कविता- साक़ी

अरे! ढाल दे, पी लेने दे!
दिल भरकर प्यारे साक़ी।
साध न रह जाये कुछ
इस छोटे से जीवन की बाक़ी॥

ऐसी गहरी पिला कि जिससे
रंग नया ही छा जावे।
अपना और पराया भूलँ;
तू ही एक नजऱ आवे॥

ढाल-ढालकर पिला कि जिससे
मतवाला होवे संसार।
साको! इसी नशे में कर लेंगे
भारत-माँ का उद्धार॥

 

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