59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार
हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार ‘विनोद कुमार शुक्ल’ को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वह यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले हिन्दी के 12वें और छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। इसमें पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रूपए, एक प्रशस्ति पत्र और एक वाग्देवी (देवी सरस्वती) की प्रतिमा दी जाती है। यह पुरस्कार केवल संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं और अंग्रेजी में लिखने वाले भारतीय लेखकों को ही प्रदान किया जाता है। एक बार किसी भाषा को यह पुरस्कार प्राप्त हो जाने पर, उस भाषा की पात्रता अगले दो वर्ष तक समाप्त हो जाती है। ज्ञानपीठ पुरस्कार के प्रथम विजेता मलयालम के लेखक जी. एस. कुरूप थे। इन्हें यह पुरस्कार सन् 1965 में प्रदान किया गया। अगर हिन्दी की बात करें तो हिन्दी में सर्वप्रथम ‘सुमित्रानंदन पंत’ को सन् 1968 में यह पुरस्कार दिया गया, और अब विनोद कुमार शुक्ल को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव में हुआ था। शुक्ल जी ने लेखन की शुरूआत कविताओं से की थी। इनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1999 में इन्हें ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अंतर्राष्ट्रीय साहित्य में उपलब्धि के लिए वर्ष 2023 में इन्हें ‘पेन नाबोकोव’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इनकी रचनाओं का अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। शुक्ल जी की कविताएं और कहानियां साधारण शब्दों में गहरे दार्शनिक विचारों को समेटती हैं। यही कारण है कि इनकी गिनती पाठकों और समीक्षकों के प्रिय लेखकों में होती है।