः सत्ता पक्ष के व्यक्ति को अध्यक्ष, जबकि विपक्ष के व्यक्ति को उपाध्यक्ष के रूप में चुना जाता है। यदि कभी किसी कारण से अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाए। तब उपाध्यक्ष अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। यदि किसी कारण से अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष दोनों का पद रिक्त हो जाए, तब अनुच्छेद 95 में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति लोकसभा के किसी वरिष्ठ सदस्य को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकता है।
लोकसभा का महासचिव लोकसभा का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होता है। जिसकी नियुक्ति लोकसभा के अध्यक्ष के द्वारा की जाती है। लोकसभा का महासचिव एक प्रशासनिक पद है तथा यह सदन में स्थायी रूप से बना रहता है। सदन की सभी प्रशासनिक कार्यवाहियों का संचालन इसी के द्वारा किया जाता है।