विधान सभा क्या है ?
विधान सभा की राज्य में वही स्थिति है जो केन्द्र में लोकसभा की होती है। इसे राज्य में लोकप्रिय सदन कहा जाता है, जहां सदस्यों का चुनाव सीधे आम जनता के द्वारा किया जाता है। अनुच्छेद-170 में यह प्रावधान है कि किसी भी राज्य की विधान सभा में न्यूनतम 60 सदस्य, जबकि अधिकतम 500 सदस्य हो सकते हैं। यद्यपि कुछ राज्य भारत में ऐसे भी हैं, जिनमें 60 सदस्यों से कम की विधान सभा है। इनमें गोवा, सिक्किम, मिजोरम तथा पुडुचेरी शामिल हैं। 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 तक परिवर्तित नहीं होगी।
सदस्यों का चुनाव
विधान सभा के सदस्यों का चुनाव First, Past the Post System के आधार पर सीधे जनता के द्वारा लोकसभा चुनाव की तरह किया जाता है। यद्यपि कुछ विशेष राज्यों जैसे- नागालैण्ड, सिक्किम में कुछ सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि द्वारा किया जाता है। जिसमें आम जनता सीधे भाग नहीं लेती है। अनुच्छेद-332 के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधान सभाओं में SC/ST को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद-333 में यह प्रावधान किया गया था कि राज्य का राज्यपाल विधानसभा में एक आंग्ल भारतीय सदस्य का मनोनयन करेगा। इस प्रावधान को 104वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
विधान सभा की अवधि
विधानसभा की अवधि सामान्यतः 5 वर्षों की होती है, किन्तु कुछ ऐसी भी परिस्थितियां हो सकती हैं, जब विधानसभा के कार्यकाल को 5 वर्षों से पहले भी समाप्त किया जा सकता है। सामान्यतः ऐसा मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्यपाल करता है। यदि संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए या सत्ताधारी पार्टी अपना बहुमत खो दे या मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा दे दे, तब इन दशाओं में विधानसभा की अवधि को 5 वर्ष से पहले ही समाप्त किया जा सकता है। कुछ ऐसी भी परिस्थितियां होती हैं, जब विधानसभा के कार्यकाल को 5 वर्ष से अधिक किया जा सकता है। यदि सम्पूर्ण देश में या संबंधित राज्य में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित हो, तब अनुच्छेद-172 में यह प्रावधान किया गया है कि संसद विधानसभा के कार्यकाल को 5 वर्षों से अधिक बढ़ा सकती है। किन्तु एक बार में यह कार्यकाल 1 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।
विधान सभा की शक्तियां एवं कार्य
● राज्य की विधायिका अर्थात विधानसभा राज्य सूची के विषय से संबंधित 61 विषयों पर कानून बना सकती है। इसके अतिरिक्त वह समवर्ती सूची के 52 विषयों पर भी विधि का निर्माण कर सकती है। किन्तु यदि समवर्ती सूची के विषय पर केन्द्र और राज्य के बीच मतभेद उत्पन्न हो जाए, तब केन्द्र के द्वारा बनाया गया कानून लागू किया जाता है।
● भारत के सभी राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था नहीं है, अतः उन राज्यों में जहां विधान परिषद नहीं है विधि बनाने की सम्पूर्ण शक्ति विधान सभा के पास होती है।
● विधानसभा के द्वारा पारित कोई विधेयक, जब विधान परिषद के पास भेजा जाता है। तब विधान परिषद उसे पहली बार अधिकतम 3 माह तक ही रोक सकती है। इसके पश्चात् विधान सभा पुनः उस विधेयक को विधान परिषद के पास भेजता है। दूसरी बार विधान परिषद उस विधेयक को एक माह तक ही रोक सकता है। इस प्रकार से विधान परिषद किसी भी विधेयक को अधिकतम 4 महीने तक ही रोक सकता है। इसके पश्चात् विधेयक स्वतः ही पारित मान लिया जाएगा। दोनों सदनों से पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् स्वतः कानून बन जाता है।
● धन विधेयक को केवल विधान सभा में ही रखा जा सकता है। विधान परिषद इसे अधिकतम 14 दिन ही रोक सकता है।
● विधान सभा राज्य में किसी नए कर को लगा सकती है।
● राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण अर्थात बजट केवल विधान सभा में ही रखा जा सकता है।
सत्र को आहूत करना क्या है ?
अनुच्छेद 174 (1) के अनुसार राज्य का राज्यपाल विधानमण्डल के सत्र को समय-समय पर ऐसे स्थान पर बुलाता है, जो वह उचित समझे। एक वर्ष में कम से कम दो सत्र का बुलाया जाना जरूरी है, अर्थात दो सत्रों के बीच 6 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए। इसे ही सत्र को आहूत करना कहते हैं। विधान सभा के सत्र को बुलाए जाने के पश्चात् अनुच्छेद-176 के तहत राज्यपाल विधानमण्डल के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करता है, जिसे राज्यपाल का अभिभाषण कहा जाता है। जब किसी राज्य में विधानसभा के चुनाव होते हैं, तब चुनाव के पश्चात् राज्यपाल दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करता हे। इसी संबोधन के पश्चात् नई विधान सभा का कार्यकाल प्रारम्भ होता है। राज्यपाल का यह अभिभाषण उसका व्यक्तिगत अभिभाषण नहीं होता, बल्कि यह मंत्रिपरिषद के द्वारा तैयार किया जाता है।
सत्र का स्थगन और सत्रावसान क्या है ?
● विधान सभा का पीठासीन अधिकारी (सामान्यतः विधानसभा का अध्यक्ष) कुछ मिनट, घण्टे या दिन के लिए सत्र को स्थगित करता है। इस दौरान सदन का कोई भी कार्य नहीं होता, इसी को हम सत्र का स्थगन कहते हैं।
● विधान सभा का अध्यक्ष अर्थात पीठासीन अधिकारी जब किसी एक दिन सत्र को स्थगित करने के पश्चात् सत्र को पुनः बुलाने की तिथि की घोषणा नहीं करता है, तब इसे अनिश्चित काल का स्थगन अर्थात Sine Die कहा जाता है। Sine Die की घोषणा के पश्चात् मुख्यमंत्री राज्यपाल से विधानसभा के सत्र को समाप्त करने की सिफारिश करता है तथा राज्यपाल के द्वारा विधानसभा के सत्र को यहीं पर समाप्त कर दिया जाता है। इसे ही सत्रावसान कहा जाता है।
विधान सभा का विघटन
संविधान के अनुच्छेद- 174 (2) में यह प्रावधान है कि राज्यपाल विधान सभा का विघटन कर सकता है। विधान सभा के विघटन की मुख्यतः तीन शर्तें होती हैं-
1. सरकार का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया हो।
2. सरकार अल्पमत में हो तथा कोई अन्य दल सरकार बनाने में सक्षम न हो।
3. संवैधानिक तंत्र विफल हो गया हो।
विधान सभा के पदाधिकारी
संविधान के अनुच्छेद-178 में विधान सभा के दो पदाधिकारियों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं, अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष। अघ्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के द्वारा अपने बीच से ही किया जाता है। यदि किसी समय अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष दोनों का पद रिक्त हो जाए, तब अनुच्छेद 180 (2) में यह प्रावधान किया गया है कि विधान सभा जिस भी व्यक्ति को इसके लिए अधिकृत करेगी वही पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करेगा। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष अपने पद पर तभी तक बने रह सकते हैं, जब तक वह सदन के सदस्य हों। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति या उपसभापति को उसके पद से हटाने के 14 दिन पूर्व उन्हें नोटिस देना आवश्यक होता है।
विधान सभा की शक्तियों पर प्रतिबंध
● राज्य सूची में कुछ ऐसे भी विषय होते हैं, जिसपर विधि बनाने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व सहमति लेना आवश्यक होता है।
● यदि राज्य सभा अनुच्छेद- 249 के तहत राज्य के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तब उस पर विधि बनाने की शक्ति संसद को प्राप्त हो जाती है।
● यदि राज्य के किसी विषय पर राष्ट्रपति का विचार मांगा गया हो तब राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना उस पर विधि नहीं बनाई जा सकती।