अंधेर नगरी

प्रथम दृश्य

(वाह्य प्रान्त)

(महन्त जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं)

सब : राम भजो राम भजो राम भजो भाई।

राम के भजे से गनिका तर गई,

राम के भजे से गीध गति पाई।

राम के नाम से काम बनै सब,

राम के भजन बिनु सबहि नसाई ॥

राम के नाम से दोनों नयन बिनु

सूरदास भए कबिकुलराई।

राम के नाम से घास जंगल की,

तुलसी दास भए भजि रघुराई ॥

महन्त : बच्चा नारायण दास! यह नगर तो दूर से बड़ा सुन्दर दिखलाई पड़ता है! देख, कुछ भिच्छा उच्छा मिलै तो ठाकुर जी को भोग लगै। और क्या।

नारायण दास : गुरु जी महाराज! नगर तो नारायण के आसरे से बहुत ही सुन्दर है जो सो, पर भिक्षा सुन्दर मिलै तो बड़ा आनन्द होय।

महन्त : बच्चा गोवरधन दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जायगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो।

गोवरधन दास : गुरु जी! मैं बहुत सी भिच्छा लाता हूँ। यहाँ लोग तो बड़े मालवर दिखलाई पड़ते हैं। आप कुछ चिन्ता मत कीजिए।

महंत : बच्चा बहुत लोभ मत करना। देखना, हाँ।-

लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावत मान।

लोभ कभी नहीं कीजिए, यामैं नरक निदान ॥

(गाते हुए सब जाते हैं)

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