34वां सरस्वती सम्मान
भारत के प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों में से एक, सरस्वती सम्मान का 34वां संस्करण संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान महा महोपाध्याय साधु भद्रेश दास को प्रदान किया गया है। उन्हें यह सम्मान उनकी उत्कृष्ट संस्कृत कृति “स्वामीनारायण सिद्धांत सुधा“ के लिए दिया गया है।
महामहोपाध्याय साधु भद्रेशदास स्वामी का परिचय
महामहोपाध्याय साधु भद्रेशदास स्वामी एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान और बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) के संन्यासी हैं। उनका जन्म 12 दिसंबर 1966 को महाराष्ट्र के नांदेड़ में हुआ था। 14 वर्ष की आयु में, 1981 में, उन्हें उनके गुरु, परम पूज्य प्रपन्न स्वामी महाराज द्वारा संन्यास दीक्षा प्रदान की गई। इसके पश्चात, उन्होंने गुजरात के सारंगपुर स्थित BAPS सेमिनरी में वेदांत, न्याय दर्शन और संस्कृत व्याकरण का गहन अध्ययन किया।
शिक्षा
भद्रेशदास स्वामी ने वाराणसी के सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और मुंबई के भारतीय विद्या भवन से संस्कृत और षड्दर्शन में पांच एम.ए. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। 2005 में, उन्होंने कर्नाटक विश्वविद्यालय से भगवद्गीता पर अपने शोध प्रबंध के आधार पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
प्रमुख रचनाएँ
- स्वामीनारायण भाष्यम: यह पाँच खंडों में रचित संस्कृत में एक विस्तृत भाष्य है, जो उपनिषद, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र (प्रस्थानत्रयी) पर आधारित है। यह ग्रंथ स्वामीनारायण परंपरा के अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को एक स्वतंत्र वेदांत दर्शन के रूप में स्थापित करता है।
- स्वामीनारायण सिद्धांत सुधा: यह एक वादग्रंथ है, जिसमें स्वामीनारायण के दर्शन की दार्शनिक और तात्त्विक व्याख्या की गई है।
वर्तमान भूमिका
वर्तमान समय में भद्रेशदास स्वामीं नई दिल्ली में स्थित BAPS स्वामीनारायण शोध संस्थान के अध्यक्ष हैं। वे संस्कृत साहित्य, वेदांत दर्शन और भारतीय दार्शनिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं।